भारत ने काबुल में अपने तकनीकी मिशन को दूतावास में बदला, तालिबान ने तेज़ की TAPI परियोजना की रफ़्तार

Jitendra Kumar Sinha
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भारत ने मंगलवार शाम (21 अक्तूबर 2025) यह घोषणा की कि उसकी राजधानी काबुल (अफगानिस्तान) में स्थित तकनीकी मिशन को तत्काल प्रभाव से पूर्ण राजनयिक मिशन — यानी Embassy of India, Kabul — के दर्जे में उन्नत कर दिया गया है। Ministry of External Affairs (MEA) के बयान के अनुसार यह कदम भारत की उस नीति को दर्शाता है कि वह अफगानिस्तान पक्ष के साथ सभी क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को गहरा करना चाहता है। यह निर्णय उस समय हुआ है जब अफगान विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तकी की भारत यात्रा (9 – 15 अक्तूबर) समाप्त हुई है — उनसे वार्ता के दौरान ही यह संकेत दिया गया था कि दिल्ली, काबुल में अपनी भूमिका बढ़ाएगा। 


भारत ने हालांकि अभी तक Taliban शासन को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी है, फिर भी इस कदम को रणनीतिक बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। भारत ने अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद अपने राजनयिक मिशनों को खाली किया था। इसके बाद जून 2022 में काबुल में एक ‘तकनीकी टीम’ भेजी गई थी जो मानव-हित सहायता, शिक्षा-स्वास्थ्य तथा विकास सहयोग की कामकाजी भूमिका निभा रही थी। अब उसी टीम को ‘दूतावास’ दर्जा दिया गया है। MEA ने कहा है कि यह दूतावास भारत की सहायता को अफगान की “समग्र विकास, मानवीय सहायता और क्षमता-निर्माण पहलों” के अनुरूप बढ़ाएगा, जो अफगान समाज की प्राथमिकताओं व आकांक्षाओं के अनुरूप होगा। हालांकि, इस उन्नयन के बावजूद मिशन-प्रमुख का दर्जा चीफ डि’अफेयरस (Chargé d’Affaires) होगा, राजदूत नहीं; 


यह इस बात का संकेत है कि भारत अब भी तालिबान को पूर्ण मान्यता नहीं दे रहा। मुत्तकी ने भारत यात्रा के दौरान पत्रकारों को बताया कि काबुल जल्द ही भारत में अपनी राजनयिक टीम भेजेगा, जो दो एडवाइजर्स के रूप में शुरुआत करेगा। इस पूरे घटनाक्रम को देखा जा रहा है कि यह भारत-अफगान रिश्तों में एक नया अध्याय खोलने जैसा है। समीक्षकों का कहना है कि भारत इस कदम से अपनी रणनीतिक मौजूदगी को बढ़ा रहा है, विशेष रूप से उस समय जब अफगानिस्तान-पाकिस्तान के संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं और चीन-पाकिस्तान का प्रभाव भी क्षेत्र में बढ़ रहा है। भारत ने यह स्पष्ट किया है कि उसका मुख्य उद्देश्य अफगानिस्तान की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता है। लेकिन दूसरी ओर भारत को मानवाधिकार, विशेष रूप से महिलाओं-और-लड़कियों के अधिकार, तथा अल्पसंख्यकों की स्थिति जैसे मुद्दों पर अब भी तालिबान शासन के प्रति अपनी चिंताओं को नहीं छोड़ा है। 


इस प्रकार यह कदम एक व्यावहारिक रुख को दर्शाता है: मानते हुए कि अफगानिस्तान अब तालिबान शासन के अंतर्गत है, भारत ने पूरी तरह से पीछे हटने के बजाय उसमें अपनी भूमिका को संयमित एवं सार्थक बनाने का विकल्प चुना है। भविष्य में यदि अफगानिस्तान में स्थिरता आएगी और सुधार होगा, तो भारत-तालिबान संबंध आगे और विकसित हो सकते हैं।

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