हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी छठ पूजा का पावन पर्व चार दिनों तक अत्यंत श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाएगा। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और झारखंड में बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है, लेकिन अब इसका विस्तार पूरे देश और विदेशों तक हो चुका है। छठ पूजा सूर्य उपासना का पर्व है, जिसमें सूर्य देव और छठी मइया को अर्घ्य देकर जीवन, ऊर्जा और परिवार के कल्याण के लिए प्रार्थना की जाती है।
छठ पूजा का मूल उद्देश्य सूर्य देव का आभार व्यक्त करना और उनसे स्वास्थ्य, संतान-सुख, दीर्घायु और समृद्धि की कामना करना है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य देव ही जीवन और प्रकृति के पोषक हैं, और छठ का व्रत व्यक्ति को शुद्धता, संयम और समर्पण का पाठ पढ़ाता है।
इस व्रत की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। पहले दिन व्रती नदी या तालाब में स्नान कर घर की शुद्धि करता है और सात्विक भोजन करता है। इस दिन का भोजन बिना प्याज-लहसुन का होता है और शरीर-मन की पवित्रता का ध्यान रखा जाता है।
दूसरे दिन खरना होता है, जिसे छठ व्रत का सबसे कठिन लेकिन पवित्र हिस्सा माना जाता है। पूरे दिन निर्जला व्रत रखने के बाद शाम को व्रती गुड़-चावल और दूध से बनी खीर, रोटी और फल से प्रसाद तैयार करता है। यह प्रसाद सूर्य देव और छठी मइया को अर्पित किया जाता है और फिर परिवार और समाज के साथ साझा किया जाता है।
तीसरे दिन संध्या अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन व्रती नदी या तालाब के किनारे परिवार और अन्य श्रद्धालुओं के साथ सूर्यास्त के समय जल में खड़े होकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करता है। गीत-भजन, घाट की सजावट और दीपों की रोशनी से वातावरण भक्तिमय हो उठता है।
चौथे और अंतिम दिन उषा अर्घ्य दिया जाता है। व्रती प्रातःकाल सूर्य के उदय होने से पहले घाट पर पहुँचकर उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करता है। यह क्षण सबसे पवित्र माना जाता है क्योंकि यह व्रत की पूर्णता और आशीर्वाद का प्रतीक है। इसके बाद व्रती व्रत का समापन करता है और प्रसाद ग्रहण करता है।
वर्ष 2025 में छठ पूजा 25 अक्टूबर से शुरू होकर 28 अक्टूबर को समाप्त होगी। यह पर्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि पर्यावरणीय और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। छठ व्रत हमें सिखाता है कि प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना, अनुशासन में रहना और संयम का पालन करना ही सच्ची भक्ति है।
छठ पूजा में पालन किए जाने वाले नियम अत्यंत सख्त और शुद्धता पर आधारित होते हैं। व्रती को सात्विक जीवन अपनाना होता है, घर में स्वच्छता बनाए रखनी होती है, और मन-वचन-कर्म से शुद्ध रहना होता है। इस व्रत में किसी भी प्रकार की अपवित्रता या दिखावे की गुंजाइश नहीं होती।
छठ व्रत की सुंदरता उसकी सादगी में है — मिट्टी के दीये, बांस की टोकरी, ठेकुआ का प्रसाद, और सूर्य को अर्घ्य देने का भाव — ये सब इस पर्व को अद्वितीय बनाते हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की उस भावना का उत्सव है, जहाँ मनुष्य प्रकृति के साथ एकाकार होकर अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता है।
