किन्नरों और सिख समुदाय ने निभाई आस्था - एक साथ मनाया लोकपर्व छठ

Jitendra Kumar Sinha
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लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत में श्रद्धा, समर्पण और सामाजिक एकता का प्रतीक बन गया है। इस पर्व में जाति, धर्म और वर्ग की सीमाएँ मिट जाती हैं और हर समुदाय सूर्य उपासना के इस पावन अवसर पर एक सूत्र में बंध जाता है। इसी परंपरा को जीवंत करते हुए इस वर्ष पटना सिटी में किन्नर समाज और सिख समुदाय ने मिलकर छठ पर्व का अनुष्ठान किया, जिसने सामाजिक समरसता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया।

गायघाट, खाजेकलां घाट, टेढ़ी घाट, महाराज घाट समेत आधा दर्जन से अधिक गंगा घाटों पर किन्नर समाज की महिलाओं ने श्रद्धा भाव से छठ व्रत रखा। पारंपरिक वस्त्रों में सजे किन्नरों ने संध्या अर्घ्य के समय अस्ताचलगामी सूर्य को दूध और जल से अर्घ्य अर्पित किया। उनके साथ बड़ी संख्या में स्थानीय श्रद्धालु भी मौजूद थे। व्रती किन्नरों ने बताया कि छठ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि आत्मशुद्धि और समाज से जुड़ाव का माध्यम है। उनका कहना था कि इस व्रत से मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सूर्यदेव से संतान, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना की जाती है।

पटना सिटी के कंगन घाट, झाउगंज घाट और गुरु गोविंद सिंह कॉलेज घाट के आसपास सिख समुदाय के श्रद्धालु भी मौजूद रहे। परंपरागत रीति से उन्होंने अस्ताचलगामी और उदयीमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया। सिख समुदाय के उमाशंकर सिंह ने अपनी पत्नी मिन्नी देवी कौर के साथ पूरे विधि-विधान से छठ व्रत किया। उन्होंने कहा कि यह पर्व केवल हिन्दू समाज तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और मानवता की आराधना का पर्व है, जिसमें हर धर्म और समुदाय के लोगों को भाग लेते हैं।

इस वर्ष छठ घाटों पर दिखा यह दृश्य सामाजिक सौहार्द का प्रतीक बन गया। जब किन्नर समाज और सिख श्रद्धालु एक साथ सूर्यदेव को अर्घ्य दे रहे थे, तो वहाँ उपस्थित हर व्यक्ति की आंखें भावुक हो उठीं। यह पर्व एक बार फिर साबित कर गया कि भारत की संस्कृति विविधता में एकता की जीवंत मिसाल है।

किन्नरों और सिख समुदाय के श्रद्धालुओं द्वारा छठ मनाना न केवल आस्था का प्रदर्शन है, बल्कि यह समाज को समावेशिता और समानता का संदेश भी देता है। यह दर्शाता है कि धर्म और परंपराएँ तब ही सार्थक होती हैं जब वे सबको साथ लेकर चलें।



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