संयुक्त राष्ट्र महासभा में यूक्रेन युद्ध को लेकर पेश किए गए एक प्रस्ताव पर अमेरिका और रूस ने एक साथ मतदान किया, जिससे यह मुद्दा फिर से वैश्विक सुर्खियों में आ गया है। अमेरिका, जो अब तक रूस के खिलाफ सख्त रुख अपनाए हुए था, इस बार उसी के पक्ष में खड़ा दिखा। भारत और चीन ने इस पर क्या रुख अपनाया, यह भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है।
क्या था प्रस्ताव?
संयुक्त राष्ट्र में प्रस्तुत किए गए इस प्रस्ताव का उद्देश्य था कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा की जाए और संघर्ष समाप्त करने के लिए राजनयिक प्रयासों को तेज किया जाए। हालाँकि, अमेरिका और रूस दोनों ने इस प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया, जबकि कई अन्य देशों ने इसका समर्थन किया।
अमेरिका और रूस का विरोध क्यों?
यह निर्णय चौंकाने वाला था क्योंकि अमेरिका अब तक यूक्रेन का सबसे बड़ा समर्थक रहा है और रूस पर कई प्रतिबंध लगा चुका है। अमेरिका ने इस प्रस्ताव का विरोध इसलिए किया क्योंकि यह उनके अनुसार यूक्रेन संकट के समाधान के लिए प्रभावी नहीं था। रूस ने हमेशा की तरह इस प्रस्ताव को अपने खिलाफ अंतरराष्ट्रीय साजिश करार दिया।
भारत और चीन का रुख
भारत और चीन ने इस प्रस्ताव पर तटस्थ रुख अपनाते हुए मतदान में भाग नहीं लिया। भारत हमेशा से यूक्रेन-रूस युद्ध के मुद्दे पर संतुलित नीति अपनाता रहा है और बातचीत के माध्यम से शांति की अपील करता आया है। चीन भी आमतौर पर रूस के खिलाफ किसी प्रस्ताव का समर्थन नहीं करता, इसलिए उसने भी मतदान से दूरी बनाए रखी।
वैश्विक प्रभाव
इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि यूक्रेन युद्ध के मामले में वैश्विक राजनीति जटिल बनी हुई है। अमेरिका और रूस का एक साथ किसी प्रस्ताव का विरोध करना असामान्य है, लेकिन इससे यह भी पता चलता है कि कूटनीतिक समीकरण लगातार बदल रहे हैं। भारत और चीन की तटस्थता से यह संकेत मिलता है कि वे किसी भी पक्ष के साथ खुलकर नहीं जाना चाहते और संतुलित विदेश नीति बनाए रखना चाहते हैं।
यूक्रेन युद्ध को लेकर वैश्विक मंच पर लगातार नए घटनाक्रम देखने को मिल रहे हैं। अमेरिका और रूस का एक साथ मतदान करना, भारत और चीन की तटस्थता और अन्य देशों की प्रतिक्रियाएँ यह दर्शाती हैं कि यह मुद्दा जल्द सुलझने वाला नहीं है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में इस पर अंतरराष्ट्रीय राजनीति क्या मोड़ लेती है।