अखाड़ा और समाज का पहचान के लिए, अपने नाम के साथ उपनाम लगाते है नागा संत

Jitendra Kumar Sinha
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सनातन धर्मालम्बी में नागा साधु का बहुत बड़ा महत्व हैं। नागा साधु बनने पर उन्हें चार जगहों पर होने वाले कुंभ में नागा साधु को अलग-अलग नाम दिए जाते हैं। इलाहाबाद में लगने वाले कुंभ में उपाधि पाने वाले नागा साधु को राजराजेश्वरी नागा, उज्जैन में लगने वाले कुंभ में उपाधि पाने वाले नागा साधु को खूनी नागा, हरिद्वार में लगने वाले कुंभ में उपाधि पाने वाले नागा साधु को बर्फानी नागा तथा नासिक में लगने वाले कुंभ में उपाधि पाने वाले नागा साधु को खिचडिया नागा, कहा जाता है। इससे यह पता चल पाता है कि नागा साधु को किस कुंभ में नागा बनाया गया है।


नागा साधु निर्वस्त्र (नग्न) रहते हैं और कपड़ों के नाम पर पूरे शरीर पर धूनी की राख लपेटे रहते हैं। नागा साधु युद्ध कला में माहिर होते हैं। इनके आश्रम हरिद्वार और दूसरे तीर्थों के दूरदराज इलाकों में हैं जहां ये आम जनजीवन से दूर कठोर अनुशासन में रहते हैं। नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन तथा लम्बी होती है। अधिकांश नागा साधु पुरुष होते हैं, कुछ महिलायें भी नागा साधु हैं पर वे सभी सार्वजनिक रूप से सामान्यतः निर्वस्त्र (नग्न) रहती है या एक गेरुवा वस्त्र शरीर पर लपेटे रहती हैं।


नागा साधु तीन प्रकार के योग करते हैं और यह योग उन्हें ठंड से निपटने में मददगार होते हैं। नागा साधु एक सैन्य पंथ होते हैं और एक सैन्य रेजीमेंट की तरह बंटे रहते हैं। नागा साधु त्रिशूल, तलवार, शंख और चिलम से अपने अपने सैन्य दर्जे को दर्शाते हैं।


नागा साधुओं के पंथ (अखाड़ों) में शामिल होने की कई प्रक्रिया होती हैं जिसे पुरा करने में लगभग छह वर्ष लग जाते हैं। इस दौरान नए सदस्य बनने पर उन्हें एक लंगोट के अतिरिक्त कुछ नहीं पहनना होता है और जब वे कुंभ मेले में जाते हैं तो अंतिम प्रण लेने के बाद, वे लंगोट भी त्याग देते हैं और पूरी जीवन यूँ ही रहते हैं। 


अखाड़ों की परम्परा आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा शुरू की गयी थी। शंकराचार्य ने अखाड़ों को सुझाव दिया था कि मठ, मंदिरों और श्रद्धालुओं की रक्षा के लिए जरूरत पडऩे पर शक्ति का प्रयोग करें। इस तरह बाह्य आक्रमणों से सुरक्षा कवच का काम करेगा। शंकराचार्य ने सनातन धर्म की स्थापना के लिए देश के चार कोनों पर गोवर्धन पीठ, शारदा पीठ, द्वारिका पीठ और ज्योतिर्मठ पीठ (चार पीठों का) निर्माण कराया था। इसके अतिरिक्त आदिगुरू ने सनातन धर्म के विभिन्न संप्रदायों की सशस्त्र शाखाओं के रूप में अखाड़ों की स्थापना की शुरूआत की थी। कालांतर में कई और अखाड़े अस्तित्व में आए। वर्तमान समय में सनातन संतों के 13 अखाड़े हैं, इनमे शिव (संन्यासी) संप्रदाय के 7 अखाड़े, बैरागी (वैष्णव) संप्रदाय के 3 अखाड़े और उदासीन संप्रदाय के 3 अखाड़े हैं।


नागा संत अपने नाम के आगे गिरि, पुरी, भारती, दास, नाथ आदि उपनाम लगाते हैं। इस उपनाम से यह पता चलता हैं कि कौन नागा संत किस अखाड़े, मठ, मड़ी और किस समाज से हैं। शिव संन्यासी संप्रदाय के अंतर्गत दशनामी संप्रदाय है। दशनामी संप्रदाय में गिरि, पर्वत, सागर, पुरी, भारती, सरस्वती, वन, अरण्य, तीर्थ और आश्रम आते हैं और यहां 7 अखाड़ों में से जूना अखाड़ा इनका खास अखाड़ा होता है। दशनामी संप्रदाय में शंकराचार्य, महंत, आचार्य और महामंडलेश्वर आदि पद होते हैं और अखाड़े में आचार्यमहामंडलेश्वर का पद सबसे ऊंचा पद होता है।


शंकराचार्य ने चार मठ स्थापित किए थे जो 10 क्षेत्रों में बंटें थे जिनके एक-एक मठाधीश थे। ऋषि भ्रुगु के अधीन गिरी, पर्वत और सागर, ऋषि शांडिल्य के अधीन पुरी, भारती और सरस्वती  और ऋषि कश्यप के अधीन वन और अरण्य आते हैं। शैव पंथ के 7 अखाड़े में नागा साधु बनते हैं। नागा साधु में दीक्षा लेने के बाद साधुओं को उनकी वरीयता के आधार पर कोतवाल, पुजारी, बड़ा कोतवाल, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत, श्रीमहंत और सचिव पद दिए जाते हैं। बैरागी वैष्णव संप्रदाय के अखाड़े में आचार्य, स्वामी, नारायण, दास आदि उपनाम रखते हैं। जैसे रामदास, रामानंद आचार्य, स्वामी नारायण आदि। नाथ संप्रदाय के सभी साधुओं के नाम के आगे नाथ लगता है। जैसे गोरखनाथ, मछिंदरनाथ आदि। उदासीन संप्रदाय के संत निरंकारी होते हैं। इनके अखाड़ों की स्थापना गुरु नानकदेव जी के पुत्र श्रीचंद ने की थी। इनके संतों में दास, निरंकारी और सिंह अधिक होते हैं।


नागा साधुओं के प्रमुख अखाड़े में कुल 13 प्रमुख अखाड़े हैं, जिन्हें तीन प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया गया है। पहली श्रेणी में शैव अखाड़े, जिनकी कुल 7 संख्या है और जिनका संबंध शिव भक्त धारा से होता है। दूसरी श्रेणी में वैष्णव अखाडे, जिनकी कुल 3 संख्या हैं और जिनका संबंध विष्णु परंपरा से होता है। तीसरी श्रेणी में उदासीन अखाडे की है, जिनकी कुल 3 संख्या हैं। और जिनका संबंध सिख गुरुओं से होता है और जिनका संबंध परंपरा और उनके सिद्धांतों से होता है। 


नागा संतों के 13 अखाड़े है -

(1) निरंजनी अखाड़ा:- यह अखाड़ा गुजरात  के मांडवी में स्थापित हुआ था। इनके ईष्ट देव भगवान शंकर  के पुत्र कार्तिकस्वामी हैं। इनमें दिगम्बर, साधु, महन्त व महामंडलेश्वर होते हैं। इनकी शाखाएं इलाहाबाद, उज्जैन, हरिद्वार, त्र्यंबकेश्वर एव उदयपुर में हैं।

(2) जूना अखाड़ा:- यह अखाड़ा उत्तराखण्ड के कर्णप्रयाग में स्थापित हुआ था। इसे भैरव अखाड़ा भी कहते हैं। इनके ईष्ट देव रुद्रावतार दत्तात्रेय हैं। इसका केंद्र वाराणसी के हनुमान घाट पर माना जाता है। हरिद्वार में मायादेवी मंदिर के पास इनका आश्रम है।

(3) महानिर्वाण अखाड़ा:- इस अखाड़ा के संबंध में कुछ लोगों का मानना है कि इसका जन्म बिहार-झारखण्ड के बैजनाथ धाम में हुआ था, जबकि कुछ लोगों का कहना है इसका जन्म हरिद्वार में नील धारा के पास हुआ था। इनके ईष्ट देव कपिल महामुनि हैं। इनकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन, त्र्यंबकेश्वर, ओंकारेश्वर और कनखल में हैं।

(4) अटल अखाड़ा:- यह अखाड़ा गोंडवाना क्षेत्र में स्थापित हुआ था। इनके ईष्ट देव भगवान गणेश हैं। इसकी मुख्य पीठ पाटन में है लेकिन आश्रम कनखल, हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन व त्र्यंबकेश्वर में भी हैं।

(5) आह्वान अखाड़ा:- इस अखाड़े का केंद्र स्थान काशी है। इनके ईष्ट देव श्दत्तात्रेय और गजानन हैं। इसका आश्रम ऋषिकेश में है।

(6) आनंद अखाड़ा:- यह अखाड़ा मध्यप्रदेश के बेरार में स्थापित हुआ था। इसका भी केंद्र वाराणसी में है। इसकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन में हैं।

(7) पंचाग्नि अखाड़ा:- इस अखाड़े का प्रधान केंद्र काशी है। इनकी इष्ट देव गायत्री हैं। इनकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन एव त्र्यंबकेश्वर में हैं।

(8) नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा:- यह अखाड़ा अहिल्या-गोदावरी संगम पर स्थापित हुआ था। इनका इष्ट देव दैवत गोरखनाथ है और इनमें बारह पंथ हैं। यह संप्रदाय योगिनी कौल नाम से प्रसिद्ध है और इनकी त्र्यंबकेश्वर शाखा त्र्यंबकंमठिका नाम से प्रसिद्ध है।

(9)  वैष्णव अखाड़ा:- यह बालानंद अखाड़ा दारागंज में मध्यमुरारी में स्थापित हुआ था। समय के साथ इनमें निर्मोही, निर्वाणी, खाकी आदि तीन संप्रदाय बने। इनका अखाड़ा त्र्यंबकेश्वर में मारुति मंदिर के पास था।

(10)  उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा:- इस संप्रदाय के संस्थापक चंद्रआचार्य उदासीन थे। इनमें सांप्रदायिक भेद हैं। इनमें उदासीन साधु, मंहत एव महामंडलेश्वरों की संख्या ज्यादा है। उनकी शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, त्र्यंबकेश्वर, भदैनी, कनखल, साहेबगंज, मुलतान, नेपाल एव मद्रास में है।

(11) उदासीन नया अखाड़ा:- इस अखाड़ा को उदासीन बड़ा अखाड़ा के कुछ सांधुओं ने अलग होकर स्थापित किया था । इनकी शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, त्र्यंबकेश्वर में हैं।

(12) निर्मल पंचायती अखाड़ा:- यह अखाड़ा हरिद्वार कुंभ मेले के समय एक बड़ी सभा में विचार विमर्श करके  स्थापना की गई थी। इनकी ईष्ट पुस्तक गुरुग्रन्थ साहिब है। इनकी शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर में हैं।

(13) निर्मोही अखाड़ा:- निर्मोही अखाड़े की स्थापना रामानंदाचार्य ने की थी। इस अखाड़े के मठ और मंदिर उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और बिहार में हैं। 


कोई भी अखाड़ा में साधु संत को अच्छी तरह जाँच-पड़ताल कर, योग्य व्यक्ति होने पर ही प्रवेश मिलता है और  साधु संत को लम्बे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है, फिर उसे महापुरुष तथा फिर अवधूत बनाया जाता है। अन्तिम प्रक्रिया महाकुम्भ के दौरान होती है जिसमें उसका स्वयं का पिण्डदान तथा दण्डी संस्कार आदि शामिल होता है।


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