आभा सिन्हा, पटना
भारत भूमि देवी के अद्भुत चमत्कारों और भक्ति परंपराओं से ओत-प्रोत है। यहाँ हर अंचल में शक्ति की उपासना किसी न किसी रूप में विद्यमान है। इन्हीं रूपों में से एक अत्यंत पवित्र, दिव्य और अद्वितीय स्थल है “सर्वाणी शक्तिपीठ”, जो तमिलनाडु राज्य के कन्याकुमारी क्षेत्र में स्थित है। यह वह भूमि है जहाँ तीन सागर, हिन्द महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी, एक साथ मिलती है। इस त्रिसागर संगम पर स्थित यह शक्तिपीठ केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अद्वितीय है।
शास्त्रों के अनुसार, यहाँ देवी सती का पृष्ठ भाग (पीठ) गिरा था, इसलिए इसे ‘सर्वाणी पीठ’ कहा गया है। यहाँ की अधिष्ठात्री शक्ति हैं माता सर्वाणी, और इस पीठ के रक्षक भैरव निमिष माने गए हैं। यह स्थान न केवल दक्षिण भारत की देवी उपासना का केंद्र है, बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष की शक्ति साधना का संगम स्थल भी है।
देवी सती और भगवान शिव की कथा भारतीय आस्था का शाश्वत आधार है। दक्ष प्रजापति के यज्ञ में अपमानित होकर जब सती ने योगाग्नि में अपने प्राणों का त्याग किया, तब शिव शोक में विह्वल होकर उनके शरीर को लेकर ब्रह्मांड में विचरण करने लगे। देवता, ऋषि और लोक तब भयभीत हो उठे कि यह सृष्टि अब विनाश की ओर जा रही है। तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े किए, जो पृथ्वी के विभिन्न भागों में गिरे। जहाँ-जहाँ सती के अंग, आभूषण या वस्त्र गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। इन स्थलों पर देवी ने स्वयं को विभिन्न नामों और रूपों में प्रकट किया, और प्रत्येक स्थान पर एक भैरव उनकी रक्षा के लिए नियुक्त किए गए। इन्हीं 51 शक्तिपीठों में से एक है “सर्वाणी शक्तिपीठ”।
सर्वाणी शक्तिपीठ दक्षिण भारत के छोर पर स्थित कन्याकुमारी क्षेत्र में है, यह वही स्थान है जहाँ भूमि समाप्त होकर जल प्रारंभ होता है। यहाँ का दृश्य अद्वितीय है, तीनों सागरों का संगम, सूर्यास्त का अद्भुत दृश्य, और उसी के बीच में स्थित देवी का पवित्र मंदिर। कन्याकुमारी का यह शक्तिपीठ भक्ति, शक्ति और शांति का संगम है। स्थानीय परंपरा में इसे “त्रिसागर तीर्थ” कहा गया है, जहाँ एक साथ हिन्द महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के जल का स्पर्श होता है। यहीं पर देवी सर्वाणी की मूर्ति भक्तों को दर्शन देती हैं। यहाँ का वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण है। कहा जाता है कि यदि कोई भक्त यहाँ स्नान कर देवी सर्वाणी का दर्शन करता है, तो उसके सारे पाप धुल जाते हैं और वह जीवन में नयी ऊर्जा प्राप्त करता है।
देवी सर्वाणी का स्वरूप अत्यंत शांत और सौम्य बताया गया है। उनके चेहरे पर मातृत्व की कोमलता और नेत्रों में दिव्यता का तेज झलकता है। वे चार भुजा वाली हैं, एक हाथ में कमल, दूसरे में त्रिशूल, तीसरे में अभय मुद्रा और चौथे में वर मुद्रा धारण करती हैं। उनके चरणों में श्रद्धालु नतमस्तक होकर अपने जीवन के सारे दुख दूर करने की प्रार्थना करते हैं।
भैरव निमिष यहाँ देवी के अंगरक्षक माने गए हैं। ‘निमिष’ का अर्थ है पलभर या क्षण, और कहा जाता है कि भैरव निमिष एक ही क्षण में भक्त की पुकार सुन लेते हैं। वे क्रोधी नहीं हैं, बल्कि करुणामय रूप में पूजे जाते हैं। भक्तगण सर्वाणी के दर्शन के पश्चात् भैरव निमिष का पूजा अवश्य करते हैं।
“सर्वाणी शक्तिपीठ” का विशेष आकर्षण इसका भौगोलिक और आध्यात्मिक संगम है। जैसे यहाँ तीन सागर मिलते हैं, वैसे ही यह स्थान तीन शक्तियों सत्व, रज और तम, का संगम स्थल भी माना गया है। सत्व का प्रतीक है बंगाल की खाड़ी, जो शुद्धता और शांति का द्योतक है। रज का प्रतीक है अरब सागर, जो गतिशीलता और कर्म का प्रतीक है। तम का प्रतीक है हिन्द महासागर, जो गहराई और रहस्य का प्रतीक है। देवी सर्वाणी इन तीनों शक्तियों को संतुलित करती हैं, और भक्त को यह संदेश देती हैं कि जीवन में संतुलन ही वास्तविक शक्ति है।
कन्याकुमारी को प्राचीन काल में श्रीपार्वत कहा जाता था। यहाँ देवी ने कन्या रूप में तप किया था ताकि वे भगवान शिव से विवाह कर सके। किंतु जब असुर बाणासुर का वध आवश्यक हुआ, तब देवी ने विवाह स्थगित कर दिया और असुर का संहार किया। इसी कारण से यह स्थान ‘कन्याकुमारी’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। माना जाता है कि देवी सर्वाणी उसी कन्या रूपी देवी भगवती का शक्तिरूप हैं। तमिल साहित्य में भी ‘कन्याकुमारी अम्मन’ का उल्लेख मिलता है, जिन्हें ‘सर्वाणी शक्ति’ का ही एक रूप माना गया है।
सर्वाणी मंदिर का निर्माण द्रविड़ स्थापत्य शैली में हुआ है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर गगनचुंबी गोपुरम दिखाई देता है, जो नाजुक नक्काशी और रंगीन मूर्तियों से सुसज्जित है। मंदिर के गर्भगृह में देवी की मूर्ति स्थापित है, जो काले ग्रेनाइट पत्थर से बनी है। मूर्ति के मुख पर हल्की मुस्कान और नेत्रों में करुणा का भाव है। मंदिर के चारों ओर परिक्रमा मार्ग है, जहाँ भक्तगण दीप जलाकर प्रदक्षिणा करते हैं।
पास ही में एक छोटा मंदिर भैरव निमिष का है। कहा जाता है कि जो भक्त पहले भैरव का दर्शन कर फिर सर्वाणी के दरबार में जाता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है।
सर्वाणी मंदिर में दैनिक पूजा तीन समय होती है प्रातःकालीन आरती (सूर्योदय के समय), मध्यान्ह पूजा और संध्या दीप आरती। देवी को चावल, नारियल, पुष्प, केला, और विशेष रूप से केसर युक्त दूध का भोग लगाया जाता है। शुक्रवार और पूर्णिमा के दिन यहाँ विशेष भीड़ होती है। नवरात्र और दुर्गाष्टमी के समय यह पीठ अत्यधिक जागृत रहती है। श्रद्धालु नौ दिनों तक देवी के विभिन्न रूपों की पूजा करते हैं। कहा जाता है कि नवरात्र में यहाँ दीपक निरंतर नौ दिनों तक प्रज्वलित रहता है, और उसकी ज्योति कभी मंद नहीं होती है।
तंत्रशास्त्र में सर्वाणी पीठ को ‘पीठराज्य दक्षिण केंद्र’ कहा गया है। यह तांत्रिक साधना के चार प्रमुख केंद्रों में से एक है। यहाँ की भूमि अत्यंत शक्तिशाली मानी जाती है, जहाँ साधक ध्यान और मंत्र-साधना से विशेष सिद्धियाँ प्राप्त कर सकते हैं। कहा जाता है कि इस स्थान पर साधना करने से मूलाधार चक्र और अनाहत चक्र सक्रिय होता है, जिससे साधक का मन स्थिर होता है और उसमें दिव्य अनुभूति का संचार होता है।
स्थानीय जनश्रुति में अनेक चमत्कारिक कथाएँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि एक बार भयंकर तूफान के समय जब समुद्र का जल मंदिर के समीप तक पहुँच गया था, तो देवी सर्वाणी की मूर्ति से तेज प्रकाश निकला और समुद्र का जल पीछे हट गया। तब से लोग देवी को ‘समुद्र-रक्षक माता’ कहकर पुकारते हैं।
एक और कथा के अनुसार, एक भक्त प्रतिदिन समुद्र तट पर दीप जलाकर देवी को अर्पित करता था। एक दिन तेज हवाओं ने दीप बुझा दिया, वह दुखी होकर रोने लगा। तभी लहरों के बीच से एक पुष्प निकला और उसके दीप के पास आकर रुक गया, मानो देवी ने स्वयं उसकी आराधना स्वीकार कर ली हो।
कन्याकुमारी का यह शक्तिपीठ धार्मिक तीर्थ होने के साथ-साथ पर्यटन दृष्टि से भी अत्यंत लोकप्रिय है। पास ही स्थित विवेकानंद रॉक मेमोरियल, तिरुवल्लुवर प्रतिमा, और त्रिवेणी संगम तट यहाँ आने वाले यात्रियों को आध्यात्मिकता और प्रकृति दोनों का अनुभव कराता है। कई भक्तजन नवरात्र और चैत्र मास में यहाँ तीर्थ यात्रा करते हैं। दक्षिण भारत की मंदिर यात्रा ‘नवशक्ति परिक्रमा’ में सर्वाणी पीठ का दर्शन अनिवार्य माना गया है।
जो कोई भी श्रद्धा से सर्वाणी शक्तिपीठ पहुँचता है, वह स्वयं में एक अद्भुत ऊर्जा का अनुभव करता है। समुद्र की लहरों की ध्वनि, शंखनाद और मंत्रोच्चारण, सब मिलकर एक अनोखा वातावरण बनाता है। यहाँ आने वाला हर व्यक्ति अपने भीतर की शांति को पुनः खोज लेता है। देवी सर्वाणी के दर्शन से मन में यह विश्वास उत्पन्न होता है कि सच्ची शक्ति बाहर नहीं, भीतर है। देवी हमें यह सिखाती हैं कि चाहे हम जीवन में कितनी भी गहराई में क्यों न हों, यदि विश्वास है तो हर लहर हमें किनारे तक पहुँचा सकती है।
“सर्वाणी शक्तिपीठ” केवल एक मंदिर नहीं है, बल्कि यह शक्ति और श्रद्धा का संगम है। जैसे यहाँ तीन सागर मिलते हैं, वैसे ही यहाँ आस्था, अध्यात्म और विज्ञान एक साथ अनुभव किया जा सकता है। देवी सर्वाणी यह सन्देश देती हैं कि स्त्री ही सृष्टि की मूल शक्ति है, और जब यह शक्ति जागृत होती है तो असंभव भी संभव बन जाता है।
