कोटा में 233 फीट ऊंचे रावण पुतले का हुआ दहन - बना वर्ल्ड रिकॉर्ड

Jitendra Kumar Sinha
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देशभर में विजयादशमी पर्व हर वर्ष बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों के दहन के साथ यह पर्व खुशहाली और धर्म की विजय का संदेश देता है। इस वर्ष का दशहरा खास बन गया जब राजस्थान के कोटा शहर ने दुनिया का सबसे ऊंचा रावण पुतला जलाकर इतिहास रच दिया।

कोटा में दशहरा मैदान पर 233 फीट ऊंचे रावण का पुतला तैयार किया गया था। इस अनोखे आयोजन ने न केवल देश बल्कि पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया। हालांकि कार्यक्रम से ठीक पहले तेज बारिश ने माहौल को चुनौतीपूर्ण बना दिया, लेकिन भारी भीड़ और आयोजकों की मेहनत ने सबको रोमांचित कर दिया। आखिरकार, ऐतिहासिक क्षण आया और आग लगते ही आकाश छूते इस रावण पुतले का दहन हुआ।

233 फीट ऊंचे पुतले ने एशिया और इंडिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराया। रिकॉर्ड टीम की मौजूदगी में यह कीर्तिमान आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त हुआ। टीम ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की उपस्थिति में मेला समिति को प्रमाण पत्र और मेडल सौंपा। यह पल पूरे कोटा और राजस्थान के लिए गर्व का क्षण बन गया।

हर वर्ष दशहरे पर देशभर के विभिन्न शहरों में रावण दहन के आयोजन होते हैं। दिल्ली का रामलीला मैदान, जयपुर का दशहरा मेला और कोटा का आयोजन विशेष पहचान रखता है। लेकिन इस बार कोटा का 233 फीट ऊंचा पुतला परंपरा और आधुनिकता के मेल का सशक्त उदाहरण बन गया। आयोजन समिति ने तकनीक, सुरक्षा और शिल्पकला का ऐसा संगम प्रस्तुत किया कि यह पर्व यादगार बन गया।

दिल्ली, जयपुर और कोटा में बारिश ने दशहरे के आयोजन को प्रभावित किया। नई दिल्ली के रामलीला मैदान में होने वाले रावण दहन कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को शामिल होना था, लेकिन तेज बारिश के कारण वे नहीं पहुंच पाए। इसके बावजूद देशभर में उत्साह और भक्ति का माहौल बना रहा।

दशहरा केवल एक पर्व नहीं है, बल्कि यह जीवन का संदेश है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः अच्छाई ही जीतती है। कोटा का रावण दहन वर्ल्ड रिकॉर्ड इस संदेश को और अधिक प्रभावी बनाता है कि भारतीय संस्कृति अपनी परंपराओं को संजोते हुए नए कीर्तिमान गढ़ने की क्षमता रखती है।

233 फीट ऊंचे रावण का दहन केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर, सामाजिक एकता और आधुनिक उपलब्धि का प्रतीक बन गया। कोटा का यह कीर्तिमान आने वाले वर्षों तक लोगों को प्रेरित करेगा कि परंपराओं को जीवंत रखते हुए भी नए आयाम स्थापित किया जा सकता हैं।

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