पश्चिम बंगाल में राजभवन का नाम अब होगा - “लोक भवन”

Jitendra Kumar Sinha
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कोलकाता स्थित राजभवन, फ्लैगस्टाफ हाउस और दार्जिलिंग के राजभवन परिसरों का नाम बदलकर अब ‘लोक भवन’ कर दिया गया है। राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस द्वारा केंद्र सरकार के निर्देश पर जारी यह आदेश तुरंत प्रभाव से लागू हो चुका है। यह बदलाव सिर्फ नाम का नहीं है, बल्कि शासन और जनता के संबंधों में एक महत्वपूर्ण वैचारिक परिवर्तन का प्रतीक माना जा रहा है।

‘राजभवन’ नाम सदियों से प्रचलित रहा है, जो एक औपचारिक, राजशाही और सत्ता-केंद्रित छवि को दर्शाता था। लेकिन ‘लोक भवन’ नाम पहली नजर में ही एक लोकतांत्रिक, पारदर्शी और जनता के नजदीक प्रशासन की भावना व्यक्त करता है। यह संदेश देता है कि राज्यपाल का निवास मात्र सत्ता का प्रतीक नहीं है, बल्कि जनता के लिए खुला, जवाबदेह और सहभागिता का केंद्र है।

पश्चिम बंगाल, जहां राजनीतिक संवाद और विवाद अक्सर चर्चा का विषय रहता है, वहां यह बदलाव एक नया विमर्श जोड़ता है। यह कदम राज्य और केंद्र के बीच प्रशासनिक तालमेल को भी नई दिशा दे सकता है।

राज्यपाल का आधिकारिक निवास और कार्यालय होने के नाते ‘लोक भवन’ अब कई मायनों में जनता-मुखी पहल और गतिविधियों का केंद्र बन सकता है। जन-सुनवाई और नागरिक संवाद जैसी पहल यहां अधिक सक्रिय रूप से हो सकता है। युवा कार्यक्रम, सांस्कृतिक आयोजन और राज्य के विकास पर चर्चाएँ इस स्थल को केवल औपचारिक मुलाकातों से आगे बढ़ाकर ‘लोक संवाद’ का मंच बना सकता है। यह नाम संकेत देता है कि राज्यपाल की संस्था शासन-प्रशासन में अधिक पारदर्शी भूमिका निभाएगी।

नाम परिवर्तन सिर्फ कोलकाता तक सीमित नहीं रहा। दार्जिलिंग के राजभवन और शहर के फ्लैगस्टाफ हाउस को भी ‘लोक भवन’ नाम मिला है। दार्जिलिंग, जो संवेदनशील पर्वतीय और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र है, वहां यह कदम स्थानीय जनता के साथ विश्वास और संवाद को और मजबूत कर सकता है।

पश्चिम बंगाल की राजनीति में हर फैसला एक संदेश होता है। ऐसे में ‘लोक भवन’ नामकरण को राजनीतिक चश्मे से भी देखा जा रहा है। कई विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम केंद्र की ‘जन-उन्मुख शासन’ की अवधारणा का हिस्सा है। वहीं कुछ इसे प्रशासनिक सुधार बताते हैं, जिसका उद्देश्य संस्थानों को अधिक लोकतांत्रिक और जनसमर्थक बनाना है।

राजभवन का नाम बदलकर ‘लोक भवन’ करना एक प्रतीकात्मक पहल जरूर है, लेकिन प्रतीक अक्सर वास्तविक बदलाव की दिशा तय करता है। यदि इस बदलाव के साथ राज्यपाल कार्यालय नागरिकों के लिए अधिक सुलभ, पारदर्शी और सहभागिता-आधारित होता है, तो यह सिर्फ नाम परिवर्तन नहीं बल्कि शासन के चरित्र में सकारात्मक बदलाव का संकेत होगा।

पश्चिम बंगाल में यह परिवर्तन एक नए अध्याय की शुरुआत है, जहां ‘राज’ की जगह ‘लोक’ केंद्र में है, और जहां शासन जनता की ओर एक कदम और आगे बढ़ता दिख रहा है।



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