बिहार विधानसभा चुनाव, 2025 - 6 नवंबर को पहले चरण में - 121 सीटों पर होगी मतदान

Jitendra Kumar Sinha
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बिहार विधानसभा चुनाव का सियासी पारा अपने चरम पर है। 6 नवंबर को होने वाले प्रथम चरण के मतदान के लिए मंच पूरी तरह सज चुका है। यह चरण न केवल आगामी राजनीतिक हवा का रुख तय करेगा, बल्कि कई राजनीतिक दिग्गजों के भाग्य का फैसला भी करेगा। चुनाव प्रचार अपने अंतिम दौर में है और सभी राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। पहले चरण में कुल 121 विधानसभा सीटों पर मतदान होना है, और इन सीटों पर जीत-हार के दावे दोनों प्रमुख गठबंधनों (एनडीए और महागठबंधन) की ओर से जोर-शोर से किया जा रहा है।

पहले चरण का चुनाव हमेशा से ही निर्णायक माना जाता रहा है। यह मतदाताओं के मन-मिजाज को भांपने का पहला लिटमस टेस्ट होता है। 121 सीटों का यह आंकड़ा इतना बड़ा है कि यहाँ मिली बढ़त या मनोवैज्ञानिक लाभ, बाद के चरणों के लिए एक मजबूत नींव का काम करता है। यही कारण है कि कोई भी दल कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता है।

पहले चरण की सबसे खास बात 'दिग्गजों' की उपस्थिति है। कई बड़े नाम, मंत्री और स्थापित नेता अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इनकी उपस्थिति ने कई साधारण सीटों को 'हॉट सीट' में तब्दील कर दिया है, जहाँ मुकाबला केवल दो उम्मीदवारों के बीच नहीं है, बल्कि दो विचारधाराओं और प्रतिष्ठा के बीच सिमट गया है। जैसे-जैसे चुनाव प्रचार अंतिम दौर में पहुँच रहा है, आरोप-प्रत्यारोप और 'दावे पर दावे' का दौर भी तेज हो गया है। दोनों ही गठबंधन अपनी-अपनी जीत के प्रति आश्वस्त दिख रहे हैं, लेकिन असली फैसला तो 6 नवंबर को ईवीएम में बंद होगा।

जब बात बिहार की राजनीति की हो, तो पटना जिला की 14 विधानसभा सीटों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। यह न केवल प्रशासनिक बल्कि राजनीतिक सत्ता का भी केंद्र है। पटना जिला की 14 सीटें मोकामा, बाढ़, बख्तियारपुर, दीघा, बांकीपुर, कुम्हरार, पटना साहिब, फतुहा, दानापुर, मनेर, फुलवारी (SC), मसौढ़ी (SC), पालीगंज, और बिक्रम, राजनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

अगर पिछले विधानसभा चुनाव 2020 के आँकड़ों पर नजर डालते हैं, तो यहाँ का समीकरण बेहद दिलचस्प नजर आता है। 2020 में, 14 में से 9 सीटों पर महागठबंधन ने शानदार जीत दर्ज की थी। इनमें मोकामा, बख्तियारपुर, दानापुर, मनेर, फुलवारी, मसौढ़ी, पालीगंज और विक्रम जैसी महत्वपूर्ण सीटें शामिल थी। दूसरी ओर, एनडीए को केवल 5 सीटों (दीघा, बांकीपुर, कुम्हरार, पटना साहिब और बाढ़) से संतोष करना पड़ा था।

यह आँकड़ा स्पष्ट दिखाता है कि पिछले चुनाव में राजधानी पटना में महागठबंधन का दबदबा था। इस बार एनडीए के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस समीकरण को उलटने की है, जबकि महागठबंधन अपनी पुरानी जीत को न केवल दोहराना चाह रहा है, बल्कि उसमें विस्तार करने की भी कोशिश कर रहा है।

पटना जिला के सीटों में बांकीपुर विधानसभा सीट इस बार सबसे चर्चित 'हॉट सीट' में से एक बनी हुई है। यह सीट परंपरागत रूप से भाजपा का एक मजबूत किला माना जाता है। इस किला को फतह करने के लिए इस बार भाजपा के शीर्ष नेताओं ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है।

यहाँ से बिहार सरकार में पथ निर्माण मंत्री नितिन नवीन भाजपा के उम्मीदवार हैं। नितिन नवीन के लिए यह चुनाव व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का भी सवाल है, क्योंकि वह चौथी बार विधानसभा पहुँचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनका राजनीतिक भविष्य इस सीट के परिणाम पर काफी हद तक निर्भर करता है। एक मंत्री के तौर पर उनके काम और भाजपा के संगठनात्मक ढाँचे के बल पर वह जीत के प्रति आश्वस्त हैं।

लेकिन इस बार मुकाबला एकतरफा नहीं है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने रेखा कुमारी को मैदान में उतारकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। RJD की रणनीति स्पष्ट है, भाजपा के पारंपरिक वोटों में सेंधमारी करना और अपने कोर वोट बैंक को एकजुट रखना। बांकीपुर में भाजपा नेताओं का जमावड़ा और प्रचार में झोंकी गई ताकत यह दर्शाता है कि पार्टी इस सीट को किसी भी कीमत पर गँवाना नहीं चाहती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या नितिन नवीन अपना 'चौका' लगा पाते हैं, या रेखा कुमारी कोई बड़ा उलटफेर करने में कामयाब होती हैं।

बांकीपुर हॉट सीट है, तो दानापुर विधानसभा सीट इस बार 'सुपर हॉट सीट' बन चुका है। यहाँ का मुकाबला दो ऐसे नामों के बीच है, जिनकी अपनी-अपनी राजनीतिक जमीन और प्रभाव का क्षेत्र है। यह लड़ाई दो व्यक्तियों से बढ़कर दो राजनीतिक शैलियों की टक्कर बन गई है।

एक तरफ राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के 'बाहुबली' नेता रितलाल यादव हैं, जो इस सीट से वर्तमान विधायक भी हैं। रितलाल यादव की छवि और उनका प्रभाव क्षेत्र जगजाहिर है। लेकिन इस चुनावी जंग का सबसे नाटकीय पहलू यह है कि रितलाल यादव वर्तमान में भागलपुर जेल में बंद हैं और वहीं से अपना चुनाव अभियान संचालित कर रहे हैं। यह बिहार की राजनीति का वह पहलू है जहाँ उम्मीदवार की भौतिक अनुपस्थिति के बावजूद, उनका नाम और प्रभाव ही समर्थकों को लामबंद करने के लिए काफी माना जाता है।

दूसरी तरफ, भाजपा ने एक बड़े और राष्ट्रीय चेहरे पर दांव खेला है। भाजपा की ओर से पूर्व केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव मैदान में हैं। रामकृपाल यादव की एक लंबी राजनीतिक पृष्ठभूमि रही है और वह केंद्रीय राजनीति का एक जाना-पहचाना चेहरा हैं। भाजपा उनके अनुभव, केंद्रीय योजनाओं और संगठन की ताकत के सहारे रितलाल यादव के 'बाहुबली' किले को भेदना चाहती है। दानापुर का यह मुकाबला इस चुनाव के सबसे रोमांचक मुकाबलों में से एक होने जा रहा है, जहाँ एक तरफ जेल में बंद विधायक की साख है, तो दूसरी तरफ एक पूर्व केंद्रीय मंत्री का राजनीतिक कद दांव पर है।

मोकामा सीट हमेशा से सुर्खियों में रहती है। बाहुबल, राजनीति और सत्ता का तिकड़ी यहां का पुराना अध्याय है। इस बार भी यहां मुकाबला दिलचस्प है। बख्तियारपुर सीट नीतीश कुमार का इलाका माना जाता है। यहां जेडीयू की प्रतिष्ठा का सवाल है। पटना साहिब में शहरी मुद्दे, पहचान की राजनीति और पार्टी हाईकमान का असर ज्यादा चलता है। दीघा और कुम्हरार सीटें भाजपा की पारंपरिक ताकत वाली सीटें मानी जाती हैं। यहां विपक्ष कमजोर नहीं है, लेकिन लय पकड़ने की कोशिश में है। पालीगंज, मसौढ़ी, और फुलवारी सीटें ग्रामीण सियासत, जातीय समीकरण और विकास के वादों का संगम है। हर सीट पर मकसद एक ही है जनता के दिल में घर बनाना।

पहला चरण बिहार चुनाव की पूरी पटकथा लिख सकता है। 121 सीटों पर हो रही यह 'जोर आजमाइश' महज एक शुरुआत है, लेकिन यह निर्णायक भी हो सकता है। पटना जिला के 14 सीटें, विशेषकर बांकीपुर और दानापुर, यह संकेत देगी कि शहरी और अर्ध-शहरी मतदाता किस ओर जा रहे हैं। क्या नितिन नवीन अपना किला बचा पाएंगे? क्या जेल में बंद रितलाल यादव अपनी सीट बरकरार रख पाएंगे? इन सभी सवालों का जवाब 6 नवंबर को मतदाता देंगे, लेकिन यह तय है कि पहले चरण का परिणाम बिहार की भावी सरकार की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।



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