मुंबई के जाने-माने स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा एक बार फिर से सुर्खियों में हैं। इस बार मंच पर कही किसी बात को लेकर नहीं, बल्कि उनकी पहनी हुई एक टी-शर्ट ने उन्हें चर्चा के केंद्र में ला दिया है। सोशल मीडिया पर वायरल हुई तस्वीर में कामरा एक ऐसी टी-शर्ट पहने दिखते हैं, जिस पर एक कुत्ते (श्वान) की तस्वीर है और उसके नीचे ‘आरएसएस’ जैसे दिखने वाले अक्षर छपे हैं। विवाद यहीं से शुरू हुआ।
तस्वीर सामने आने के बाद भाजपा और शिवसेना के कुछ नेताओं ने इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मजाक उड़ाने की कोशिश बताया है। उनका आरोप है कि इस टी-शर्ट के जरिए जानबूझकर आरएसएस की छवि को आहत किया गया है। वहीं, दूसरी ओर कुछ सोशल मीडिया यूजर्स का कहना है कि टी-शर्ट पर छपा अक्षर ‘आर’ स्पष्ट नहीं दिख रहा है, इसलिए वह ‘आरएसएस’ नहीं बल्कि ‘पीएसएस’ या कुछ और भी हो सकता है।
मसलन, एक टी-शर्ट पर अस्पष्ट अक्षरों से इतना बड़ा विवाद खड़ा हो जाना अपने आप में इस मुद्दे को दिलचस्प बनाता है।
कुणाल कामरा का नाम हमेशा राजनीति, सत्ता और संस्थाओं पर व्यंग्यात्मक टिप्पणियों से जुड़ा रहा है। उनके स्टैंड-अप शो हों या सोशल मीडिया पोस्ट, वे अक्सर किसी न किसी संवेदनशील राजनीतिक चर्चा के केंद्र में आ जाते हैं। इस पृष्ठभूमि को देखते हुए विरोधी दलों ने इस टी-शर्ट को भी उनके ‘सामान्य रवैये’ का हिस्सा बताया है। वहीं उनके समर्थकों का कहना है कि यह केवल व्यंग्य की अभिव्यक्ति है और इसे अतिसंवेदनशील होकर नहीं देखना चाहिए।
जैसे ही तस्वीर वायरल हुई, सोशल मीडिया पर दो खेमे बन गए। पहला, जो इसे आरएसएस पर तंज मान रहा है और कामरा को माफी मांगने की सलाह दे रहा है। वहीं दूसरा, जो इसे एक कलाकार की स्वतंत्र अभिव्यक्ति बता रहा है और कह रहा है कि टी-शर्ट को पढ़ने को लेकर भ्रम है। कुछ लोग यह तर्क भी दे रहे हैं कि यदि कोई अक्षर साफ न दिखे तो उस पर राजनीतिक प्रतिक्रिया देना जल्दबाजी होगा।
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बहुत महत्त्वपूर्ण है। कॉमेडियन, कलाकार और व्यंग्यकार अक्सर राजनीति और सामाजिक मुद्दों पर तीखी टिप्पणियाँ करते रहे हैं। लेकिन हाल के वर्षों में कई बार ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जब कलाकारों की अभिव्यक्ति विवादों में घिर गई है। कुणाल कामरा की यह टी-शर्ट का मामला भी इसी बड़े विमर्श का हिस्सा बन गया है कि व्यंग्य और अपमान में अंतर कहाँ तय किया जाए।
कुणाल कामरा की टी-शर्ट पर दिख रहे अस्पष्ट अक्षरों ने एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या हमारे समाज में संवाद और व्यंग्य के लिए पर्याप्त स्थान बचा है? क्या एक कलाकार की अभिव्यक्ति को हमेशा राजनीतिक चश्मे से ही देखा जाएगा? या फिर हम मुद्दों को समझने से पहले ही अपने निष्कर्ष तैयार कर लेते हैं? एक साधारण टी-शर्ट से निकला यह विवाद सिर्फ एक हास्य कलाकार से जुड़ा मामला नहीं है, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और हमारे सामाजिक-राजनीतिक वातावरण का दर्पण भी है।
