आभा सिन्हा, पटना
भारत भूमि देवी-देवताओं की अद्भुत लीलाओं और पवित्र स्थलों से भरी हुई है। यहाँ हर राज्य, हर क्षेत्र और हर तीर्थ अपने भीतर किसी न किसी चमत्कारिक कथा और श्रद्धा की परंपरा को संजोए हुए है। इन्हीं शक्तिपीठों में से एक है “त्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ”, जो पंजाब के जालंधर शहर में स्थित है। यह स्थान न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर के रूप में भी प्रसिद्ध है। यहाँ देवी सती का बायाँ वक्ष (स्तन) गिरा था। इसलिए इसे महाशक्ति का केंद्र माना जाता है। त्रिपुरमालिनी की अधिष्ठात्री देवी स्वयं शक्ति स्वरूपिणी हैं और उनके भैरव को भीषण कहा जाता है। यह शक्तिपीठ जालंधर छावनी के निकट देवी तलाब मंदिर परिसर में स्थित है। स्थानीय निवासियों से लेकर दूर-दूर से आने वाले तीर्थयात्री इस स्थल को अपने जीवन की सबसे बड़ी आध्यात्मिक प्राप्ति मानते हैं।
शक्तिपीठों की उत्पत्ति की कथा भगवान शिव और देवी सती के जीवन से जुड़ी हुई है। दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ में अपमानित होकर जब माता सती ने अपने प्राण त्याग दिए, तब व्यथित शिव ने उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करना आरंभ कर दिया। देवताओं ने जब यह स्थिति देखी तो भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के अंग-प्रत्यंग को काटकर विभिन्न स्थानों पर गिरा दिया। जहाँ-जहाँ ये अंग गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
इन्हीं में से एक स्थान है जालंधर का देवी तलाब, जहाँ माता का बायाँ वक्ष गिरा था। यह स्थान मातृ शक्ति के पोषण और करुणा का प्रतीक माना जाता है। इसलिए यहाँ आने वाले भक्त विशेष रूप से संतान प्राप्ति, सुख-समृद्धि और स्नेह-संबंधों की मधुरता के लिए प्रार्थना करते हैं।
जालंधर, पंजाब का एक ऐतिहासिक नगर है, जो कभी त्रिगर्त राज्य का हिस्सा रहा है। यह नगर अपनी सांस्कृतिक विविधता, वीरता की परंपरा और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। देवी तलाब मंदिर, जालंधर शहर के बीचोंबीच स्थित है। यहाँ एक विशाल पवित्र सरोवर है, जिसके किनारे त्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ की स्थापना हुई है। यह स्थान सदियों से साधकों, भक्तों और यात्रियों का आकर्षण रहा है। सिख गुरुओं, नाथ योगियों और संत परंपरा ने भी यहाँ अपनी साधना की है। देवी तलाब का सरोवर इस बात का प्रतीक है कि शक्ति केवल पर्वतों और गुफाओं में ही नहीं, बल्कि नगरों और समाज के बीच भी विद्यमान रहती है।
"त्रिपुरमालिनी" नाम अपने आप में अत्यंत गूढ़ और दिव्य है। त्रिपुर का अर्थ है तीनों लोक यानि स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल। मालिनी का अर्थ है वह देवी जो इन तीनों लोकों को अपनी शक्ति की माला से बाँधकर संतुलन स्थापित करती हैं। अर्थात त्रिपुरमालिनी वह शक्ति हैं जो ब्रह्मांड की त्रिविध संरचना को धारण करती हैं। भैरव का नाम यहाँ भीषण है, जो यह दर्शाता है कि देवी की शक्ति एक ओर पालन-पोषण और करुणा का प्रतीक है, तो दूसरी ओर दुष्टों के लिए विनाशकारी और भयानक रूप भी धारण कर लेती है।
देवी तलाब मंदिर एक विशाल और आकर्षक परिसर है। इसका मुख्य आकर्षण है प्राचीन सरोवर जो लगभग 200 वर्ष पुराना माना जाता है। इसके चारों ओर पक्की सीढ़ियाँ बनी हैं और श्रद्धालु यहाँ स्नान करके देवी के दर्शन करते हैं। मुख्य गर्भगृह में त्रिपुरमालिनी देवी की प्रतिमा विराजमान है। प्रतिमा का स्वरूप अत्यंत शांत और सौम्य है, परंतु उनके पीछे प्रकट होता तेज भव्य और अद्वितीय है। पास ही में भैरव भीषण का मंदिर है। मान्यता है कि बिना भैरव के दर्शन किए शक्तिपीठ की यात्रा अधूरी रहती है। परिसर में भगवान शिव, हनुमानजी, माता काली और नवग्रहों के मंदिर भी हैं।
त्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ में पूजा की परंपरा बहुत प्राचीन है। यहाँ प्रतिदिन आरती, भजन-कीर्तन और हवन होता है। विशेष अवसरों पर मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुँचते हैं। नवरात्रि :के समय मंदिर का दृश्य अद्भुत हो जाता है। नौ दिनों तक अखंड ज्योति जलती रहती है और भक्त माता के नौ रूपों की पूजा करते हैं। सप्तमी का मेला लगता है, इस संबंध में कहा जाता है कि इस दिन विशेष रूप से संतान की इच्छा रखने वाले दंपत्ति यहाँ पूजा करते हैं। कुंड स्नान सरोवर में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
स्थानीय परंपरा में कई कथाएँ प्रचलित हैं कहा जाता है कि एक समय जालंधर क्षेत्र में एक दैत्य जालंधर का आतंक था। त्रिपुरमालिनी देवी ने ही देवताओं के साथ मिलकर उसका वध किया और धरती को पुनः धर्ममार्ग पर स्थापित किया। मान्यता है कि यदि कोई भक्त पूर्ण श्रद्धा से देवी तलाब में दीपदान करता है, तो उसके जीवन से अंधकार दूर होकर प्रकाश का वास होता है। एक अन्य कथा के अनुसार, माता के दर्शन मात्र से जीवन में तीन प्रकार की समृद्धि, आध्यात्मिक, भौतिक और सामाजिक, प्राप्त होती है।
त्रिपुरमालिनी केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि एक दार्शनिक संदेश भी देती हैं। बायाँ वक्ष मातृत्व और पोषण का प्रतीक है। इसका तात्पर्य है कि शक्ति सदा अपने भक्तों का पालन करती है। भीषण भैरव दर्शाता है कि शक्ति केवल प्रेममयी नहीं, बल्कि दुष्टों के लिए कठोर और विनाशकारी भी है। सरोवर जल जीवन का मूल है, और देवी तलाब इस सत्य को रेखांकित करता है।
पंजाब की सांस्कृतिक जीवनधारा में इस शक्तिपीठ का विशेष स्थान है। यहाँ हर धर्म और जाति के लोग आते हैं। नवरात्रि के समय मंदिर में लंगर और भजन संध्याएँ आयोजित होती हैं, जो सामूहिकता और भाईचारे का संदेश देती हैं। इसके अतिरिक्त, जालंधर का यह शक्तिपीठ भारतभर से आने वाले पर्यटकों और श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। इससे स्थानीय व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी बढ़ता है।
यह शक्तिपीठ विशेष रूप से नारी शक्ति का प्रतीक है। यहाँ आकर महिलाएँ अपनी आत्मशक्ति को पहचानती हैं। संतान की कामना और पारिवारिक सुख के लिए यहाँ विशेष व्रत किया जाता है। यह स्थान यह भी सिखाता है कि स्त्री केवल परिवार का पोषण करने वाली नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र की आधारशिला है।
आज देवी तलाब मंदिर का जीर्णोद्धार हो चुका है। यहाँ आधुनिक सुविधाएँ, प्रसादालय, धर्मशाला और ध्यान-कक्ष बनाए गए हैं। प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु यहाँ आते हैं। यह स्थान जालंधर की पहचान बन चुका है। सरकार और स्थानीय समितियाँ इस पवित्र स्थल को धार्मिक पर्यटन और संस्कृति संरक्षण के केंद्र के रूप में विकसित कर रही हैं।
त्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ केवल एक मंदिर नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति की वह धरोहर है जो श्रद्धा, शक्ति, करुणा और वीरता का संगम प्रस्तुत करती है। यह स्थान यह संदेश देता है कि शक्ति सर्वत्र विद्यमान है, चाहे वह मातृत्व के कोमल रूप में हो या दुष्टों के संहारक भयानक रूप में। जालंधर का यह पवित्र धाम हर भक्त को यह अनुभव कराता है कि जब भी जीवन में अंधकार छा जाए, तो देवी की शक्ति ही वह प्रकाश है जो मार्गदर्शन करती है।
