शिवपुराण, स्कंदपुराण, देवीभागवतपुराण में रूद्राक्ष के महत्व को बताया गया है। शिवपुराण में बताया गया है कि भगवान शिव को रूद्राक्ष सर्वाधिक प्रिय है और रूद्राक्ष दर्शन, स्पर्श और जाप से पापों का नाश होता है। रूद्राक्ष की महत्ता को देखते हुए आजकल भारतीय अध्यात्म का अनुशरण करने वाले अनेक देशों में रूद्राक्ष की लोकप्रियता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
तीन मुखी रुद्राक्ष को सत्व, रज, और तम, इन तीनों को त्रिगुणात्मक शक्तियों का स्वरूप माना गया है। इस विषय में कहा गया है कि यह इच्छा, ज्ञान और क्रिया, तीनों का शक्ति रूप होता है। यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) के स्वरूप का त्रिमूर्तिमय रूप होता है। यह तीनों लोकों की उत्पत्ति का कारण स्वरूप होता है। मानव को त्रिकालदर्शी बताता है अर्थात् भूत भविष्य और वर्तमान का ज्ञान देने वाला होता है। तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करने वाला मनुष्य त्रिपुरारी तुल्य हो जाता है।
तीन मुखी रुद्राक्ष को अग्नि रुप भी माना जाता है। तीन मुखी रूद्राक्ष धारण करने से मनुष्य की विध्वंसात्मक प्रवृतियों का दमन होता है और रचनात्मक प्रवृतियों का उदय होता है । इसके धारण करने से अगम्यागमन और परस्त्री गमन के पापों का निवारण होता है। धारक की दुष्ट चितवृत्तियाँ नष्ट होती है। घर में धन्य-धान की वृद्धि होती है। तीन मुखी रुद्राक्ष के अग्नितत्व प्रधान होने के कारण इसे धारण करने वाला व्यक्ति अग्नि के समान तेजस्वी हो जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, तीन मुखी रुद्राक्ष का संबंध मंगल ग्रह से होता है। यदि किसी की कुंडली में मंगल दोष है, यानि मंगल ग्रह अशुभ स्थिति में है, तो उनके लिए यह रुद्राक्ष धारण करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। तीन मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से मानसिक तनाव से राहत मिलती है और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। इसके अलावा, यह शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में भी मददगार माना जाता है। इसे धारण करने से व्यक्ति के जीवन से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और मन को शांति मिलती है। मेष और वृश्चिक राशि के जातकों के लिए तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना अत्यधिक शुभ और फलदायी होता है।