आभा सिन्हा, पटना
भारतवर्ष सदा से देवी उपासना की भूमि रही है। यहाँ की धरती के कण-कण में शक्ति का निवास माना जाता है। देवी माँ के असंख्य रूप हैं, कभी वे अन्नपूर्णा बनकर सबका पेट भरती हैं, तो कभी दुर्गा बनकर दुष्टों का संहार करती हैं। इन्हीं रूपों में से एक हैं महिषमर्दिनी देवी, जिन्होंने असुरराज महिषासुर का वध कर देवताओं को पुनः उनका स्वर्गलोक लौटाया था।
पश्चिम बंगाल का वक्रेश्वर शक्तिपीठ इन्हीं माँ महिषमर्दिनी को समर्पित है। यह स्थल न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यहाँ माता के भ्रूमध्य (मन:) के गिरने की मान्यता है, इसलिए इसे “महिषमर्दिनी शक्तिपीठ” कहा जाता है। इस शक्तिपीठ के भैरव वक्रनाथ के रूप में प्रतिष्ठित हैं, जो यहाँ आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं।
देवी महिषमर्दिनी शक्तिपीठ की उत्पत्ति का आधार वह प्रसिद्ध पौराणिक प्रसंग है जो भगवान शिव और सती से जुड़ा है। पौराणिक कथा के अनुसार, राजा दक्ष ने जब यज्ञ का आयोजन किया, तो उसमें अपने दामाद भगवान शिव और पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया। सती बिना निमंत्रण के ही वहाँ पहुँचीं, किंतु अपने पति के अपमान को सह न सकी। क्रोध और लज्जा में उन्होंने यज्ञ अग्नि में कूदकर आत्मदाह कर लिया। यह दृश्य देखकर भगवान शिव क्रोध और वेदना से व्याकुल हो उठे। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को अपने कंधों पर उठाया और तांडव करने लगे। देवता भयभीत हो गए। तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए ताकि शिव शांत हों। जहाँ-जहाँ सती के अंग गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई। इसी क्रम में, जहाँ माता का भ्रूमध्य (मन:) गिरा, वह स्थान आज पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिला में स्थित “वक्रेश्वर महिषमर्दिनी शक्तिपीठ” के रूप में पूजित है।
महिषमर्दिनी का अर्थ है महिषासुर का मर्दन करने वाली देवी। माँ दुर्गा का यह स्वरूप शक्ति, साहस, नारीत्व और धर्म की रक्षा का प्रतीक है। कथाओं में वर्णन है कि जब देवता महिषासुर के आतंक से त्रस्त हो गए, तब उन्होंने अपनी-अपनी शक्तियों को मिलाकर अद्वितीय देवी दुर्गा की रचना की। वह देवी सिंह पर आरूढ़ थीं, दस भुजाओं में अस्त्र-शस्त्र धारण किए, तेजस्विता और दिव्यता से दीप्त। उन्होंने महिषासुर से युद्ध किया और अंततः उसका वध किया। इस प्रकार माँ महिषमर्दिनी अर्थात् ‘महिषासुर का मर्दन करने वाली’ कहलाईं। यह प्रतीक केवल असुरों के वध का नहीं है, बल्कि अहंकार, लोभ, अन्याय और अधर्म के नाश का भी है। वक्रेश्वर की महिषमर्दिनी इसी दिव्य शक्ति का मूर्त रूप हैं। श्रद्धालु यहाँ आकर अपने भीतर के महिषासुर रूपी नकारात्मकता को पराजित करने का संकल्प लेते हैं।
वक्रेश्वर पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिला में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। यह दुबराजपुर स्टेशन से लगभग सात किलोमीटर की दूरी पर, पापहर नदी के तट पर बसा हुआ है। यहाँ की प्राकृतिक सुषमा अद्भुत है। चारों ओर हरियाली, नदी का कलकल प्रवाह और वातावरण में व्याप्त आध्यात्मिकता इस स्थान को अलौकिक बनाता है।
इतिहासकारों का मत है कि वक्रेश्वर क्षेत्र प्राचीनकाल में वक्रतीर्थ के नाम से जाना जाता था। यहाँ शैव और शक्ति उपासना का संगम हुआ। वक्रेश्वर मंदिर में शिवलिंग के रूप में वक्रनाथ की पूजा होती है, जो इस शक्तिपीठ के भैरव माने जाते हैं। इसीलिए यहाँ शैव और शाक्त परंपरा का अद्भुत संतुलन देखने को मिलता है।
वक्रेश्वर के महिषमर्दिनी शक्तिपीठ का वर्तमान मंदिर अपेक्षाकृत आधुनिक स्वरूप में पुनर्निर्मित किया गया है, परंतु इसका आध्यात्मिक इतिहास अत्यंत प्राचीन है। मुख्य गर्भगृह में देवी महिषमर्दिनी की मूर्ति स्थापित है। माँ सिंह पर आरूढ़ हैं, एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में शंख, जबकि अन्य हाथों में विविध अस्त्र हैं। देवी की आँखें करुणा से भरी हैं, किंतु उनका तेज असुरों के हृदय को कंपित कर देता है। मंदिर के निकट ही वक्रनाथ भैरव का प्राचीन मंदिर स्थित है। श्रद्धालु पहले भैरव को नमन कर बाद में माँ के दर्शन करते हैं। मंदिर प्रांगण में एक विशाल यज्ञशाला, पवित्र कुंड और ध्यान-स्थल भी निर्मित हैं जहाँ साधक ध्यान और पूजा में लीन रहते हैं। मंदिर की दीवारों पर देवी की विभिन्न लीलाओं के दृश्य अंकित हैं, महिषासुर वध, शुंभ-निशुंभ युद्ध, देवी का सिंहासनारोहण आदि।
इस शक्तिपीठ से अनेक धार्मिक मान्यताएँ जुड़ी हुई हैं। स्थानीय जनश्रुति है कि जो भक्त सच्चे मन से यहाँ आकर माँ महिषमर्दिनी की आराधना करता है, उसकी मानसिक शांति और आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है। माँ के दर्शन से अहंकार, भय और दुर्भावनाएँ दूर होती हैं। महिलाएँ विशेष रूप से संतान प्राप्ति और सौभाग्य के लिए यहाँ व्रत रखती हैं। वक्रनाथ भैरव के दर्शन बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। कहा जाता है कि वक्रेश्वर में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं, इसलिए नदी का नाम पापहर (पाप हरने वाली) पड़ा।
हर शक्तिपीठ के साथ भैरव का स्थान भी अनिवार्य होता है। वक्रेश्वर में यह भूमिका निभाते हैं वक्रनाथ भैरव। भैरव का अर्थ है भय का नाश करने वाला। वक्रनाथ को यहाँ सिद्धियों के दाता माना जाता है। स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, वक्रनाथ की आराधना करने से तांत्रिक साधनाएँ सिद्ध होती हैं। अनेक साधक अमावस्या की रात में यहाँ साधना करते हैं। भैरव मंदिर के चारों ओर घंटियों की गूंज, दीपों की लौ और धूप की सुगंध भक्तों को भक्ति के गहरे अनुभव में डुबो देती है।
वक्रेश्वर महिषमर्दिनी शक्तिपीठ में वर्षभर भक्तों का तांता लगा रहता है, किंतु विशेष अवसरों पर यहाँ जनसैलाब उमड़ पड़ता है। शारदीय नवरात्र और दुर्गा पूजा सबसे बड़ा पर्व है। नौ दिनों तक भव्य आरती, हवन और सांस्कृतिक आयोजन होते हैं। माघ पूर्णिमा और चैत्र नवरात्रि के अवसरों पर विशेष यज्ञ और जलाभिषेक का आयोजन होता है। अमावस्या की रात्रि को तांत्रिक साधक यहाँ विशेष साधना करने आते हैं।वक्रेश्वर मेला स्थानीय स्तर पर आयोजित होता है, मेला शक्ति, संगीत और संस्कृति का संगम है।
वक्रेश्वर क्षेत्र में गरम जलकुंड भी हैं, जिनका तापमान वर्षभर स्थिर रहता है। कहा जाता है कि यह कुंड पापहर नदी के समीप स्थित हैं, और इनमें स्नान करने से शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह गर्म झरना (Hot Springs) भूगर्भीय गतिविधियों का परिणाम हैं, किंतु भक्त इन्हें देवी की दिव्य कृपा मानते हैं। स्नान के पश्चात भक्त मंदिर में दर्शन कर प्रसाद ग्रहण करते हैं।
बंगाल सदैव शक्ति साधना का केंद्र रहा है, तारापीठ, कालिघाट, नलहाटी और वक्रेश्वर जैसे स्थान इस परंपरा के जीवंत प्रतीक हैं। वक्रेश्वर का उल्लेख कई संत कवियों की रचनाओं में मिलता है। माना जाता है कि जयदेव (गीतगोविंद के रचयिता) और चंडीदास जैसे भक्त कवि वक्रेश्वर में साधना हेतु आए थे। यहाँ की शक्ति आराधना में संगीत, नृत्य और ध्यान तीनों का सुंदर समावेश है। स्थानीय महिलाएँ शक्ति-गीत गाती हैं, जिनमें माँ के प्रति समर्पण, आस्था और प्रेम झलकता है।
देवी की उपासना केवल पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रकृति के प्रति सम्मान की भी शिक्षा देती है। वक्रेश्वर के आसपास हरियाली, पापहर नदी, गरम जलकुंड और पक्षियों की मधुर ध्वनि मिलकर ऐसा अनुभव कराता हैं मानो स्वयं प्रकृति भी माँ की सेवा में रत हो। स्थानीय प्रशासन और मंदिर समिति ने यहाँ स्वच्छता अभियान चलाया है ताकि श्रद्धालु पवित्र वातावरण में दर्शन कर सकें। हर वर्ष हरित महोत्सव भी मनाया जाता है, जिसमें वृक्षारोपण और नदी की सफाई का कार्य किया जाता है।
वक्रेश्वर शक्तिपीठ केवल पूजा का स्थान नहीं है, बल्कि यह सामाजिक चेतना का भी केंद्र है। मंदिर ट्रस्ट द्वारा गरीब विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति, निर्धन परिवारों के लिए वस्त्र-वितरण, चिकित्सा शिविर, महिला स्वसहायता समूहों को सहयोग, जैसी कई सेवाएँ की जाती हैं। त्योहारों के दौरान यहाँ लोकनृत्य, भक्ति संगीत, शिल्प प्रदर्शनी और साहित्यिक गोष्ठियाँ आयोजित की जाती हैं।
बंगाल की तांत्रिक परंपरा में वक्रेश्वर का विशेष स्थान है। कहते हैं कि यहाँ कामाख्या, तारापीठ की तरह अनेक साधक वर्षों तक तपस्या करते रहे हैं। रात के समय मंदिर परिसर में साधक ध्यानमग्न रहते हैं। कुछ लोककथाओं में वर्णन है कि माँ महिषमर्दिनी स्वयं प्रकट होकर साधकों को दर्शन देती हैं। इन रहस्यमय किंवदंतियों ने इस स्थल को अध्यात्म और रहस्यवाद का अद्भुत केंद्र बना दिया है।
महिषमर्दिनी केवल पौराणिक देवी नहीं है, बल्कि वह आंतरिक शक्ति और आत्मविजय की प्रतीक हैं। महिषासुर भीतर के अज्ञान, आलस्य, अहंकार और लालच का रूपक है। जब माँ की उपासना करते हैं, तो भीतर की नकारात्मक शक्तियों का विनाश करते हैं। इस प्रकार महिषमर्दिनी की आराधना सिखाती है कि सच्ची विजय बाहरी नहीं, भीतरी होती है जब मन के राक्षसों को जीत लेते हैं।
आज वक्रेश्वर शक्तिपीठ न केवल बंगाल, बल्कि पूरे भारत और विदेशों में भी प्रसिद्ध हो चुका है। नेपाल, बांग्लादेश, थाईलैंड और मॉरीशस से भी श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। भारत सरकार ने इसे राष्ट्रीय तीर्थस्थल के रूप में विकसित करने की योजना बनाई है। पर्यटन विभाग ने यहाँ सड़क, आवास, जलसुविधा और सुरक्षा व्यवस्था में सुधार किया है।
कई भक्तों ने अपने अनुभव साझा किया है कि कठिन बीमारियों से मुक्ति मिली। कुछ ने आर्थिक संकट से उबरने की बात कही। कई साधकों को ध्यानावस्था में माँ की झलक प्राप्त हुई। ऐसे अनगिनत प्रसंग इस स्थल की दिव्यता को और पुष्ट करता है।
वक्रेश्वर का महिषमर्दिनी शक्तिपीठ केवल एक मंदिर नहीं है, बल्कि नारी शक्ति, भक्ति और आत्मजागरण का जीवंत प्रतीक है। यहाँ आने वाला हर भक्त अपने भीतर के भय, अहंकार और अंधकार को पीछे छोड़कर एक नई आस्था, नई ऊर्जा और नई दृष्टि लेकर लौटता है। पापहर नदी के किनारे, वक्रनाथ भैरव की उपस्थिति में, माँ महिषमर्दिनी आज भी अपने भक्तों की रक्षा कर रही हैं, उनसे मिलने के लिए बस एक शुद्ध मन और श्रद्धा की आवश्यकता है।
