बिहार सरकार की महत्वाकांक्षी ‘सतत् जीविकोपार्जन योजना’ ने अत्यंत गरीबी से जूझ रहे हजारों परिवारों के जीवन में बदलाव की नई इबारत लिख दी है। ग्रामीण विकास विभाग और जीविका परियोजना के संयुक्त प्रयास से संचालित इस योजना ने अब तक 95 हजार से अधिक अत्यंत निर्धन परिवारों को आत्मनिर्भर बनाने में सफलता पाई है।
लाभान्वित परिवारों के जीवन में आया नया सवेरा
यह योजना उन परिवारों को मुख्यधारा से जोड़ने का माध्यम बनी है, जो कभी सामाजिक और आर्थिक रूप से सबसे अधिक पिछड़े हुए माने जाते थे। योजना के अंतर्गत चयनित 2,01,218 अत्यंत गरीब परिवारों में से 1,85,122 परिवारों को जीविकोपार्जन अंतराल राशि दी गई है, जबकि 1,89,271 परिवारों को एकीकृत परिसंपत्तियां जैसे गाय, बकरी आदि प्रदान की गई हैं।
बेहद गरीब परिवारों के लिए आत्मनिर्भरता का रास्ता
इस योजना का मुख्य उद्देश्य अत्यंत गरीब, अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य कमजोर वर्गों के परिवारों को आर्थिक रूप से स्थायित्व प्रदान करना है। इन परिवारों को एक लाख से दो लाख रुपये तक की निवेश सहायता दी जा रही है, जिससे वे पशुपालन जैसे व्यवसायों को अपना रहे हैं। इससे न सिर्फ उनकी आमदनी बढ़ी है, बल्कि जीवन में स्थिरता और सम्मान भी आया है।
पूर्व में नशे से जुड़े काम, अब सम्मानजनक व्यवसाय
कई ऐसे परिवार जो पहले शराब, ताड़ी या अन्य अस्थायी आजीविकाओं पर निर्भर थे, अब स्थायी और सम्मानजनक व्यवसायों में लगे हैं। यह बदलाव सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि सामाजिक रूप से भी क्रांतिकारी साबित हो रहा है।
महिलाओं की भूमिका में आई क्रांति
एक उल्लेखनीय पहलू यह भी है कि इस योजना के तहत ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी तेजी से बढ़ी है। वे अब परिवार के निर्णयों में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं और नेतृत्व की ओर अग्रसर हैं। ‘सतत् जीविकोपार्जन योजना’ ने यह दिखा दिया है कि सही नीति, समुचित दिशा और समर्पित प्रयासों से जमीनी स्तर पर बदलाव संभव है।
एक नीतिगत सफलता की कहानी
बिहार में गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में ‘सतत् जीविकोपार्जन योजना’ एक सशक्त उदाहरण बनकर उभरी है। यह योजना दर्शाती है कि जब सरकार, परियोजनाएं और समुदाय मिलकर काम करते हैं, तो सबसे कमजोर वर्गों का जीवन भी उजाले की ओर बढ़ सकता है।
