ब्रह्मांड की अनंत गहराइयों में पृथ्वी बस एक छोटा-सा नीला बिंदु है। अनगिनत तारों, ग्रहों और आकाशगंगाओं के बीच यह प्रश्न हमेशा से मानवता को विचलित करता रहा है कि क्या हम सच में अकेले हैं? प्राचीन सभ्यताओं से लेकर आधुनिक विज्ञान तक, मनुष्य हमेशा किसी न किसी रूप में "दूसरी दुनियाओं के प्राणियों" की कल्पना करता आया है। हाल ही में कनाडा के कार्लटन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस जिज्ञासा को एक नया वैज्ञानिक आधार दिया है। उनका अध्ययन बताता है कि सौर मंडल में ‘वॉन न्यूमैन प्रोब्स’ नामक एलियन रोबोट पहले से मौजूद हो सकते हैं, जो न केवल खुद को दोहरा सकते हैं बल्कि अंतरिक्ष में गुप्त रूप से घूम भी रहे हों।
वॉन न्यूमैन प्रोब्स का नाम मशहूर गणितज्ञ जॉन वॉन न्यूमैन के नाम पर रखा गया है। उन्होंने यह विचार दिया था कि कोई भी मशीन स्वयं की प्रतिकृति (Self-Replicating Machine) बना सकती है। यानि, अगर किसी सभ्यता के पास अत्यधिक उन्नत तकनीक हो, तो वह ऐसे रोबोट यान बना सकता है जो स्वयं की नकल (कॉपी) बना सकें, अंतरिक्ष में ऊर्जा एकत्रित कर सकें, नए ग्रहों या क्षुद्रग्रहों से संसाधन लेकर खुद को पुनर्निर्मित कर सकें और इस तरह पूरी आकाशगंगा में खुद को फैलाते हुए जानकारी एकत्रित कर सके।
इस विचार को आज “वॉन न्यूमैन प्रोब हाइपोथिसिस” कहा जाता है। यह मान्यता वैज्ञानिक समुदाय में इस वजह से चर्चित है, क्योंकि यह तारों के बीच यात्रा करने की कठिनाई का एक व्यावहारिक समाधान सुझाती है यानि सभ्यता खुद नहीं जाती, बल्कि अपने स्वायत्त यंत्र भेजती है जो उसके लिए ब्रह्मांड का सर्वेक्षण करें।
कार्लटन विश्वविद्यालय की टीम ने जो अध्ययन प्रस्तुत किया है, वह चौंकाने वाला है। उनका मानना है कि यदि किसी उन्नत सभ्यता ने लाखों वर्ष पहले ऐसे रोबोट छोड़े हों, तो उनमें से कुछ आज भी हमारे सौर मंडल में “स्लीप मोड” में सक्रिय हो सकते हैं। ये यान संभवत क्षुद्रग्रह बेल्ट, बृहस्पति या शनि के चंद्रमाओं या पृथ्वी के निकट अंतरिक्ष क्षेत्र (Near-Earth Space) में छिपे हो सकते हैं। इनकी उपस्थिति, इसलिए नहीं पता चल पाई होगी क्योंकि ये रेडियो सिग्नल नहीं भेजते और प्राकृतिक वस्तुओं की तरह छिपकर रहते हैं। वैज्ञानिकों ने यह भी कहा है कि इनकी पहचान के लिए "टेक्नोसिग्नेचर्स" यानि तकनीकी निशानों की खोज करनी चाहिए, जैसे किसी चट्टान या उपग्रह से निकलने वाली अप्राकृतिक ऊर्जा या धातु के निशान।
अगर पृथ्वी के दृष्टिकोण से सोचें, तो किसी भी सभ्यता के लिए अंतरतारकीय यात्रा (Interstellar Travel) बहुत महंगी, जोखिमभरी और समय लेने वाली होगी। ऐसे में रोबोटिक खोज यान भेजना एक बेहतर विकल्प है। संभावित कारण हो सकता हैं, सुरक्षा की दृष्टिकोण से खुद जाने के बजाय रोबोट भेजना जोखिम घटाता है। दीर्घकालिक अनुसंधान के लिए मशीनें हजारों वर्षों तक काम कर सकती हैं। प्रसार स्व-प्रतिकृति क्षमता से वे अरबों किलोमीटर तक फैल सकती हैं। गोपनीयता होगी कि यह बिना शोर, बिना संकेत के गुप्त निगरानी कर सकते हैं। संभव है कि सौर मंडल में ऐसे यान डेटा एकत्र कर रहे हों, या शायद तकनीकी प्रगति का निरीक्षण कर रहे हों, ठीक वैसे ही जैसे किसी नए पाए गए ग्रह पर जीवन के संकेत खोजते हैं।
यह विचार रोमांचक होने के साथ-साथ थोड़ा भयावह भी है। अगर यह यान सचमुच मौजूद हैं, तो इसका अर्थ यह हुआ कि किसी न किसी सभ्यता को हमारे अस्तित्व की जानकारी है। वह देख रहा है, पर उन्हें नहीं देख पा रहे, क्योंकि उनकी तकनीक समझ से बहुत आगे की है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि शायद यूएफओ (UFO) या अनआइडेंटिफाइड एनॉमलस फिनोमेना (UAP) में जो रहस्यमयी वस्तुएं देखी जाती हैं, वे इन्हीं वॉन न्यूमैन प्रोब्स की झलक हो सकती हैं। हालाँकि, अब तक ऐसा कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है जो यह सिद्ध कर सके।
कनाडाई शोधकर्ताओं का यह कहना है कि अब तक SETI (Search for Extraterrestrial Intelligence) कार्यक्रम मुख्यतः रेडियो संकेतों की खोज में केंद्रित था। लेकिन अगर एलियन सभ्यता गैर-रेडियो तरीके से काम करती है, जैसे स्व-प्रतिकृति रोबोट द्वारा, तो अपनी खोज की रणनीति बदलनी होगी। अब वैज्ञानिक सुझाव दे रहे हैं कि क्षुद्रग्रहों की सतहों का सूक्ष्म विश्लेषण करना चाहिए, चंद्रमा के अंधेरे हिस्से में कोई अप्राकृतिक धात्विक वस्तु खोजनी चाहिए और अंतरिक्ष यानों द्वारा लिए गए पुराने चित्रों की पुन: जांच करनी चाहिए। क्योंकि संभव है कि किसी पुराने नासा मिशन की तस्वीर में कोई छोटा-सा, लेकिन अनदेखा ‘रोबोट प्रोब’ छिपा हो।
इतिहास में ऐसे कई रहस्यमय घटनाक्रम हैं जिनमें आसमान से चमकदार वस्तुएं दिखाई देने की बातें दर्ज हैं। प्राचीन मिस्र, माया, और भारतीय ग्रंथों में भी “आकाशयान”, “विमान” या “देवदूतों के वाहन” का उल्लेख मिलता है। हालाँकि यह वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं, लेकिन यह दिखाता है कि मानव मन लंबे समय से बाहरी प्राणियों की उपस्थिति महसूस करता आया है। आधुनिक काल में भी 1947 में रोसवेल घटना, 2004 में यूएस नेवी द्वारा ‘टिक-टैक यूएफओ’ का फुटेज और हाल ही में अमेरिकी रक्षा विभाग की UAP रिपोर्ट, इन सभी ने इस संभावना को बल दिया कि शायद कोई “अज्ञात तकनीकी शक्ति” पृथ्वी के आसमान में मौजूद है।
कल्पना किया जाए तो एक ऐसे यान की जो दिखने में एक धातु के उल्कापिंड जैसा हो, लेकिन उसके भीतर हों नैनो-रोबोटिक फैक्ट्री, कृत्रिम बुद्धिमत्ता युक्त मस्तिष्क, सौर ऊर्जा संचायक पैनल और कॉस्मिक विकिरण से रक्षा प्रणाली। ऐसा यान किसी ग्रह के धात्विक अयस्कों से खुद को पुनःनिर्मित कर सकता है। वह अन्य यानों को “जन्म” देकर उन्हें आगे भेज सकता है, जैसे एक जीव अपनी संतति फैलाता है। यह विचार केवल कल्पना नहीं है बल्कि यह आधुनिक एआई और नैनो-टेक्नोलॉजी इसे धीरे-धीरे संभव की दिशा में ले जा रहा है।
वर्तमान में मानवता की तकनीक इतनी उन्नत नहीं है कि वह अंतरतारकीय वॉन न्यूमैन प्रोब बना सके। फिर भी, नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA), और निजी कंपनियाँ जैसे स्पेसएक्स और ब्लू ओरिजिन ऐसे यंत्रों पर शोध कर रही हैं जो स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकें। यदि मानवता अगले कुछ शताब्दियों में ऊर्जा और संसाधनों की समस्या हल कर लेती है, तो शायद दूसरी आकाशगंगाओं में अपने रोबोट भेजने में सक्षम होंगे। यह प्रयास न केवल हमें एलियन सभ्यताओं को समझने में मदद करेगा बल्कि यह भी सिखाएगा कि कैसे एक सभ्यता खुद को ब्रह्मांड में “अमर” बना सकता है।
हालाँकि यह विचार अत्यंत आकर्षक है, लेकिन वैज्ञानिक समुदाय का एक बड़ा हिस्सा इसे अब भी परिकल्पना मात्र मानता है। उनका तर्क है कि अब तक कोई भौतिक प्रमाण या मलबा नहीं मिला है, यदि रोबोट मौजूद होते, तो स्पष्ट ऊर्जा संकेत मिलता और सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्यों अब तक किसी ने संपर्क नहीं किया?
अब दुनिया भर में कई परियोजनाएँ ऐसे संकेतों की खोज में लगी हैं SETI Institute रेडियो संकेतों के अलावा लेजर फ्लैशेज और धात्विक परावर्तन की खोज कर रहा है। NASA का LUCY मिशन बृहस्पति के ट्रोजन क्षुद्रग्रहों की सतह का निरीक्षण करेगा और ESA का JUICE मिशन बृहस्पति के चंद्रमाओं के बीच जीवन और तकनीकी संकेत खोजने जा रहा है।
कनाडाई अध्ययन ने इन मिशनों को एक नई दृष्टि दी है कि अब वैज्ञानिक इनसे न केवल प्राकृतिक जीवन, बल्कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता वाले जीवन रूपों की तलाश भी करेंगे।
हो सकता है कि आने वाले वर्षों में ऐसा कोई संकेत मिले जो इस पूरे रहस्य पर से परदा उठा दे और यह भी संभव है कि कभी कुछ न पा सकें लेकिन खोज जारी रहेगी। क्योंकि मानव जिज्ञासा ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति है।
