असम सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए राज्य के छह प्रमुख समुदायों, ताई अहोम, चुटिया, मोरान, मोटोक, कोच-राजबोंगशी और टी ट्राइब्स (आदिवासी), को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने घोषणा की है कि मंत्रियों के समूह (GoM) की रिपोर्ट को कैबिनेट ने हरी झंडी दे दी है। यह फैसला न केवल इन समुदायों के लंबे संघर्ष का सम्मान है, बल्कि असम की सामाजिक संरचना में महत्वपूर्ण परिवर्तन का संकेत भी देता है।
इन छह समुदायों की एसटी दर्जे की मांग कई दशकों से जारी थी। इनका कहना था कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से ये जनजातीय पहचान रखते हैं, परंतु संवैधानिक मान्यता न मिलने के कारण वे सरकारी सुविधाओं, आरक्षण और विकास योजनाओं से वंचित रह जाते थे। अब, इस मंजूरी के बाद केंद्र को अंतिम निर्णय भेजा जाएगा, जिसके बाद संसद के माध्यम से कानूनी रूप से एसटी दर्जा प्रदान किया जाएगा।
इस समुदाय में 1. ताई अहोम- अहोम साम्राज्य के वंशज, जिन्होंने मध्यकाल में असम पर शासन किया और क्षेत्र की संस्कृति पर गहरा प्रभाव छोड़ा। 2. चुटिया- ऐतिहासिक रूप से एक शक्तिशाली जनजातीय समुदाय, जिनकी सांस्कृतिक विरासत आज भी असम की पहचान है। 3. मोरान एव मोटोक- मेहनतकश और पारंपरिक कृषि-केंद्रित समुदाय, जो ब्रह्मपुत्र घाटी की सामाजिक संरचना में अहम भूमिका निभाते हैं। 4. कोच-राजबोंगशी- उत्तर-पूर्व और पूर्वी भारत में फैला बड़ा समुदाय, जिसकी सांस्कृतिक जड़ें प्राचीन राजवंशों से जुड़ी हैं। 5. टी ट्राइब्स (आदिवासी)- चाय बागानों में कार्यरत श्रमिक समुदाय, जिनकी आर्थिक-सामाजिक स्थिति लंबे समय से पिछड़ी हुई थी, शामिल है।
एसटी का दर्जा मिलने से इन समुदायों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण, शिक्षा में विशेष सुविधाएँ, कल्याणकारी योजनाओं का सीधा लाभ और सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार जैसी बड़ी राहतें मिलेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे इन समुदायों के जीवन स्तर में तेजी से सुधार आएगा और राज्य में सामाजिक समावेशन की प्रक्रिया मजबूत होगी।
यह कदम असम की राजनीति में भी बड़ा परिवर्तन ला सकता है। एसटी समुदायों का राजनीतिक महत्व काफी बढ़ जाता है, जिससे आने वाले चुनावों में सत्ता समीकरण प्रभावित होने की संभावना है। साथ ही, यह फैसला असम में जातीय संतुलन और सामुदायिक सद्भाव को भी नई दिशा देगा।
असम सरकार का यह कदम निस्संदेह ऐतिहासिक और दूरगामी प्रभाव वाला है। दशकों के संघर्ष और मांगों को आखिरकार मंजूरी की रोशनी मिली है। इन छह समुदायों के लिए यह सिर्फ एक प्रशासनिक घोषणा नहीं है, बल्कि पहचान, सम्मान और नए भविष्य का द्वार है। यह उम्मीद की जाती है कि यह फैसला न केवल सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध होगा, बल्कि असम की बहुसांस्कृतिक बिरादरी को और अधिक मजबूत बनाएगा।
