आभा सिन्हा, पटना
भारत भूमि को देवी-उपासना की जन्मभूमि कहा गया है। यहां की मिट्टी, पर्वत, नदियाँ और वन, सभी में शक्ति की उपासना के विविध स्वरूप समाहित हैं। देवी के अनंत रूपों में शक्तिपीठों का विशेष महत्व है, क्योंकि यह वह स्थान हैं जहां माँ सती के अंग, आभूषण या वस्त्र खंड गिरे थे। इन स्थलों को न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा के केंद्र के रूप में भी जाना जाता है।
इन्हीं 51 शक्तिपीठों में से एक है “नंदिनी शक्तिपीठ”, जो पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नंदीपुर गाँव में स्थित है। यह स्थान अपनी आध्यात्मिक शांति, प्राचीनता और पौराणिक महिमा के कारण विशेष प्रसिद्ध है। यहाँ यह विश्वास है कि माता सती के गले का हार इसी स्थल पर गिरा था। माता की शक्ति को नंदिनी और उनके भैरव को नंदिकेश्वर कहा गया है।
“नंदिनी शक्तिपीठ” की पौराणिकता को समझने के लिए हमें सती चरित्र की कथा की ओर लौटना पड़ता है। प्राचीन काल में राजा दक्ष प्रजापति, जो भगवान शिव के ससुर थे, ने अपने यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। देवी सती, जो शिव की अर्धांगिनी थीं, अपमान सहन नहीं कर सकीं और अपने पिता के यज्ञस्थल पर जाकर अग्निकुंड में स्वयं को भस्म कर दिया। जब भगवान शिव को इस घटना का पता चला, तो उन्होंने क्रोध में आकर सती के जले हुए शरीर को कंधे पर उठाया और ब्रह्मांड में तांडव करने लगे। सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 खंडों में विभाजित कर दिया। जहाँ-जहाँ ये खंड गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठों का उद्भव हुआ।
नंदीपुर का यह स्थल वही स्थान है, जहाँ सती के गले का हार गिरा था। अतः यहाँ की शक्ति को नंदिनी कहा गया और उनके भैरव नंदिकेश्वर के रूप में पूजित हुए।
“नंदिनी शक्तिपीठ” पश्चिम बंगाल के वीरभूम (Birbhum) जिले के सैंथिया रेलवे स्टेशन से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर नंदीपुर नामक ग्राम में स्थित है। यह स्थल एक विशाल चारदीवारी से घिरा हुआ है, जिसके अंदर एक बरगद का प्राचीन वृक्ष स्थित है। इसी वृक्ष के समीप माता नंदिनी का मंदिर और पूजा स्थल विद्यमान है।
वीरभूम जिला स्वयं में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से अत्यंत समृद्ध है। यह वही भूमि है जहाँ कवि गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर का शांतिनिकेतन स्थित है। अतः इस क्षेत्र में धर्म, साहित्य, संगीत और अध्यात्म का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
नंदीपुर गाँव छोटा होते हुए भी अपनी पवित्रता और श्रद्धा के कारण देश-विदेश से आने वाले भक्तों के लिए तीर्थस्थल बन गया है।
“नंदिनी शक्तिपीठ” का उल्लेख शक्तिसंगम तंत्र, कालिकापुराण, तंत्रचूड़ामणि और देवी भागवत पुराण में मिलता है। हालांकि इसका वर्तमान स्वरूप मध्यकाल के पश्चात निर्मित हुआ है।
स्थानीय जनश्रुतियों के अनुसार, इस स्थल पर प्राचीन काल में केवल बरगद का वृक्ष और उसके नीचे एक शिलाखंड हुआ करता था, जिसे लोग “माँ की उपस्थिति” मानकर पूजते थे। बाद में किसी स्थानीय जमींदार ने यहाँ एक छोटा मंदिर बनवाया, जिसे धीरे-धीरे भक्तों ने भव्य स्वरूप दे दिया।
मंदिर की संरचना बंगाल की पारंपरिक स्थापत्य शैली में की गई है, जिसमें लाल ईंटों का प्रयोग और शिखर शैली के गुंबद हैं।
माँ नंदिनी का नाम स्वयं में ममता, सौम्यता और शक्ति का प्रतीक है। "नंदिनी" का अर्थ है, जो आनंद देने वाली हो, जो सबका कल्याण करे।
माँ नंदिनी के रूप का वर्णन इस प्रकार किया जाता है, वे त्रिनेत्रा हैं, अर्थात तीन नेत्रों से संसार को देखती हैं। उनके चार भुजाओं में क्रमशः त्रिशूल, कमंडल, माला और अभयमुद्रा होती है। उनका वर्ण स्वर्ण के समान तेजोमय बताया गया है। वे सिंह पर आरूढ़ हैं, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है।
माँ नंदिनी को विशेष रूप से गले के आभूषण के प्रतीक रूप में पूजा जाता है, क्योंकि यहाँ सती का हार गिरा था। इसलिए भक्त उनके दर्शन के समय सोने या चांदी के हार चढ़ाते हैं और उनसे समृद्धि एव सौभाग्य की कामना करते हैं।
हर शक्तिपीठ की तरह यहाँ भी भैरव की उपासना अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। नंदीपुर के भैरव हैं नंदिकेश्वर। नंदिकेश्वर मंदिर नंदिनी देवी के मुख्य गर्भगृह से कुछ दूरी पर स्थित है। भैरव का यह स्वरूप रक्षक और अनुशासक दोनों है। कहा जाता है कि बिना नंदिकेश्वर के दर्शन किए नंदिनी माँ की पूजा अधूरी मानी जाती है। भैरव के मंदिर में भक्त रात्रि के समय दीप जलाते हैं, और अनेक साधक यहाँ तंत्र-साधना करते हैं।
नंदीपुर के शक्तिपीठ से जुड़ी अनेक धार्मिक मान्यताएँ प्रचलित हैं। माँ नंदिनी की कृपा से गले के रोग दूर होते हैं। क्योंकि यहाँ देवी के गले का हार गिरा था, इसलिए जो भी भक्त गले या वाणी से संबंधित रोगों से ग्रसित होता है, वह यहाँ आराधना कर शीघ्र स्वस्थ होता है। सौभाग्य और वैवाहिक सुख की प्राप्ति के लिए माँ नंदिनी की पूजा की जाती है। विवाहित स्त्रियाँ अपने वैवाहिक सुख की स्थिरता के लिए यहाँ विशेष व्रत रखती हैं। माँ की पूजा में हार अर्पण का विशेष महत्व है। यह श्रद्धा का प्रतीक है, और भक्त इसे "मंगल हार" कहते हैं।
“नंदिनी शक्तिपीठ” का वर्तमान मंदिर परिसर अत्यंत सुंदर और शांत है। मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर एक चौकोर आंगन मिलता है, जिसके मध्य में बरगद का विशाल वृक्ष है। वृक्ष की जड़ के पास ही पत्थर का वह स्थान है, जिसे मूल पीठ स्थान कहा जाता है। इसके पास ही लाल रंग के शिखर वाला मंदिर है। गर्भगृह में माँ नंदिनी की प्रतिमा काले शिलाखंड से निर्मित है, जिसके गले में स्वर्णाभूषणों का हार सुसज्जित रहता है। मंदिर के दीवारों पर देवी के विभिन्न रूपों की चित्रकारी की गई है।
भैरव नंदिकेश्वर का मंदिर दक्षिण दिशा में है। मंदिर परिसर में साधकों के लिए ध्यानकक्ष, जलकुंड और परिक्रमा पथ का भी निर्माण किया गया है।
“नंदिनी शक्तिपीठ” में वर्षभर श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है, किंतु विशेष अवसरों पर यहाँ भव्य आयोजन होता है। नवरात्र महोत्सव- शारदीय और चैत्र नवरात्र में नौ दिनों तक विशेष अनुष्ठान, भजन-कीर्तन और हवन का आयोजन किया जाता है। अंतिम दिन महाआरती और अन्नकूट भंडारा होता है। काली पूजा और दीपावली- बंगाल की परंपरा अनुसार दीपावली की रात यहाँ महाकाली स्वरूप नंदिनी की आराधना होती है। माघ पूर्णिमा मेला- इस अवसर पर दूर-दूर से साधु-संत और श्रद्धालु आते हैं। बरगद के नीचे अखंड ज्योति जलती रहती है। शिवरात्रि- नंदिकेश्वर भैरव के मंदिर में भक्त पूरी रात जागरण करते हैं और भैरव-जप करते हैं।
स्थानीय लोगों के बीच नंदिनी माँ के अनेक चमत्कारों की कथाएँ प्रसिद्ध हैं। एक कथा के अनुसार, एक बार गाँव में भयंकर सूखा पड़ा। तब गाँव की महिलाओं ने मिलकर माँ नंदिनी के वृक्ष के नीचे जलाभिषेक किया। उसी रात वर्षा हुई और सूखा समाप्त हुआ। एक अन्य कथा कहती है कि एक भक्त के गले में वर्षों से गाँठ थी। उसने माँ नंदिनी के चरणों में हार चढ़ाया और कुछ ही दिनों में वह रोग दूर हो गया। ऐसे अनेक प्रसंग आज भी स्थानीय लोग भक्ति के साथ सुनाते हैं।
मंदिर की वास्तुकला बंगाल की पारंपरिक एक-रथ शैली में बनी है। लाल ईंटों से बने शिखर पर सुनहरा कलश सुशोभित है। मुख्य द्वार पर नक्काशीदार तोरण, देवी के प्रतीक यंत्र और संस्कृत श्लोक अंकित हैं। दीवारों पर देवी के दस महाविद्या रूपों, दशमहायज्ञ और तंत्र-मंडलों के चित्र देखे जा सकते हैं।
नंदीपुर और इसके आसपास के क्षेत्रों में बंगाली लोकसंस्कृति की झलक देखने को मिलती है। यहाँ के ग्रामीण भक्ति संगीत, बाउल गीत, कीर्तन और चंडीपाठ में देवी नंदिनी की महिमा गाते हैं। त्योहारों के समय गाँव की गलियों में झांकी, नृत्य और देवी-नाटक का आयोजन होता है। विशेषकर शारदीय नवरात्र में पूरा क्षेत्र देवीमय वातावरण से भर उठता है।
वीरभूम क्षेत्र तंत्र साधना की दृष्टि से अत्यंत प्राचीन माना गया है। नंदीपुर भी उन स्थानों में से एक है जहाँ अनेक सिद्ध साधकों ने ध्यान और जप-साधना की। रात्रि के समय बरगद के नीचे बैठकर साधक नंदिनी मंत्र का जप करते हैं “ॐ नंदिन्यै नमः।” यह माना जाता है कि यहाँ साधना करने से वाणी, गले और मन की शुद्धि होती है।
बरगद का वृक्ष “नंदिनी शक्तिपीठ” का अभिन्न अंग है। स्थानीय श्रद्धालु मानते हैं कि इस वृक्ष में स्वयं देवी का वास है। इसकी छाया में ध्यान करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है। मंदिर समिति द्वारा पर्यावरण संरक्षण पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। वृक्षों की संख्या बढ़ाने, जल संरक्षण और स्वच्छता के लिए यहाँ नियमित कार्यक्रम चलाए जाते हैं।
माँ नंदिनी के भक्तों का कहना है कि मंदिर में प्रवेश करते ही एक दिव्य कंपन महसूस होता है। घंटियों की मधुर ध्वनि, धूप-दीप की सुगंध, और जयकारों की गूँज वातावरण को आध्यात्मिक बना देती है। भक्त कहते हैं कि “जो एक बार नंदीपुर आता है, वह माँ की कृपा से बार-बार यहाँ आने को विवश होता है।”
नंदीपुर का “नंदिनी शक्तिपीठ” केवल एक मंदिर नहीं है, बल्कि आस्था और आनंद का नंदनवन है। यह वह स्थान है जहाँ भौतिक संसार की हलचल शांत होकर भक्ति में परिवर्तित हो जाती है। यहाँ माँ नंदिनी की कृपा केवल शरीर के रोग नहीं मिटाती है, बल्कि मन और आत्मा को भी शुद्ध करती है।
