क़तर द्वारा अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष विराम की घोषणा को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। शुरुआत में क़तर के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा था कि यह समझौता “दोनों भाई देशों की सीमा पर तनाव कम करने” के लिए हुआ है, जिससे माना गया कि क़तर दुरंद लाइन—यानि पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच 1893 में खींची गई विवादित सीमा—को आधिकारिक सीमा के रूप में स्वीकार कर रहा है। लेकिन कुछ ही घंटों बाद क़तर ने उसी बयान को अपडेट कर “सीमा” शब्द को पूरी तरह हटा दिया और इसे केवल “दो भाई देशों के बीच तनाव कम करने का समझौता” कहा। इस छोटे से शब्द बदलाव ने पाकिस्तान को गहरी कूटनीतिक चोट दी है।
दुरंद लाइन पर अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच दशकों से विवाद चला आ रहा है। यह सीमा ब्रिटिश भारत के ज़माने में तय हुई थी, जिसे पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा मानता है, पर अफ़ग़ानिस्तान ने कभी भी इसकी वैधता स्वीकार नहीं की। तालिबान शासन आने के बाद से यह विवाद और बढ़ गया है। दोनों देशों की सेनाओं के बीच सीमा पार गोलीबारी, ड्रोन हमले और आतंकवाद के आरोप आम हो चुके हैं। ऐसे में क़तर की मध्यस्थता से हुआ यह समझौता उम्मीद की किरण माना जा रहा था, लेकिन “सीमा” शब्द हटने के बाद इसका अर्थ ही बदल गया।
अफ़ग़ानिस्तान ने स्पष्ट कर दिया कि बैठक में दुरंद लाइन पर कोई चर्चा नहीं हुई और यह मामला “दो देशों के बीच का विषय” है, जिसका हल भविष्य में पारस्परिक बातचीत से ही निकलेगा। पाकिस्तान चाहता था कि इस समझौते में क़तर के माध्यम से दुरंद लाइन को सीमा के रूप में अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिले, लेकिन अब यह संभावना लगभग समाप्त हो गई है। इसलिए इस घटना को पाकिस्तान की कूटनीतिक हार के रूप में देखा जा रहा है।
विश्लेषकों के अनुसार क़तर ने जानबूझकर ऐसा किया ताकि वह किसी पक्ष का समर्थन करने वाला न दिखे। क़तर की रणनीति यह है कि वह क्षेत्रीय शांति वार्ताओं में मध्यस्थ बना रहे, न कि किसी विवाद में फंसे। “सीमा” शब्द हटाने से क़तर ने यह संकेत दिया कि वह दुरंद लाइन को एक विवादित मुद्दा मानता है और इस पर कोई स्थिति नहीं लेना चाहता।
दूसरी ओर पाकिस्तान के लिए यह झटका इसलिए भी बड़ा है क्योंकि उसके लिए यह सीमा सुरक्षा, आतंकवाद नियंत्रण और आंतरिक स्थिरता से जुड़ा मामला है। अफ़ग़ानिस्तान की ओर से लगातार सीमा उल्लंघन, आतंकी घुसपैठ और गोलीबारी की शिकायतें पाकिस्तान कर चुका है, जबकि तालिबान सरकार उल्टा पाकिस्तान पर हवाई हमलों और नागरिक हताहतों के आरोप लगाती रही है।
यह युद्धविराम फिलहाल अस्थायी राहत है, लेकिन मूल विवाद जस का तस बना हुआ है। विशेषज्ञ मानते हैं कि जब तक दोनों देश दुरंद लाइन पर औपचारिक समझौते या आपसी स्वीकृति तक नहीं पहुँचते, तब तक हर बार ऐसा कोई “सीजफायर” केवल समय खरीदने की कोशिश होगी। पाकिस्तान की कोशिश रहेगी कि वह सीमा को अंतरराष्ट्रीय रूप से स्वीकार कराए, जबकि अफ़ग़ानिस्तान की नीति स्पष्ट है—वह इसे कभी मान्यता नहीं देगा।
कुल मिलाकर, क़तर के बयान में “सीमा” शब्द हटाना एक साधारण भाषाई परिवर्तन नहीं बल्कि एक कूटनीतिक संदेश है: विश्व समुदाय दुरंद लाइन को अब भी विवादित मानता है। पाकिस्तान को उम्मीद थी कि क़तर उसकी स्थिति को मजबूत करेगा, पर उल्टा यह बदलाव उसकी मान्यता की मांग को और कमजोर कर गया। यह घटना इस बात की याद दिलाती है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कभी-कभी एक शब्द ही पूरे समीकरण बदल देता है — और इस बार “सीमा” का गायब होना पाकिस्तान के लिए वही निर्णायक मोड़ बन गया।
