बिहार विधानसभा चुनाव हमेशा से देश की राजनीति के लिए एक प्रयोगशाला रहा है। यह वह धरती है, जहां राजनीतिक समीकरण पल भर में बदल जाता है और तमाम विरोधाभासों के बावजूद नए सामाजिक गठजोड़ जन्म ले लेता है। इस बार भी चुनावी रण खत्म हो चुका है, विजयी दल जश्न में है, पराजित दल आत्मग्लानि में डूबा है और कुछ दल ऐसे भी हैं जो प्रायश्चित, आत्मचिंतन और आत्ममंथन तीनों में डूबे दिखाई दे रहे है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बिहार के इस जनादेश ने कई गहरा संदेश छोड़ा हैं, जिसे केवल चुनावी विश्लेषक ही नहीं, बल्कि राजनीतिक दलों को भी समझना बेहद जरूरी है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का सबसे बड़ा दिलचस्प पहलू यह रहा है कि राजद के यादव और मुस्लिम वोट बैंक लगभग बरकरार रहा है। एनडीए का परंपरागत EBC, OBC, SC-ST वोट भी मजबूती से साथ खड़ा दिखा। लेकिन निर्णायक भूमिका निभाई अन्य समुदायों और तटस्थ मतदाताओं ने, जो इस बार बड़े पैमाने पर एनडीए की ओर शिफ्ट हुआ।
एनडीए का कुल वोट 47% रहा, जिसमें यादव 3%, मुस्लिम 2%, फारवर्ड 7%, गैर–यादव OBC 7%, EBC 15% और SC/ST 13%। महागठबंधन का कुल वोट 38% रहा, जिसमें यादव 10%, मुस्लिम 13%, फारवर्ड 2%, गैर–यादव OBC 3%, EBC 6% और SC/ST 4%, अन्य दलों (ओवैसी, पीके आदि) का कुल वोट 10% रहा, जिसमें यादव 1%, मुस्लिम 3%, फारवर्ड 2%, गैर–यादव OBC 1%, EBC 4% और SC/ST 5% शामिल है।
ऐसी स्थिति में साफ है कि राजद का कोर वहीं है, एनडीए का कोर भी वहीं है, लेकिन निर्णायक वर्ग ने विपक्ष की जगह सत्ता के साथ जाना बेहतर समझा।
इस चुनाव का सबसे निर्णायक फैक्टर रहा EBC का 15% मतदाताओं का एनडीए के पक्ष में जाना। इसका कारण है पीएम मोदी की योजनाओं का प्रत्यक्ष लाभ, ग्रामीण क्षेत्रों में महिला लाभार्थियों का मजबूत रुझान, राजनीतिक सामाजिक सशक्तिकरण,‘यादव-मुस्लिम’ वर्चस्व की छाया में दबे रहने का भय। यह वर्ग बिहार में सत्ता का बैरोमीटर बन चुका है।
गैर-यादव OBC हमेशा से swing voter माना जाता रहा है। इस बार एनडीए 7% और महागठबंधन 3% यानि इस समूह ने महागठबंधन को स्पष्ट संदेश दिया कि ‘सिर्फ यादव-मुस्लिम समीकरण से सत्ता नहीं जीती जा सकती है।’
SC/ST वर्ग का मतदान का व्यवहार बेहद बारीक संकेत देता है। एनडीए को 13% मिलना बताता है कि दलितों में ‘नीति-स्थिरता’ की चाह, भीड़भाड़ और जातीय हिंसा की आशंकाओं से दूरी, लाभार्थी योजनाओं की सीधी पकड़ और संगठित कैडर की मजबूत पहुंच रहा है। महागठबंधन केवल 4% तक सिमट गया, यह राजनीतिक असंगति और दुविधा का परिणाम है।
यादव वोट राजद के साथ 10%, एनडीए 3%, अन्य 1% यह पैटर्न बिल्कुल सामान्य और अपेक्षित था। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि यादव वोट अब चुनाव जीतने का आधार नहीं रहा, बल्कि केवल ‘कोर बैकबोन’ भर रह गया है। वहीं मुस्लिम वोट महागठबंधन 13%, अन्य दल (ओवैसी आदि) 3%, एनडीए—2% रहा। मुस्लिम मतदाता विभाजित नहीं हुआ, लेकिन 360° एकतरफा वोटिंग नहीं हुई। इसका मुख्य कारण रहा स्थानीय नेतृत्व, सीमांचल की राजनीति, मुद्दों का क्षेत्रीय चरित्र, ओवैसी और पीके का प्रभाव। इससे यह प्रवृत्ति साफ है कि मुस्लिम वोट ‘भावनात्मक वोट बैंक’ से ‘व्यावहारिक वोट बैंक’ की ओर बढ़ रहा है।
जातीय आंकड़ों को ही चुनावी जीत का आधार मान लेना महागठबंधन की सबसे बड़ी भूल रही। वोटर का एक बड़ा वर्ग राजद के नेतृत्व को लेकर आश्वस्त नहीं था। नीतीश कुमार के लगातार प्रयोगों के बाद भी जनता ने ‘अनिश्चितता’ की जगह ‘स्थिरता’ को चुना। महागठबंधन की पार्टियां आपस में सामंजस्य नहीं कर सकी, उम्मीदवार चयन कई जगह विवादित रहा और प्रचार तंत्र कमजोर रहा। वोटर समझदार है। यह साबित हो गया है कि मतदाता सिर्फ वादों से नहीं, प्रयोज्यता और स्थिरता से प्रभावित होता है।
गांव से शहर तक Ujjwala, PMAY, PDS, DBT, महिला समूह, उजाला, जन-धन, स्वच्छ भारत ने ‘नीतिशास्त्र’ से ज्यादा ‘जीवनशास्त्र’ बदला है। राष्ट्रीय स्तर पर नरेन्द्र मोदी के नाम पर जो भरोसा है, उसका बिहार में भी गहरा असर रहा। हर बार नया प्रयोग, गठबंधन और टूट के बावजूद जनता को कहीं न कहीं लगा कि "नीतीश के साथ जोखिम कम है।" भाजपा और जेडीयू दोनों के बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं ने परिणाम को निर्णायक मोड़ दिया है।
3% मुस्लिम, 1% OBC, 5% SC-ST वोट हासिल कर ओवैसी ने यह साबित कर दिया है कि ‘भावनात्मक राजनीति अब क्षेत्रीय स्वभाव ले रही है।’ वहीं प्रशांत किशोर (जनसुराजपार्टी) का 4% EBC और 5% SC-ST वोट दर्शाता है कि नीति-प्रधान राजनीति के लिए भी वोटर में एक नई उत्सुकता है।
राजनीतिक दल अक्सर हार की जिम्मेदारी EVM पर डालते हैं, जीत का श्रेय जातिगत समीकरणों को देते हैं और बाकी समय ढोंग, नारेबाजी और बयानबाजी में लगा देते हैं। लेकिन जनता अपने अनुभव, जरूरत, सुरक्षा, स्थिरता और भविष्य की आकांक्षाओं के आधार पर वोट करती है।
EBC + गैर–यादव OBC + SC-ST अब बिहार की राजनीति का स्थायी केंद्र बनने जा रहा है। राजद को यदि सत्ता चाहिए, तो यादव–मुस्लिम से बाहर निकलना होगा, गैर–यादव OBC और EBC को जोड़ना होगा, नेतृत्व और संगठन को पुनर्गठित करना होगा। वहीं एनडीए को नेतृत्व संक्रमण, विकास मॉडल का विस्तार, युवाओं में रोजगार का भरोसा और शिक्षा-स्वास्थ्य क्षेत्र में वास्तविक सुधार, इन सब पर ठोस काम करना होगा। पीके और ओवैसी आगे चलकर निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
इस चुनाव ने दो बड़े सत्य स्थापित कर दिए हैं, पहला जनता सारे ढोंग, नारेबाजी, दलीय शोर और जातीय पोस्टरबाजी से ऊपर उठकर वोट करती है और दूसरा बिहार में कोर वोटर स्थिर है, लेकिन निर्णायक वोटर केवल ‘स्थिरता + भरोसा + लाभार्थी पहुँच’ के आधार पर निर्णय लेता है।
