बिहार की राजनीति में 20 नवंबर 2025 का दिन इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया। पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में वह दृश्य एक बार फिर दोहराया गया, जब जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार की राजनीति के धुरी-पुरुष नीतीश कुमार ने दसवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। यह केवल एक औपचारिक आयोजन नहीं था, बल्कि बिहार के राजनीतिक चरित्र, जनता के भरोसे, संघीय राजनीति के समीकरणों और भविष्य के विकास मॉडल की एक नई घोषणा जैसा था।
राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान द्वारा दिलाई गई पद एवं गोपनीयता की शपथ ने एक दशक से अधिक समय तक बिहार की राजनीति में निरंतर बने रहे नीतीश कुमार फैक्टर को फिर से केंद्र में ला खड़ा किया। समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, तथा अनेक राज्यों के मुख्यमंत्रियों की उपस्थिति ने यह साफ कर दिया कि बिहार का यह सत्ता परिवर्तन केवल राज्य का मामला नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति का एक बड़ा अध्याय है।
नीतीश कुमार के साथ भाजपा कोटे से सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर एनडीए की साझा नेतृत्व संरचना को मजबूती प्रदान की। कुल मिलाकर 27 मंत्रियों ने शपथ ली, जिन्होंने अगले पांच वर्षों में बिहार के प्रशासनिक ढांचे को दिशा देने का संकल्प लिया।
प्रधानमंत्री की उपस्थिति केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि बिहार-NDA को राष्ट्रीय राजनीति में पुनः सशक्त करने का संकेत था। बिहार के सामाजिक स्वरूप, जातिगत समीकरण और हाल के चुनाव परिणामों ने इस शपथ ग्रहण को एक राष्ट्रीय महत्व का आयोजन बना दिया है।गांधी मैदान में उपस्थित विशाल जनसमूह ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि जनता विकास की निरंतरता, स्थिरता और शासन की पारदर्शिता की अपेक्षाएँ रखती है। नीतीश कुमार से जनता की अपेक्षा हमेशा से यह रही है कि वे सामाजिक न्याय और विकास के बीच संतुलन बनाकर एक स्थिर प्रशासन दे सकते हैं।
दसवीं बार मुख्यमंत्री बनना भारतीय लोकतंत्र में किसी भी नेता के लिए एक अनोखी उपलब्धि है। यह न केवल नीतीश कुमार की राजनीतिक पकड़ का परिणाम है, बल्कि बिहार की जनता का उन पर लगातार जताया गया भरोसा भी दर्शाता है। नीतीश कुमार गठबंधन की राजनीति के सबसे अनुभवी नेता माने जाते हैं। वे परिस्थितियों के अनुसार राजनीतिक संतुलन बनाने का कौशल रखते हैं। 2025 में उनका फिर से एनडीए के साथ जाना और एक मजबूत सरकार बनाना इसी कौशल का परिणाम है।
“सुशासन बाबू” की छवि 2005 से ही जनता के बीच स्थिर रही है। सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा, क़ानून-व्यवस्था जैसे मुद्दों पर उनके योगदान को जनता भूल नहीं सकी और उन्हें एक बार फिर सत्ता सौंप दी है। बिहार के युवा आज भी उन्हें एक व्यवहारिक और दूरदर्शी नेता मानते हैं। यही कारण है कि 20 से 35 वर्ष के मतदाताओं की एक बड़ी संख्या ने उन्हें समर्थन दिया।
बारह से अधिक राज्यों के मुख्यमंत्री हरियाणा, असम, गुजरात, मेघालय, उत्तर प्रदेश, नगालैंड, ओडिशा, दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान की उपस्थिति ने इस आयोजन को राष्ट्रीय राजनीतिक शक्ति-संतुलन का प्रदर्शन बना दिया है।
हाल के चुनाव में एनडीए को मिली भारी जनादेश ने भाजपा-जदयू गठबंधन को मजबूत बनाया है। उपमुख्यमंत्री पद पर सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा की नियुक्ति से भाजपा के कार्यकर्ताओं में उत्साह है, जबकि जदयू को नेतृत्व और प्रशासनिक अनुभव का लाभ।
शपथ लेने वालों में सभी प्रमुख वर्गों, जातियों और क्षेत्रों के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया है। यह सामाजिक समावेशन पर आधारित राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। शपथ लेने वालों में
सम्राट चौधरी
विजय कुमार सिन्हा
विजय कुमार चौधरी
बिजेन्द्र प्रसाद यादव
श्रवण कुमार
मंगल पाण्डेय
डॉ. दिलीप जायसवाल
अशोक चौधरी
लेशी सिंह
मदन सहनी
नितिन नवीन
रामकृपाल यादव
संतोष कुमार सुमन
सुनील कुमार
मोहम्मद जमा खान
संजय सिंह ‘टाइगर’
अरुण शंकर प्रसाद
सुरेन्द्र मेहता
नारायण प्रसाद
रमा निषाद
लखेन्द्र कुमार रौशन
श्रेयसी सिंह
डॉ. प्रमोद कुमार
संजय कुमार
संजय कुमार सिंह
दीपक प्रकाश
शामिल हैं। इस सूची को देखकर स्पष्ट होता है कि मंत्रिमंडल जातीय, क्षेत्रीय और राजनीतिक रूप से संतुलित रखा गया है।
नई सरकार का मुख्य लक्ष्य है आधारभूत संरचना, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और रोजगार पर केंद्रित है। विशेषकर उद्योग और निवेश को लेकर राज्य नई नीतियों पर काम कर रहा है। नीतीश कुमार की सरकार के सबसे बड़े मजबूत पक्षों में से एक कानून-व्यवस्था में सुधार है। नई सरकार इस मोर्चे पर और कठोर कदम उठाने पर विचार कर रही है। बिहार में बड़ी आबादी युवा का है। नई सरकार ने IT पार्क, स्टार्टअप हब, और MSME सेक्टर को बढ़ावा देने का वादा किया है। जदयू की पहचान महिला सशक्तिकरण नीतियों से भी जुड़ी है। आरक्षण, स्वयं सहायता समूह और कौशल विकास को योजनाओं को और विस्तार देने की तैयारी है।
नीतीश कुमार की वापसी विपक्षी दलों, विशेषकर RJD, कांग्रेस और वाम दलों के लिए एक चुनौती है। विपक्ष को अब नए सिरे से रणनीति बनानी होगी। यह गठबंधन पहले भी उतार-चढ़ाव से गुजर चुका है। लेकिन 2025 का जनादेश दोनों दलों को मजबूती से साथ जोड़ता है। बिहार की राजनीति हमेशा राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करती रही है। नीतीश कुमार की यह पारी भी आने वाले लोकसभा चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे ताकि युवा वर्ग को भरोसा मिले। ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी स्वास्थ्य सेवाएँ पूरी तरह विकसित नहीं हो सकी हैं। बिहार में बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है। आधुनिक तकनीक, सिंचाई और मंडी व्यवस्था सुधार पर काम की दरकार है। यूनिवर्सिटी सुधार, तकनीकी शिक्षा और प्राथमिक शिक्षा में गुणवत्ता सुधार प्राथमिकता होनी चाहिए।
गांधी मैदान में आयोजित समारोह ने एक बार फिर यह साबित किया है कि बिहार लोकतंत्र की भूमि है। जैसे-जैसे मंत्रियों ने एक-एक कर शपथ ली, वैसे-वैसे जनता के चेहरे पर नई उम्मीदें उभरती गईं। इस आयोजन ने यह संकेत दिया है कि बिहार नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ना चाहता है और नेतृत्व को जनता का मजबूत समर्थन प्राप्त है।
दसवीं बार मुख्यमंत्री बनकर नीतीश कुमार ने न केवल राजनीतिक इतिहास रचा है, बल्कि यह संदेश भी दिया कि निरंतरता, अनुभव और स्थिर शासन ही बिहार को विकास के रास्ते पर आगे ले जा सकता है। यह शपथ ग्रहण समारोह केवल सत्ता परिवर्तन नहीं था, बल्कि बिहार के लिए एक नए युग की शुरुआत था। आने वाले वर्षों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या नीतीश कुमार अपनी विकास नीतियों, सुशासन मॉडल और राजनीतिक संतुलन की कला के दम पर बिहार को उन ऊंचाइयों तक ले जा पायेगा, जिसकी उम्मीद जनता उनसे कर रही है।
