क्राइम, सस्पेंस, रोमांस और ट्विस्ट… निशांची में सब कुछ है जो एक दिलचस्प क्राइम ड्रामा को आकर्षक बनाता है। अनुराग कश्यप के निर्देशन में बनी यह फिल्म कानपुर की गलियों से लेकर अपराध की अंधेरी दुनिया तक ले जाती है, जहाँ दो जुड़वां भाइयों की कहानी दिल की धड़कनें तेज कर देती है।
फिल्म की कहानी बबलू और डबलू नाम के जुड़वां भाइयों के इर्द-गिर्द घूमती है, जो छोटे-मोटे अपराध कर अपनी दुनिया चलाते हैं। दोनों की शरारतें, उनकी चालें और उनका मस्तमौला स्वभाव दर्शकों को शुरुआत में ही बांध लेता है। दोनों भाइयों के बीच की केमिस्ट्री कहानी को मजेदार भी बनाती है और आगे चलकर गहरी भावनाओं का भी अहसास कराती है।
फिल्म की नींव उस असफल बैंक डकैती से पड़ती है, जिसे बबलू, डबलू और उनकी दोस्त रिकू मिलकर अंजाम देने की कोशिश करते हैं। यह सीक्वेंस पूरी फिल्म का टोन सेट कर देता है कि तेज रफ्तार, एडवेंचर और अनिश्चितताओं से भरा। डकैती के दौरान पुलिस की एंट्री होती है और बबलू पकड़ा जाता है। उसे जेल भेज दिया जाता है, जबकि डबलू और रिकू फरार हो जाते हैं। यहीं से कहानी एक नया मोड़ लेती है।
अनुराग कश्यप के निर्देशन की खासियत है कि रॉनेस, रियलिज्म और डार्क ह्यूमर। निशांची में भी यह सभी तत्व साफ नजर आता है। कानपुर की गलियों, अपराधी माहौल और पुलिसिया दबाव को जिस प्रामाणिकता से दिखाया गया है, वह फिल्म को वास्तविकता के बेहद करीब ले आता है। कश्यप की खासियत है कि वह किरदारों को उनके वातावरण के अनुसार ढालते हैं, और इस फिल्म में भी हर पात्र अपनी जगह पूरी तरह फिट बैठता है।
फिल्म में क्राइम के साथ-साथ इमोशनल एंगल भी गहराता है। बबलू और डबलू की दोस्त रिकू कहानी का अहम हिस्सा है। उसके रिश्ते, उसके फैसले और उसका दोहरे जीवन में फँस जाना फिल्म को और भी दिलचस्प बनाता है। प्यार, भरोसा, धोखा और जुड़वां पहचान का यह मिश्रण दर्शकों को लगातार सोचने पर मजबूर रखता है कि आगे क्या होने वाला है।
वेदिका पिंटो और मोनिका पंवार अपनी-अपनी भूमिकाओं में प्रभावशाली नजर आती हैं। मोहम्मद जीशान अय्यूब और विनीत कुमार सिंह जैसे कलाकारों की मौजूदगी फिल्म को और अधिक वजनदार बनाती है। कुमुद मिश्रा हमेशा की तरह सशक्त अभिनय से कहानी को गति देते हैं। हर किरदार अपनी जगह मजबूती से खड़ा दिखता है।
जुड़वां भाइयों की इस रोचक कहानी में मोड़ पर मोड़ आते हैं। कौन किसके साथ है? कौन किसे धोखा दे रहा है? बबलू और डबलू की किस्मत कहाँ जाकर रुकती है? यह सब जानने के लिए फिल्म देखना एक बेहतरीन अनुभव साबित होता है क्योंकि अनुराग कश्यप की फिल्मों में क्लाइमैक्स हमेशा चौंकाता है।
