देश में लोकसभा और विधानसभा सीटों का संभावित परिसीमन 2026 में शुरू होना है। संभावित परिसीमन ने दक्षिण भारत की राजनीति में हड़कंप मचा दिया है। क्योंकि जनसंख्या दर घटने के कारण उत्तर भारत के मुकाबले दक्षिण भारत के राज्यों में लोकसभा सीटों की कटौती होने की पूरी संभावना है। ऐसी स्थिति में दक्षिण भारत के राज्यों से बड़ा आंदोलन होना निश्चित है। फिलहाल, केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच वाक युद्ध चरम पर है। हालांकि केन्द्रीय गृहमंत्री कई मौकों पर आश्वासन दिए है कि जनसंख्या के कारण दक्षिण भारत के राज्यों का नुकसान नहीं होगी।
यदि 2025 तक जनसंख्या प्रोजेक्शन के डेटा को देखा जाए तो, लोकसभा की सीटें उत्तर प्रदेश में 14, बिहार में 11, छत्तीसगढ़ में 1, मध्य प्रदेश में 5, झारखंड में 1, राजस्थान में 7, हरियाणा में 2 और महाराष्ट्र में 2 सीटों की बढ़ोतरी हो सकती है। वहीं, तमिलनाडु में 9, केरल को 6, कर्नाटक को 2, आंध्र प्रदेश को 5 तेलंगाना को 2, ओडिशा को 3 और गुजरात को 6 सीटों का नुकसान हो सकता है।
केन्द्र सरकार इसके लिए विकल्प या हल ढूंढ सकती है। ताकि देश के किसी भी राज्य में लोकसभा सीट कम नही हो। अमरीकी थिंक टैंक कानेंगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के फेलो मिलन वैष्णव और जेमी हिंटसन के अनुसार 2026 की अनुमानित जनसंख्या के आंकड़े के अनुसार, लोकसभा को 848 निर्वाचन क्षेत्रों की जरूरत होगी, ऐसी स्थिति में किसी भी राज्य की मौजूदा सीटें कम नहीं हो सकती है। वहीं दूसरे विकल्प के रूप में रिटायर्ड आइएएस अधिकारी रंगराजन के तर्क को देखा जा सकता है, लोकसभा की सीटों की बजाय राज्यों के विधानसभाओं में सीटों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। ताकि विधायक अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के नजदीक रहकर काम करते हैं। तीसरे विकल्प के तौर पर हैवराबाव यूनिवर्सिटी के प्रो. एस राजा सेतु दुरई और तमिलनाडु राज्य योजना आयोग के सदस्य आर. श्रीनिवासन के अनुसार, कनाडाई प्रणाली को लोकसभा में लागू करने से कुल संख्या 552 हो जाएगी। यूपी को नौ सीटें ज्यादा मिलेंगी, जिससे यह 89 हो जाएगी। वहीं तमिलनाडु की सीटें 39 ही रहेगी। चौथे विकल्प के लिए प्रो. सेथु दुरई और आर. औनिवासन के टीएफआर फॉर्मूले पर विचार किया जा सकता है, ऐसी स्थिति में लोकसभा सीटों को 750 तक बढ़ाना होगा, लेकिन सीटों का इस तरह से रिऑर्गनाइजेशन किया जा सकता है कि कम स्पीड से बढ़ती आबादी वाले राज्यों को नुकसान नहीं हो। इस फॉर्मूले से यूपी को 106 और तमिलनाडु को 55 सीट मिल सकती है।
तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण को प्रभावी रूप से अपनाया है, वहाँ जनसंख्या वृद्धि दर कम है। लेकिन परिसीमन के अनुसार, कम जनसंख्या वृद्धि वाले राज्यों की लोकसभा सीटें घट सकती हैं। 2026 में तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव भी होने हैं, और यह संभावना है कि परिसीमन चुनावी मुद्दे बनेंगे। राजनीतिक दल इन मुद्दों को अपनी रणनीति का हिस्सा बना सकते हैं।कुछ नेताओं का यह बयान भी आया था कि तमिल लोगों को अधिक बच्चे पैदा करने चाहिए ताकि भविष्य में तमिल आबादी की राजनीतिक शक्ति बनी रहे। यह बयान परिसीमन से जुड़ी आशंकाओं को दशार्ता है। दक्षिण भारत के राज्यों को लगता है कि उन्हें राजनीतिक रूप से कमजोर करने की साजिश का सामना करना पड़ रहा है।
केन्द्र सरकार का मानना है कि दक्षिण भारत के राज्यों को, जनसंख्या नियंत्रण के लिए उनकी लोकसभा सीटों की संख्या में कमी नहीं होगी। केन्द्रीय गृहमंत्री आश्वस्त कर चुके हैं कि परिसीमन के बाद प्रोरेटा के हिसाब से दक्षिण भारत के एक भी राज्य की एक भी सीट कम नहीं होगी। केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह सभी राज्यों के साथ सहमति बनाकर समाधान निकाले, ताकि कोई भी राज्य खुद को अलग-थलग महसूस न करे। यदि यह विवाद अनसुलझा रहता है, तो यह राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समरसता के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है।
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