गृहस्थी जीवन की नीव लड़कियों में क्यों पड़ रही है कमजोर

Jitendra Kumar Sinha
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सर्वविदित है कि आज कल हर घर में लड़कियों की परवरिश की नीव हो रही है कमजोर।इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि लड़कियों के ससुराल की गृहस्थ जीवन हो रहा है दुखमय। 


प्रायः देखा जा रहा है कि लड़की की शादी होते ही उसके मायके वाले उसके ससुराल वालों पर हावी होना चाहते है, जिसके परिणाम स्वरूप लड़की के ससुराल में कलह शुरु हो जाता है। हर दिन किसी न किसी का घर, खराब हो रहा है। इसका मूल कारण है लड़की के मायके वालों की अनावश्यक  दखलंदाजी। 


वर्तमान समय में लड़कियों के मायके वाले, अपनी लड़कियों को सिनेमा के दृश्यों के अनुरूप, ढालने और अपनी शौक को पूरा करने के लिए, लड़कियों में संस्कार विहीन शिक्षा दे रहे हैं, इसका परिणाम हो रहा है कि सामाजिक, सांस्कृतिक और घरेलू जानकारी से लड़कियां पुरी तरह अनभिज्ञ रहती है।


मायके वालों की अकारण हस्तक्षेप और लड़की की घरेलू अयोग्यता के कारण, लड़की के मायके और ससुराल में, आपसी तालमेल का अभाव होने लगाता है, जिसके कारण पारिवारिक जीवन कलह के साथ शुरु होता है और नतीजा बुरा होता है।


मायके वाले अपनी लड़कियों को बचपन से आधुनिकता की चादर से पुरी तरह ढक देना चाहती है और इस आडम्बर को बरकरार रखने का दवाब, शादी बाद भी लड़कियों पर बनाए रखना चाहती है, इसका बुरा असर, लड़का और लड़की के घर बसने से पहले ही, बिखराव की स्थिति शुरु हो जाता है। 


ऐसे परवरिश में पली-बढ़ी लड़कियां, अपने को खुले विचार की मानती है और बड़े-बुजुर्ग की इज्जत करना तो दूर की बात है। उसे तो समाज का भय भी नही होता है, लाज-लज्जा नहीं होता है, लोक-लिहाज नहीं होता है, शिष्टाचार नही होता है। इसी का परिणाम होता शादी-शुदा जिन्दगी का नर्क होना।


ऐसी विचार की लड़कियां अपनी खूबसूरती, बनावटी चाल-ढाल, झूठ बोलने में अपने को काबिल, झूठे घमंड  और अज्ञान को, ज्ञान का भंडार समझती है। इतना ही नहीं, बल्कि अपनों से अधिक गैरों की राय लेना, परिवार से कट कर रहना, अहंकार के वशीभूत होकर रहना, इन सभी कारणों से वे अपना जीवन स्वयं नर्क कर लेती है।


मायके वाले शिक्षा के घमँड में अपनी लड़कियों में आदर-भाव, अच्छी बातें, घर के कामकाज सिखाना और परिवार चलाने के सँस्कार नहीं देते है। मायके वाले रिश्तों की मर्यादित जवाबदेही नही सिखाती है। परिणाम होता है पारिवारिक जीवन, सामाजिक मर्यादा, लोक लिहाज से अनभिज्ञ रहना।


जबकि शादी के पहले, लड़के वालों से शादी की बात करते वक्त, लड़की की माँ-बाप कहते थे कि मेरी बेटी गृह कार्य में दक्ष है, लेकिन ठीक इसके विपरीत आज की मां-बाप, शादी तय करते समय कहते हैं कि मेरी बेटी नाजों से पली है। आज तक हमने उससे तिनका भी नहीं उठवाया है। परिणाम होता है कि लड़की की माँ खुद की रसोई से ज्यादा, बेटी के घर (सुसराल) में क्या बना, क्या हो रहा है, कैसे बेटी रह रही है, कैसे ऐशो आराम से रहे इस पर ज्यादा ध्यान देती हैं। भले ही उनके खुद के घर में रसोई में सब्जी जल रही हो, स्वयं फटे हाल में हो।


प्रायः देखा जाता है कि ऐसे लड़कियों के पास कुत्ते-बिल्ली आदि के लिये समय बहुत रहता है, लेकिन परिवार के लिये समय नहीं होता है।


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