करीब सात वर्ष बाद अंतरिक्ष से पृथ्वी पर एक बड़ा खतरा मंडरा सकता है। इसे देखते हुए वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसियां संभावित आपदा से निपटने की योजना बनाने में जुट गई हैं।अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और चीन सहित विभिन्न देशों की एजेंसियां इस खतरे को टालने के लिए रणनीति तैयार कर रही हैं। यह खतरा एक उल्कापिंड वाईआर4 (YR4) का है, जो वर्ष 2032 में पृथ्वी से टकरा सकता है। हालांकि, अभी इसके धरती पर गिरने की संभावना कम है, लेकिन यदि ऐसा होता है तो भारी तबाही मच सकती है।
वाईआर4 (YR4) उल्कापिंड का परिचय
इस उल्कापिंड को 2024 वाईआर4 (YR4) नाम दिया गया है और इसे अपोलो-टाइप यानी पृथ्वी को पार करने वाली वस्तु के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसकी पहली खोज 27 दिसंबर 2024 को चिली के रियो हुर्तादो स्थित एक निगरानी स्टेशन से हुई थी। जब एस्टरॉयड टेरेस्ट्रियल इंपैक्ट लास्ट अलर्ट सिस्टम (एटलस) ने इस खतरे की चेतावनी जारी की, तो वैश्विक अंतरिक्ष एजेंसियों में हलचल मच गई।
वाईआर4 इस समय पृथ्वी से करीब 6.5 करोड़ किलोमीटर दूर है, लेकिन यह तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है। इसकी बदलती कक्षा पर जेम्स वेब टेलीस्कोप की मदद से नजर रखी जा रही है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह मार्च 2025 तक टेलीस्कोप की पकड़ में रहेगा, लेकिन अप्रैल के अंत तक इसे ट्रैक करना मुश्किल हो जाएगा। इसके बाद जून 2028 तक यह वैज्ञानिकों की निगरानी से बाहर हो सकता है, जिससे इसकी स्थिति का आकलन करना जटिल हो जाएगा।
टकराव की संभावनाएं और प्रभाव
यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ESA) के ‘नियर-अर्थ ऑब्जेक्ट कोऑर्डिनेशन सेंटर’ के प्रबंधक लुका कॉन्वर्सी के अनुसार, अब तक इस उल्कापिंड में चट्टानी पदार्थ ही दिखाई दिए हैं, जबकि लोहे और अन्य धातुओं की पहचान नहीं हुई है। यदि यह पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है, तो यह छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित हो सकता है, जिससे इसके प्रभाव की तीव्रता कम हो सकती है।
यदि वाईआर4 पृथ्वी से टकराता है, तो गुरुत्वाकर्षण बल के कारण इसकी गति लगभग 17 किमी प्रति सेकंड हो सकती है। यदि इसकी 130 फीट चौड़ी सतह पृथ्वी से टकराती है, तो यह एक बड़े धमाके का कारण बनेगा। वहीं, यदि इसका 300 फीट लंबा भाग पृथ्वी से टकराता है, तो यह पूरे शहर को तबाह कर सकता है।
परमाणु बम से भी बड़ा खतरा?
अगर उल्कापिंड टकराता है, तो इसका विस्फोट 80 लाख टन टीएनटी के बराबर हो सकता है, जो कि हिरोशिमा में गिरे परमाणु बम से 500 गुना अधिक शक्तिशाली होगा। इसका प्रभाव 50 किलोमीटर के दायरे में भारी तबाही मचा सकता है। यदि यह महासागर में गिरता है, तो सुनामी का खतरा उत्पन्न हो सकता है।
हालांकि, वैज्ञानिकों के अनुसार, वाईआर4 के पृथ्वी से टकराने की संभावना मात्र 2.3% है, यानी 97% से अधिक संभावना है कि यह पृथ्वी के पास से गुजर जाएगा। फिर भी, नासा लगातार इसके संभावित प्रभाव का अध्ययन कर रहा है। प्रारंभिक अनुमान के अनुसार, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत महासागर, दक्षिण एशिया, अरब सागर, अटलांटिक महासागर और अफ्रीका के कुछ हिस्सों पर इसका प्रभाव पड़ सकता है। सबसे अधिक खतरा भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इथियोपिया, सूडान, नाइजीरिया, वेनेजुएला, कोलंबिया और इक्वाडोर को बताया जा रहा है।
बचाव के उपाय
चूंकि वाईआर4 की सटीक स्थिति का पता जून 2028 के बाद ही चल पाएगा, वैज्ञानिकों के पास तैयारी के लिए केवल चार वर्ष होंगे। नासा 2022 में अपनाई गई तकनीक को दोबारा इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है। उस समय, 160 मीटर चौड़े डिमॉर्फस (Dimorphos) नामक उल्कापिंड की दिशा बदलने के लिए एक अंतरिक्षयान को उससे टकराया गया था, जिससे इसका मार्ग बदल गया था। इसे डबल एस्टरॉयड रिडायरेक्शन टेस्ट (DART) कहा गया था।
नासा अब इसी तकनीक के जरिए वाईआर4 के खतरे को टालने की कोशिश कर रहा है। इसके अलावा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी भी इस मिशन में सहयोग कर रही है। कुछ वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि अन्य संभावित योजनाओं पर भी विचार किया जाना चाहिए।
चीन की तैयारी
नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के अलावा चीन भी वाईआर4 से निपटने की तैयारियों में जुटा है। ‘साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’ और ‘द गार्डियन’ की रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने ‘प्लैनेटरी डिफेंस फोर्स’ (ग्रहीय रक्षा बल) का गठन करना शुरू कर दिया है। इसके लिए चीन के साइंस, टेक्नोलॉजी और इंडस्ट्री एडमिनिस्ट्रेशन (SASTIND) ने 35 वर्ष से कम उम्र के एयरोस्पेस इंजीनियरों और अन्य विशेषज्ञों की भर्ती शुरू कर दी है।
चीन 2027 में एक अन्य उल्कापिंड ‘2015 XF261’ को नष्ट करने के लिए नासा की 2022 की रणनीति को दोहराने की योजना बना रहा है। यह स्पष्ट है कि वाईआर4 के संभावित खतरे को देखते हुए दुनिया की प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियां सतर्क हो गई हैं और इससे निपटने के लिए तैयारियों में जुट गई हैं।