ध्यातव्य है कि इंदौर परिवार न्यायालय में जैन दंपती ने हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत तलाक का केस फाइल किया था। इस पर पारिवारिक न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश ने 8 फरवरी 2025 को आदेश पारित करते हुए, जैन समाज को अल्पसंख्यक मानते हुए, उनकी पूजा पद्धति और धार्मिक आस्थाओं को चिह्नित करते हुए, उन्हें हिन्दू धर्म से अलग बताते हुए, हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत तलाक से इनकार कर, अर्जी खारिज कर दिया था।
पारिवारिक न्यायालय के, फैसले के खिलाफ मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में अपील दायर हुई। न्यायालय ने 14 पेज के आदेश पारित करते हुए कहा कि केन्द्र सरकार ने 2014 में जैन समाज को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया है। यह अधिसूचना जैन समाज को सिर्फ अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा देने के लिए थी। इसके तहत मौजूदा कानूनों के प्रावधानों को संशोधित, अमान्य या अतिक्रमित नहीं करती है। अधिसूचना में जैन समाज को किसी भी कानून से बाहर रखने का कोई प्रावधान नहीं किया गया है। भारतीय संविधान के संस्थापकों और विधायिका ने हिन्दू विवाह अधिनियम के आवेदन के लिए हिन्दू, बौद्ध, सिख और जैन को एकीकृत किया है। इंदौर पारिवार न्यायालय का यह निर्णय अनुचित है कि हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के प्रावधान जैन समुदाय पर लागू नहीं होते हैं। इसके साथ ही न्यायालय ने इंदौर परिवार न्यायालय के 8 फरवरी को जारी किए गए फैसले को खारिज कर परिवार न्यायालय को कानूनी कार्रवाई के लिए केस वापस भेज दिया है।
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने इंदौर परिवार न्यायालय को फटकार लगाते हुए आदेश में सिविल प्रक्रिया संहिता के कानून का उल्लेख किया है और कहा है कि यदि किसी अधिनियम, अध्यादेश या विनियमन में निहित किसी प्रावधान की वैधता पर सवाल खड़ा होता है तो, निचली अदालत उसे उच्च न्यायालय को राय लेने के लिए भेज सकती है। इस पर उच्च न्यायालय आदेश कर सकता है। इस केस में न्यायालय ने वकीलों को अपनी बात रखने का अवसर ही नहीं दिया।
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