बिहार चुनाव 2025: कुम्हरार और दीघा में टिकट बंटवारे से कायस्थ समाज नाराज़

Jitendra Kumar Sinha
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मुसलमानों और यादवों-ओबीसी के बाद अब राजधानी पटना के आसपास की राजनीति में एक नया मोड़ आ गया है, जहाँ की महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कायस्थ समाज ने इस बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर नाराज़गी जाहिर कर दी है। पटना एवं आसपास की विधानसभा सीटों पर भाजपा की पारंपरिक पकड़ रही है, जिसमें कायस्थ मतदाताओं का खासा योगदान रहा है। लेकिन 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपनी तीन कायस्थ विधायक उम्मीदवारों में से सिर्फ एक को ही फिर से मैदान में उतारा है, जबकि दो को बदलकर अन्य जातियों के प्रत्याशी दिए गए हैं।


मौजूदा विधानसभा में पटना-मोहल्ले की भाजपा विधायक टीम में बाँकीपुर से नितिन नवीन, कुम्हरार से अरुण सिन्हा और नरकटियागंज से रश्मि वर्मा शामिल थे। इस बार पार्टी ने सिर्फ नितिन नवीन को ही टिकट दिया और अरुण सिन्हा की जगह बनिया समुदाय के संजय गुप्ता को कुम्हरार से मौका मिला। नरकटियागंज की सीट पर कायस्थ की जगह ब्राह्मण संजय पांडे को उतारा गया। इस तरह से कायस्थ समाज में टिकट कटने की नाराज़गी ज़ोर पकड़ रही है।


पटना के भाजपा चुनाव कार्यालय में भी चर्चा है कि पार्टी ने 50 से अधिक टिकट “अगड़ों” को दिए हैं, मगर कायस्थ वर्ग को इस बार विशेष रूप से इग्नोर किया गया। इस बात ने समुदाय में असंतोष को बढ़ा दिया है।


दीघा विधानसभा सीट पर भाजपा के संजीव चौरसिया उम्मीदवार हैं। वहीं, स्थानीय लोगों की बातचीत में यह सुनने को मिला कि इस बार भाजपा ने “कायस्थों को छोड़ दिया है”— हालांकि, यह भी आम राय है कि कायस्थ सीधे तौर पर भाजपा के खिलाफ वोट नहीं करेंगे, लेकिन उनकी नाराज़गी पार्टी के लिए परेशानी का कारण बन सकती है।


और गणित अब और जटिल हो गया है क्योंकि विपक्षी मोर्चों ने इस सीट पर अपना जमाव बढ़ा दिया है। जन सुराज पार्टी ने के सी सिंहा को उम्मीदवार बनाया है, जो व्याख्याता और लेखक हैं। इसके अलावा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इंद्रदीप चंद्रवंशी को उतारा है, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं और यादव-मुस्लिम वोट बैंक से लाभ लेने की संभावना रखते हैं।


विश्लेषकों का कहना है कि भले ही कायस्थ समुदाय संख्या में सबसे बड़ा नहीं है, लेकिन खासकर शहरी क्षेत्रों में उसका असर काफी रहा है। इस बार उनकी नाराज़गी को भाजपा हल्के में नहीं ले सकती—यदि पार्टी समय रहते इस नाराज़गी को शांत नहीं कर पाई, तो विपक्ष को इसका बड़ा फायदा मिल सकता है।

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