बिहार विधानसभा चुनाव 2025 एक ऐसा राजनीतिक पर्व है जिसमें हर वर्ग, हर समुदाय अपने अधिकार और प्रतिनिधित्व की तलाश में सक्रिय है। इस बार चुनावी मैदान में एक खास बात उभरकर सामने आई है कि वैश्य समाज के कुल 47 उम्मीदवार मैदान में हैं। यह संख्या केवल एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि बिहार के राजनीतिक कैनवास पर वैश्य समाज की बढ़ती भागीदारी, महत्व और प्रभाव का जीवंत प्रतीक है।
जो समाज कभी केवल व्यापार और सेवा के क्षेत्र तक सीमित माना जाता था, वह आज सामजिक न्याय, आर्थिक विकास और प्रशासनिक नेतृत्व की दिशा में भी अपना अधिकार मांग रहा है। गली-चौराहों से लेकर सोशल मीडिया तक, चाय दुकान पर बहसों से लेकर मल्टी-मीडिया मंचों तक, इन प्रत्याशियों की चर्चा हो रही है। यह चुनाव वैश्य समाज के लिए केवल सत्ता का संघर्ष नहीं है, बल्कि पहचान, सम्मान और योगदान का भी महोत्सव है।
बिहार का इतिहास पलटकर देखा जाए तो वैश्य समुदाय व्यापार, उद्योग, सेवा, शिक्षा, पत्रकारिता, दान और धर्म के क्षेत्र में हमेशा अग्रणी रहा। कभी पटना के घाटों से लेकर गया के बाजारों तक, छपरा की मंडियों से लेकर मुजफ्फरपुर के व्यापारिक गलियारों तक, यह समुदाय राज्य की अर्थव्यवस्था की धड़कन रहा है।
लेकिन राजनीति में इसकी उपस्थिति सीमित रही है। कारण कई रहे हैं जैसे सामाजिक सोच, अवसरों की कमी, राजनीतिक नेतृत्व में प्रतिनिधित्व का अभाव। मगर समय बदल रहा है। आज वैश्य समाज में शिक्षा, व्यवसाय, तकनीक और सामाजिक जागरूकता का विस्तार हुआ है। यही जागरूकता राजनीति की ओर बढ़ते कदमों का आधार बनी है।
इस बार चुनाव में बीजेपी, जदयू, लोजपा (राम विलास), राष्ट्रीय लोकमत, राजद, कांग्रेस और CPI(माले) तक, सभी ने अपने-अपने टिकट में वैश्य चेहरों को महत्व दिया है। यह इस बात का संकेत है कि वैश्य समाज न केवल वोट देने में बल्कि उम्मीदवार देने में भी निर्णायक भूमिका निभा रहा है।
एनडीए में वैश्य प्रत्याशियों की मजबूत फौज है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने कटिहार से लेकर फारबिसगंज तक, मोतिहारी से लेकर दरभंगा तक, भाजपा ने वैश्य समाज के कई दिग्गज नेताओं को मैदान में उतारा है कटिहार से तारकेश्वर प्रसाद, दीघा से संजीव चौरसिया, दरभंगा से संजय सरावगी, कुढ़नी से केदार गुप्ता, नौतन से नारायण प्रसाद, मोतिहारी से प्रमोद कुमार, चिरैया से लाल बाबू प्रसाद गुप्ता, ढाका से पवन जायसवाल, खजौली से अरुण शंकर प्रसाद , पूर्णिया से विजय खेमका, फारबिसगंज से विद्याशंकर केशरी, हायाघाट से रामचंद्र प्रसाद, बांका से रामनारायण मंडल, रीगा से वैद्यनाथ प्रसाद, सीतामढ़ी से सुनील पिंटू, छपरा से श्रीमती छोटी कुमारी, मुंगेर से कुमार प्रणय और कुम्हरार से संजय गुप्ता।
जनता दल (यूनाइटेड) (JDU) ने संदेश से राधाचरण साह, महराजगंज से हेमनारायण साह, महिषी से गुंजेश्वर साह, मधेपुरा से श्रीमती कविता साह, नरकटिया से विशाल साह, शिवहर से श्रीमती डॉ श्वेता गुप्ता, लौकहा से सतीश शाह और ठाकुरगंज से गोपाल अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया है।
LJP (राम विलास) ने ओबरा सीट से प्रकाश चंद्रा, सुगौली से बबलू गुप्ता और बख्तियारपुर से अरुण कुमार साह को उम्मीदवार बनाया है।
राष्ट्रीय लोकमत (RLM) (उपेन्द्र कुशवाहा के नेतृत्व में) पारू से मदन चौधरी चुनाव मैदान में हैं।
वहीं महागठबंधन ने भी वैश्य नेताओं की दमदार उपस्थिति दर्ज की है।राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने हाजीपुर से देवकुमार चौरसिया, बड़हरिया से अरुण कुमार गुप्ता, महराजगंज से विशाल जायसवाल, मोरवा से रणविजय साहू, तारापुर से अरुण साह, बाकीपुर से श्रीमती रेखा गुप्ता, मोतीहारी से देवा गुप्ता, परिहार से श्रीमती अस्मिता पूर्वे, बेलसंड से संजय गुप्ता, मधुबनी से समीर महासेठ, शेरघाटी से प्रमोद वर्मा और सासाराम से सतेंद्र साह को प्रत्याशी बनाया है।
कांग्रेस ने मुजफ्फरपुर से विजेंद्र चौधरी, रक्सौल से श्याम बहादुर प्रसाद, चनपटिया से अभिषेक रंजन को, CPI (माले) ने सिकटा से वीरेंद्र गुप्ता और कहारगर से महेंद्र गुप्ता को उम्मीदवार बनाया है ।
वैश्य समाज के मतदाताओं की अपेक्षाएं भी विशाल हैं। वे केवल चेहरे नहीं खोज रहे, बल्कि ऐसे नेता चाहते हैं जो व्यापार को प्रोत्साहन दें, छोटे-व्यापारियों और MSME को सुरक्षा दें, टैक्स सिस्टम सरल बनाएं, शिक्षा, स्वास्थ्य और उद्योगों को मजबूती दें, युवाओं के लिए स्टार्टअप नीति बनाएं, मंडी-सुधार और व्यापारिक सुरक्षा सुनिश्चित करें। यह चुनाव उनके लिए सिर्फ टिकट का खेल नहीं है, बल्कि भविष्य की प्लानिंग है।
वैश्य समाज की राजनीतिक भागीदारी इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यह समुदाय अर्थव्यवस्था को गति देता है, रोजगार देता है, टैक्स भरता है, सामाजिक सहयोग और दान की परंपरा निभाता है। फिर भी आज भी संरक्षण की कमी, आर्थिक सुरक्षा की चुनौतियाँ, मंडी-व्यवस्था का बोझ, सरकारी प्रक्रियाओं की जटिलता, बैंक-फाइनेंसिंग में बाधा जैसी समस्याएँ मौजूद हैं। इसलिए वैश्य समाज का नेतृत्व न केवल अपने समाज के लिए, बल्कि समूचे राज्य की आर्थिक रीढ़ को मजबूत करेगा।
बिहार के वैश्य युवाओं की आवाज आज स्पष्ट है “हम केवल व्यापार नहीं करेंगे, अब नेतृत्व भी करेंगे।” वे पूछ रहे हैं कि ई-कॉमर्स और डिजिटल व्यापार को बढ़ावा कैसे मिलेगा? उद्यमिता को सहारा देने वाली नीति कब बनेगी? कैरियर-केंद्रित शिक्षण संस्थान कहाँ हैं? उद्योग लगाने के लिए जमीन और सुविधा कैसे मिलेगी? इन सवालों के जवाब देने की जिम्मेदारी उम्मीदवारों पर है।
सीतामढ़ी से लेकर मधेपुरा तक, छपरा से शिवहर तक वैश्य समाज की महिला प्रत्याशी भी मौजूद हैं। यह नई शुरुआत है। यह दिखाता है कि अब राजनीति पुरुष-प्रधान नहीं रही। महिलाएँ व्यापार, समाज सेवा और अब विधानसभाओं में भी दिखेगी।
वैश्य समाज के संगठनों और नेताओं ने अपील की है कि “एकता दिखाएँ, अपनी शक्ति पहचानें, अपने समाज के प्रतिनिधियों को समर्थन दें।” यह नारा हवा में नहीं, जमीन पर असरदार दिख रहा है।
राजनीति में भावनाएँ होती हैं, लेकिन बिहार के वैश्य समाज के सामने आज एक गंभीर कार्य है दल से ऊपर समाज, व्यक्ति से ऊपर विकास और प्रचार से ऊपर प्रदर्शन। वोट किसी नारे पर नहीं, बल्कि नीयत और नतीजों पर दिया जाना चाहिए।
यह चुनाव वैश्य समाज के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ है। जहां 47 उम्मीदवार सिर्फ नामों की सूची नहीं, बल्कि एक सपना हैं। ये 47 दीपक हैं जो बिहार के भविष्य को रोशन करने चले हैं। हो सकता है सब जीतें, हो सकता है कुछ वापिस आएं, मगर जीत-हार से बड़ी चीज है यह शुरुआत। आज बिहार कह रहा है “विकास का व्यापार चलेगा नहीं, उसे चलाना पड़ेगा।” और वैश्य समाज तैयार है। कंधों पर उम्मीदों का बोझ, दिल में राज्य के विकास का स्वप्न, और हाथ में लोकतंत्र का झंडा लिए वह लोकतंत्र की महायात्रा में आगे बढ़ चला है।
