केन्द्र सरकार ने 20 वर्ष से अधिक पुराने वाहनों के लिए फिटनेस टेस्ट शुल्क में बड़ी बढ़ोतरी कर दी है। परिवहन मंत्रालय के नए आदेश के अनुसार, यह कदम प्रदूषण नियंत्रण, सड़क सुरक्षा और पुराने वाहनों से होने वाले जोखिमों को कम करने के उद्देश्य से उठाया गया है। हालांकि, इस फैसले ने लाखों वाहन मालिकों को चिंता में डाल दिया है, खासकर उन लोगों को जो आज भी अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए पुराने वाहनों पर निर्भर हैं।
नए नियमों के अनुसार, भारी ट्रक और बसों के फिटनेस टेस्ट शुल्क को 3,500 रुपये से बढ़ाकर सीधे 25,000 रुपये कर दिया गया है। यह अचानक बढ़ोतरी परिवहन व्यवसाय से जुड़े लोगों को सबसे अधिक प्रभावित करेगी, क्योंकि ये वाहन माल ढुलाई और यात्री परिवहन की रीढ़ माना जाता है। व्यापारियों का कहना है कि इससे परिवहन लागत बढ़ेगी और इसका सीधा असर बाजार के दामों पर भी पड़ सकता है।
मध्यम श्रेणी के वाणिज्यिक वाहनों के लिए 20,000 रुपये शुल्क तय किया गया है। वहीं, हल्के मोटर वाहनों जैसे पिकअप वैन, टाटा एस, छोटे ट्रक आदि के लिए 15,000 रुपये का शुल्क लागू होगा। यह बढ़ोतरी छोटे व्यवसाय करने वाले ड्राइवरों और मालिक-परिचालक मॉडल पर आधारित ट्रांसपोर्टरों के लिए अतिरिक्त बोझ बनकर उभरी है।
केवल बड़े वाहन ही नहीं, बल्कि आम आदमी की जेब पर भी असर पड़ेगा। दोपहिया वाहनों का फिटनेस शुल्क जो पहले 600 रुपये था, उसे बढ़ाकर 2,000 रुपये कर दिया गया है। कई मध्यमवर्गीय लोग अपने पुराने स्कूटर और मोटरसाइकिलों पर निर्भर रहते हैं। ऐसे में यह बढ़ोतरी उनके लिए भी चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है।
सरकार का तर्क है कि पुरानी गाड़ियों से प्रदूषण का स्तर अधिक होता है और सड़क दुर्घटनाओं में भी इसकी भूमिका रहती है। फिटनेस टेस्ट शुल्क बढ़ाने का उद्देश्य लोगों को पुराने वाहन हटाकर नए और सुरक्षित विकल्प अपनाने के लिए प्रेरित करना है। इसके साथ ही 'ग्रीन इंडिया' मिशन को आगे बढ़ाना भी इस नीति का हिस्सा है।
इस फैसले से वाहन मालिकों के सामने दो ही विकल्प बचते हैं, या तो वे अपने पुराने वाहन की फिटनेस करवाकर अधिक शुल्क चुकाएँ। या फिर वाहन को रद्द कर नए वाहन खरीदने पर विचार करें।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कदम दीर्घकाल में पर्यावरण और सड़क सुरक्षा के लिए लाभकारी होगा, लेकिन फिलहाल यह आम जनता एवं परिवहन क्षेत्र पर आर्थिक बोझ लेकर आया है।
20 साल से अधिक पुराने वाहनों के फिटनेस टेस्ट शुल्क में की गई बढ़ोतरी ने देशभर में व्यापक चर्चा छेड़ दी है। जहां सरकार इसे पर्यावरण संरक्षण की दिशा में मजबूती से आगे बढ़ते कदम के रूप में देख रही है, वहीं वाहन मालिक इसे अपनी जेब पर डाले गए बड़े भार के रूप में महसूस कर रहे हैं। आने वाले समय में यह बदलाव किस दिशा में असर डालेगा, यह देखना दिलचस्प होगा।
