पेड़ बना ईश्वर का घर - 800 साल पुराना है - “चैपल ओक ट्री”

Jitendra Kumar Sinha
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फ्रांस की धरती पर स्थित एक ऐसा पेड़, जिसने न केवल तूफानों का सामना किया, बल्कि अपने भीतर श्रद्धा और आस्था का आश्रय भी दे दिया, यही है “चैपल ओक ट्री”। यह अद्भुत वृक्ष फ्रांस के अलौविल-बेलेफोस (Allouville-Bellefosse) गांव में स्थित है और लगभग 800 वर्ष पुराना माना जाता है। यह सिर्फ एक विशाल ओक का पेड़ नहीं है, बल्कि ईश्वर के प्रति मानव की अटूट भक्ति और सृजनशीलता का प्रतीक बन चुका है।

सन् 1669 में जब एक भयंकर आंधी और बिजली ने इस विशाल ओक पेड़ को प्रभावित किया, तो उसका तना भीतर से खोखला हो गया। किसी भी सामान्य व्यक्ति के लिए यह एक आपदा होती, लेकिन स्थानीय पुजारी ने इसे अवसर में बदल दिया। उन्होंने उस खोखले तने के भीतर एक छोटा सा चैपल (चर्च) बना दिया, ताकि यह स्थान ईश्वर की आराधना के लिए उपयोग हो सके।

धीरे-धीरे यह चैपल श्रद्धालुओं के बीच प्रसिद्ध हो गया और लोग इसे “चैपल ओक” कहने लगे। यह केवल पूजा का स्थल नहीं रहा, बल्कि श्रद्धा का प्रतीक बन गया, जिसने दिखाया कि ईश्वर की उपस्थिति किसी भी रूप में, कहीं भी महसूस की जा सकती है।

सबसे अनोखी बात यह है कि इस ओक पेड़ में दो छोटे चर्च बनाए गए हैं। पहला नीचे के हिस्से में है, जहां लोग प्रार्थना करते हैं, जबकि दूसरा ऊपर की ओर बनाया गया है, जिसे लकड़ी की सीढ़ियों के माध्यम से पहुँचा जा सकता है। इन चर्चों को “Notre Dame de la Paix” (अर्थात् ‘शांति की माता’) और “Chamber of the Hermit” कहा जाता है।

इन छोटे-छोटे पूजा स्थलों में हर साल हजारों तीर्थयात्री और पर्यटक आते हैं। वे न केवल प्रार्थना करते हैं बल्कि प्रकृति और ईश्वर के इस अनूठे संगम को देखकर श्रद्धा से भर उठते हैं।

इतनी पुरानी संरचना को जीवित रखना आसान नहीं है। समय और मौसम ने इस पेड़ की मजबूती को प्रभावित किया है। इसलिए फ्रांस सरकार और स्थानीय प्रशासन ने इसे संरक्षित करने के लिए विशेष कदम उठाए हैं।

पेड़ के कुछ हिस्सों को लकड़ी की शिंगल्स (लकड़ी की ढालियों) से ढका गया है, ताकि सड़न रोकी जा सके। कमजोर शाखाओं को लौह खंभों का सहारा दिया गया है। आसपास के क्षेत्र को संरक्षित धरोहर स्थल घोषित किया गया है।

“चैपल ओक ट्री” केवल एक पेड़ नहीं है, बल्कि एक जीवंत उदाहरण है कि प्रकृति और धर्म जब एक साथ आता है, तो चमत्कार जन्म लेता है। यह पेड़ आज भी खड़ा है एक जीवित गवाह के रूप में, जो बताता है कि ईश्वर का घर केवल पत्थरों से नहीं, बल्कि प्रकृति की गोद में भी बन सकता है।



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