हवा के दबाव से चलने वाला है - ‘फ्लुइड रोबोट’

Jitendra Kumar Sinha
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तकनीकी दुनिया में हर दिन कोई न कोई नई खोज जन्म लेती है, जो मानव सभ्यता को और अधिक उन्नत दिशा में आगे बढ़ाती है। लेकिन ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित हालिया तकनीक ने एक बिल्कुल नई सोच को जन्म दिया है। वैज्ञानिकों ने ऐसे सॉफ्ट रोबोट्स बनाया है जो न तो बिजली से चलती है, न ही किसी मोटर या इलेक्ट्रॉनिक सर्किट की जरूरत उन्हें पड़ती है। यह पूरी तरह हवा के दबाव (एयर प्रेशर) से संचालित होती है। इन्हें “फ्लुइड रोबोट्स (Fluid Robots)” कहा गया है क्योंकि इनमें ऊर्जा का स्रोत किसी विद्युत प्रणाली के बजाय तरल या गैस का प्रवाह है।

यह खोज न केवल रोबोटिक्स इंजीनियरिंग की दिशा बदल सकती है बल्कि ऊर्जा दक्षता (Energy Efficiency), पर्यावरण संरक्षण और सस्ती तकनीक के क्षेत्र में भी नई संभावनाओं के द्वार खोलती है।

फ्लुइड रोबोट्स असल में सॉफ्ट रोबोट्स की एक श्रेणी में आता है यानि ऐसे रोबोट जो धातु की कठोर संरचना के बजाय लचीले पदार्थों से बने होते हैं। पारंपरिक रोबोट्स में मोटर, गियर, सेंसर और कंप्यूटर सिस्टम का इस्तेमाल होता है। लेकिन इन रोबोट्स में ऐसा कुछ भी नहीं होता है।

इन रोबोट्स के अंदर हवा या तरल का नियंत्रित दबाव पैदा किया जाता है। जब यह दबाव किसी विशेष दिशा में छोड़ा जाता है, तो रोबोट का वह हिस्सा सिकुड़ता या फैलता है, जिससे गति उत्पन्न होती है। सरल शब्दों में कहें तो यह वही सिद्धांत है, जिस पर शरीर का फेफड़ा काम करता है, हवा के अंदर जाने और बाहर आने से फैलना और सिकुड़ना।

सॉफ्ट रोबोटिक्स का विचार नया नहीं है। यह शाखा पिछले दो दशकों से विकसित हो रही है, लेकिन अब इसमें हवा और तरल की शक्ति का उपयोग कर इसे पूरी तरह स्वतंत्र बना दिया गया है।

सॉफ्ट रोबोटिक्स का उद्देश्य ऐसे रोबोट विकसित करना है जो मानव शरीर की तरह लचीला और अनुकूलनीय हों। पारंपरिक धातु आधारित रोबोट कठोर सतहों पर तो काम कर सकता है, लेकिन जटिल और संवेदनशील वातावरण जैसे चिकित्सा, जीवविज्ञान, या समुद्री अनुसंधान में उसका उपयोग सीमित होता है। वहीं, सॉफ्ट रोबोट्स इन परिस्थितियों में अधिक उपयोगी साबित हो सकता है क्योंकि यह लचीला, हल्का और अनुकूल होता है।

फ्लुइड रोबोट्स का पूरा आधार न्यूमेटिक (Pneumatic) प्रणाली पर है। यह प्रणाली हवा या गैस के दबाव को यांत्रिक ऊर्जा में बदल देता है। रोबोट के भीतर हवा को एक छोटे पंप या दबाव टैंक से भेजा जाता है। इस दबाव को रोबोट के विशेष हिस्सों (जैसे हाथ, पैर या उंगली) में पहुँचाया जाता है। हवा के प्रवाह से यह हिस्सा फैलता या सिकुड़ता है, जिससे गति उत्पन्न होती है।

इस प्रणाली में किसी सेंसर, कंप्यूटर चिप या मोटर की आवश्यकता नहीं होती है। यह पूरी तरह भौतिक दबाव के तालमेल पर निर्भर करती है, जिससे यह अधिक ऊर्जा-कुशल बन जाता है।

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यह फ्लुइड रोबोट्स बिना किसी बाहरी नियंत्रण के एक साथ तालमेल से काम कर सकता है। वैज्ञानिकों ने इसे इस तरह डिजाइन किया है कि हवा के प्रवाह में होने वाले दबाव परिवर्तन को यह खुद महसूस कर लेता है।

उदाहरण के लिए, यदि किसी एक रोबोटिक भाग में हवा का दबाव बढ़ता है तो बाकी हिस्से अपने आप संतुलन बना लेता है। यह प्रक्रिया वैसी ही है जैसी किसी संगीत बैंड में सभी वाद्य यंत्र बिना अलग-अलग निर्देश के एक ताल में बजते हैं।

इस समकालिकता (Synchronization) की वजह से रोबोटों का समूह एक साथ काम कर सकता है जैसे चलना, रेंगना या किसी वस्तु को एक साथ उठाना।

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की टीम ने अपने प्रयोगशाला में कई छोटे-छोटे फ्लुइड रोबोट्स तैयार किया है। उन्होंने इसे एक पारदर्शी ट्यूब से जोड़ दिया है, जिसमें हवा का प्रवाह होता था। परिणाम यह रहा कि रोबोट बिना किसी इलेक्ट्रॉनिक हस्तक्षेप के एक साथ “नाचने” लगा यानि तालमेल के साथ गति करने लगा।mटीम ने इसे “Air-Powered Self-Synchronizing Robots” नाम दिया है। उनका कहना है कि यह खोज “भविष्य की नॉन-इलेक्ट्रॉनिक मशीनों” की नींव रख सकता है।

इलेक्ट्रॉनिक मशीनें और रोबोट बड़ी मात्रा में बिजली की खपत करता है। फ्लुइड रोबोट्स केवल हवा के दबाव से चलता है, इसलिए इनकी ऊर्जा खपत अत्यंत कम होती है। क्योंकि इसमें कोई विद्युत सर्किट या बैटरी नहीं होता है, इसलिए इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट नहीं बनता। यह पर्यावरण के लिए एक बड़ा कदम है। इस रोबोट्स को बनाना पारंपरिक रोबोट्स की तुलना में बहुत सस्ता है। इसे छोटे उद्योग या वैज्ञानिक प्रयोगशाला में भी आसानी से बनाया जा सकता है। सॉफ्ट रोबोट्स मनुष्यों के साथ संपर्क में आ सकता है क्योंकि इसका शरीर लचीला होता है और चोट पहुँचाने का खतरा नहीं रहता है। इसलिए इसे चिकित्सा या शिक्षा जैसे क्षेत्रों में उपयोगी बनाया जा सकता है।

इस रोबोट्स का सबसे बड़ा उपयोग सर्जरी और रीहैबिलिटेशन (पुनर्वास) में देखा जा सकता है। यह ऐसे उपकरणों के रूप में काम कर सकता है जो रोगियों की मांसपेशियों के साथ तालमेल बनाकर पुनर्वास में मदद करे। अंतरिक्ष में बिजली की उपलब्धता सीमित होती है। वहाँ हवा के दबाव या गैस आधारित सिस्टम से चलने वाले फ्लुइड रोबोट्स उपयोगी साबित हो सकता है। कारखानों में छोटे, सटीक और लचीले कार्यों के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है, जैसे नाज़ुक वस्तुओं को उठाना, पैकिंग करना या सतहों की सफाई करना। कठिन इलाकों या मलबे में फंसे लोगों तक पहुँचने के लिए सॉफ्ट फ्लुइड रोबोट्स का प्रयोग किया जा सकता है। यह बिना बिजली या तार के आसानी से काम कर सकता है। समुद्र के भीतर जहाँ इलेक्ट्रॉनिक सर्किट खराब हो जाता है, वहाँ फ्लुइड रोबोट्स आसानी से कार्य कर सकता हैं क्योंकि यह पानी और दबाव दोनों सहन कर सकता है।

मुख्य शोधकर्ता डॉ. रॉबिन बिशप के अनुसार, “हमारा उद्देश्य ऐसे रोबोट बनाना था जो प्रकृति की तरह खुद-ब-खुद काम कर सकें। जैसे हमारे दिल की धड़कन बिना किसी इलेक्ट्रॉनिक नियंत्रण के चलती है, वैसे ही ये फ्लुइड रोबोट्स हवा के प्रवाह से तालमेल बनाकर चलते हैं।” उनका कहना है कि यह तकनीक भविष्य में ऐसे स्वायत्त यांत्रिक जीवों (Autonomous Mechanical Organisms) का मार्ग प्रशस्त करेगी जो पर्यावरण से ही ऊर्जा लेकर कार्य कर सके।

फ्लुइड रोबोट्स का डिजाइन पूरी तरह प्रकृति से प्रेरित है। वैज्ञानिकों ने ऑक्टोपस, जेलीफिश और मानव तंत्रिका प्रणाली का गहन अध्ययन किया है। इन जीवों में गति उत्पन्न करने के लिए कोई इलेक्ट्रॉनिक तंत्र नहीं होता है, बल्कि तरल दबाव और जैविक प्रवाह के सहारे काम होता है। इसी सिद्धांत को तकनीक के रूप में रूपांतरित कर फ्लुइड रोबोट्स बनाया गया है। 

हर नई तकनीक की तरह इसके भी कुछ व्यावहारिक सीमाएँ हैं। बहुत अधिक या कम दबाव से रोबोट का संतुलन बिगड़ सकता है। क्योंकि यह लचीले पदार्थ से बने होते हैं, इनकी उम्र पारंपरिक रोबोट्स से कम हो सकती है। फिलहाल यह छोटे और हल्के कार्यों के लिए ही उपयुक्त हैं। यह हवा या गैस पर निर्भर हैं, इसलिए अत्यधिक ऊँचाई या निर्वात में इनकी दक्षता घट सकती है। फिर भी, वैज्ञानिक इन सीमाओं पर काम कर रहे हैं और उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में ये चुनौतियाँ समाप्त हो जाएँगी।

फ्लुइड रोबोट्स को “पोस्ट-इलेक्ट्रॉनिक रोबोटिक्स” की शुरुआत कहा जा रहा है। यह अवधारणा सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी की दिशा में एक बड़ा कदम है। इससे औद्योगिक स्वचालन (Automation), पर्यावरण इंजीनियरिंग, रक्षा अनुसंधान और चिकित्सा तकनीक, सब कुछ बदल सकता है।

भारत में भी आईआईटी (IITs) और आईआईएससी जैसी संस्थाएँ सॉफ्ट रोबोटिक्स पर काम कर रही हैं। यदि यह तकनीक भारत में अपनाई जाती है, तो इसे कृषि क्षेत्र में स्वचालित सिंचाई प्रणाली, स्वास्थ्य सेवाओं में सस्ते रोबोटिक सहायक, औद्योगिक उत्पादन में लचीले उपकरण के रूप में उपयोग किया जा सकता है। साथ ही, भारत की विशाल जनसंख्या और ऊर्जा संकट के मद्देनजर ऐसी ऊर्जा-कुशल तकनीकें बहुत उपयोगी साबित होगी।

फ्लुइड रोबोट्स के व्यापक उत्पादन से लागत में कमी आएगी। क्योंकि इनमें महंगे इलेक्ट्रॉनिक घटकों की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए छोटे उद्यमी भी इसे अपनाकर स्थानीय उत्पादन इकाइयाँ स्थापित कर सकता है। यह “मेक इन इंडिया” जैसे अभियानों को भी बल देगा।

हर तकनीक के साथ एक सामाजिक जिम्मेदारी भी जुड़ी होती है। फ्लुइड रोबोट्स के प्रसार के साथ यह सुनिश्चित करना जरूरी होगा कि उसका उपयोग केवल मानव कल्याण के लिए ही हो, न कि किसी हथियार प्रणाली या निगरानी तंत्र के रूप में। चूंकि यह बिना इलेक्ट्रॉनिक नियंत्रण के काम करता है, इसलिए इसे हैक या ट्रैक करना कठिन होगा, जिससे सुरक्षा की नई चुनौतियाँ भी सामने आ सकती हैं।

फ्लुइड रोबोट्स तकनीक की दुनिया में एक मील का पत्थर हैं। यह न केवल ऊर्जा के नए स्रोतों की ओर ले जा रहा है,  बल्कि यह भी सिखा रहा है कि प्रकृति के सिद्धांतों को अपनाकर हम और बेहतर, सुरक्षित और टिकाऊ तकनीक बना सकते हैं।

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की यह खोज यह एहसास कराती है कि भविष्य की मशीनें न केवल स्मार्ट होंगी, बल्कि स्वाभाविक और पर्यावरण-मित्र भी।

किसने सोचा था कि एक दिन हवा, जिसे हर सांस में महसूस करते हैं,  एक ऐसी शक्ति बन जाएगी जो मशीनों को भी जीवन दे सकेगी?



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