“मातृदेवो भव” माता ही सर्वोपरि है। जीवन में माता ही परवरिश का प्रथम गुरू है। मानव के जीवन का पहला आवास गर्भ होता है, जहाँ गर्भरूपी वस्त्र और भोजन मिलता है। ऐसी माता हीं, सर्वप्रथम जीवन में बालिका होती है। ऐसे भी देखा जाय तो सृष्टि में नर और नारी के बिना सृष्टि अधूरा है। समाज में धरती को स्त्री और आकाश को पुरूष माना जाता है। उसी प्रकार सूर्य को पुरूष और चंद्रमा को स्त्री कहते है। वहीं सागर को पुरूष और नदियाँ को स्त्री कहते हैं।
वर्त्तमान समय में बालिकाओं के लिए व्यापक प्रबंध होने से, कुरीतियों पर कुठाराघात हो रहा है। आज पूरे देश में, गाँव-गाँव में, बालिकायें निर्भीक होकर साइकिल चलाकर स्कूल जाने लगीं हैं। इसे परिवर्त्तन की ताजा हवा कहा जा सकता है। अब बालिकाओं के लिए गाँव-गाँव में शिक्षा का प्रचार और प्रशिक्षण का प्रबंध होना चाहिए ताकि बालिकाओं में शक्ति का संचार हो सके।
यह सही है कि प्रत्येक प्राणवान वस्तु, स्त्री और पुरूष में विभाजित है। भौगोलिक रूप से पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है। वहीं सूर्य सम्पूर्ण आकाश-गंगा को आलोकित करती हैं, जिससे सूर्य का अस्तित्व पृथ्वी से ही प्रमाणित होता है। इसी तरह स्त्री की मह्त्ता भी है, जो बालिका होने से ही प्रारंभ होती है। बालिका हीं विकसित हो कर माँ बनती है। जब बालिका रहेगी तभी हम माँ को बचा पायेंगे।
तकनीकी युग में तकनीक हमें समृद्ध करने के लिए बनाई गई है, लेकिन हमलोग इसी तकनीक का दुरुपयोग कर बालिकाओं की संख्या कम करने में लगे है, इसलिए लगता है कि यह तकनीक विनाश का कारण बन गया है। भारत में जहाँ स्त्री को देवी का दर्जा दिया गया है, वहीं उसे आज कई जगहों पर मात्र संतानोत्पत्ति का उपकरण माना जा रहा है। यह सही है कि भारत पुरुष प्रधान देश है, लेकिन पुरूषवादी व्यवस्था यह भूल जाते हैं कि कुलवंश की वृद्धि बिना स्त्री के सम्पूर्ण नहीं हो सकता है। तकनीक तो एक कारण है हीं, साथ ही दहेज प्रथा भी इसका एक कारण है। जिसके कारण लोगों में मात्र पुत्र की आकांक्षा उत्त्पन्न हो रही है, इसलिए लोग नई तकनीक के माध्यम से गर्भ के लिंग की जाँच करा कर, गर्भ को नष्ट कर देते हैं। जबकि यह एक जघन्य अपराध है। अब तो इन जघन्य पापों से बची हुई लड़कियाँ भी सुरक्षित नहीं रहतीं। शिशु से लेकर वयस्क लड़की कहाँ सुरक्षित है? आये दिन जबर्दस्ती की दिल दहला देने वाली घटनायें होती रहती हैं। ऐसी घटनाओं से डरे हुए लोग भी, लड़की को जन्म ही नहीं, होने देना चाहते हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन में कंधों से कंधे मिलाकर महिलाओं/बालिकाओं ने भी भाग लिया था। उदाहरण के लिए रानी लक्ष्मी बाई, बनमाला बोस, जिन्होंने अपने जान की बाजी लगाई थी। भारत में केन्द्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और राज्यपाल की बागडोर भी महिलाएँ ने सम्भाली थी। जब प्रधानमंत्री की कुर्सी इन्दिरा गाँधी के हाथ में आई, तब एक सशक्त प्रधानमंत्री के रूप में महिला की ख्याति प्राप्त हुईं। आज तो बालिकाओं ने देश की सेवा में सेनाओं के साथ भी डटकर खड़ी है। भारत में बालिका को लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा के रूप में भी जाना जाता है। लोग यह भूल रहे हैं कि समाज की आँखों में आँखें डालकर बालिकायें बता रही हैं कि मैं हर जगह परचम लहराऊँगी। इसलिए बुद्धिजीवीओं को सोचना पड़ेगा कि समाज को, जन जन को किसी तरह शिक्षित प्रशिक्षित किया जाय ताकि बलात्कार और हत्या जैसी जघन्य अपराध बंद हो सके।
भारतीय बालिकायें किसी से कम नहीं है। उनके हाथों में जिसकी बागडोर थमाई जाय, वह बखूबी कुछ उत्कृष्ट करके दिखा देती हैं। आज ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहाँ स्त्री कार्यरत नहीं है। देश की आतंरिक सुरक्षा यानि पुलिस, बाह्य सुरक्षा यानि सेना सभी स्थान पर बालिकायें बखूबी काम सँभाल रही हैं।