भारत में निर्मित पहला विमान: एक ऐतिहासिक उपलब्धि

Jitendra Kumar Sinha
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भारत की विमानन यात्रा का इतिहास समृद्ध और प्रेरणादायक रहा है। हालांकि, जब भी दुनिया में हवाई जहाज के आविष्कार की बात होती है, तो आमतौर पर राइट ब्रदर्स का नाम सामने आता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में भी एक विमान का आविष्कार बहुत पहले किया गया था?


शिवकर बापूजी तलपड़े और उनका विमान

भारतीय इतिहास में शिवकर बापूजी तलपड़े का नाम एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। 1895 में, उन्होंने एक विमान का निर्माण किया था, जिसे उन्होंने ‘मरुतसखा’ नाम दिया था। यह विमान पूरी तरह से भारतीय वैज्ञानिक सिद्धांतों और प्राचीन वेदों के ज्ञान पर आधारित था।


मरुतसखा: भारत का पहला विमान

शिवकर बापूजी तलपड़े ने वैदिक ग्रंथों में वर्णित "वैमानिक शास्त्र" का अध्ययन करके इस विमान का निर्माण किया। कहा जाता है कि उन्होंने इस विमान को मुंबई के चौपाटी बीच पर सफलतापूर्वक उड़ाया था। यह उड़ान राइट ब्रदर्स की 1903 की उड़ान से आठ साल पहले की गई थी।


तकनीकी पहलू और ऐतिहासिक विवाद

मरुतसखा का निर्माण पारंपरिक धातुओं और पारे (Mercury) के प्रयोग से किया गया था। ऐसा माना जाता है कि यह विमान कुछ मीटर तक हवा में उड़ने में सफल रहा। हालांकि, इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि या प्रामाणिक दस्तावेज नहीं मिल पाए, जिससे इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर संदेह भी किया जाता है।


आधुनिक भारत में विमान निर्माण

शिवकर तलपड़े के प्रयासों के बाद, भारत ने विमान निर्माण के क्षेत्र में बड़ी प्रगति की। हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) की स्थापना के बाद, भारत ने कई स्वदेशी विमानों का निर्माण किया।
भारत का पहला स्वदेशी विमान एचएफ-24 मरुत था, जिसे 1961 में हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड ने विकसित किया था। यह पहला भारतीय जेट फाइटर था, जिसे प्रसिद्ध जर्मन डिजाइनर कुर्ट टैंक के मार्गदर्शन में तैयार किया गया था।

भारत में विमानन क्षेत्र का इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है। शिवकर बापूजी तलपड़े ने अपने प्रयोगों से भारतीय वैज्ञानिक प्रतिभा को दुनिया के सामने रखा, जबकि एचएफ-24 मरुत ने भारत की स्वदेशी एयरोस्पेस शक्ति को मजबूत किया। आज, भारत तेजस, ध्रुव हेलीकॉप्टर, और अम्ब्रेला प्रोजेक्ट्स जैसे अत्याधुनिक विमानों का निर्माण कर रहा है, जिससे यह क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण शक्ति बन चुका है।

भारत की विमान निर्माण यात्रा न केवल तकनीकी विकास का प्रतीक है, बल्कि यह हमारी वैज्ञानिक और ऐतिहासिक धरोहर का भी हिस्सा है।

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