भारत के तीसरे राष्ट्रपति: डॉ. ज़ाकिर हुसैन और उनके संघर्ष

Jitendra Kumar Sinha
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भारत के तीसरे राष्ट्रपति, डॉ. ज़ाकिर हुसैन, न केवल एक महान शिक्षाशास्त्री थे, बल्कि उन्होंने अपने जीवन में कई संघर्षों का सामना किया और भारतीय समाज की बेहतरी के लिए काम किया। उनका जीवन भारतीय राजनीति और शिक्षा के लिए एक प्रेरणा बन गया। डॉ. हुसैन ने राष्ट्रपति बनने से पहले और उसके बाद भी विभिन्न महत्वपूर्ण भूमिकाओं में अपने योगदान से देश को आगे बढ़ाया।


प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:

डॉ. ज़ाकिर हुसैन का जन्म 8 फरवरी 1897 को हैदराबाद (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा कोलकाता के प्रख्यात स्कूलों में हुई, और उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा के लिए यूरोप का रुख किया। डॉ. हुसैन को अपनी शिक्षा के प्रति गहरी रुचि थी, और उन्होंने अपनी जीवन यात्रा में ज्ञान के महत्व को हमेशा उजागर किया।


शिक्षा और सांस्कृतिक योगदान:

डॉ. हुसैन का सबसे बड़ा योगदान भारतीय शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में था। वह दिल्ली विश्वविद्यालय के इस्लामिया कॉलेज में प्राचार्य रहे, और बाद में वह हैदराबाद विश्वविद्यालय के कुलपति बने। इसके अलावा, उन्होंने भारतीय सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने के लिए भी कई पहल की। उनका सपना था कि भारतीय समाज में शिक्षा और संस्कृति के माध्यम से एकता और भाईचारे का माहौल बने।


राजनीतिक संघर्ष और राष्ट्र निर्माण में योगदान:

डॉ. हुसैन ने अपने जीवन में कई संघर्षों का सामना किया। वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रेरणास्त्रोत थे और उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में संघर्षों में भाग लिया। उनका मानना था कि भारतीय समाज की प्रगति और स्वतंत्रता के लिए शिक्षा का प्रचार-प्रसार अत्यंत आवश्यक है।

वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सक्रिय सदस्य रहे और महात्मा गांधी के विचारों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साथ ही, वह मुस्लिम समुदाय के लिए भी एक बड़ा सहारा बने, और उनके प्रयासों से भारतीय समाज में सशक्तिकरण की प्रक्रिया शुरू हुई।


राष्ट्रपति के रूप में योगदान:

डॉ. ज़ाकिर हुसैन 1967 में भारत के तीसरे राष्ट्रपति बने। वह राष्ट्रपति पद पर पहुंचने वाले पहले मुस्लिम व्यक्ति थे। उनके राष्ट्रपति बनने से पहले भी वह भारतीय राजनीति और समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत रहे थे। राष्ट्रपति बनने के बाद, उनका ध्यान विशेष रूप से शिक्षा, विज्ञान और समाजिक विकास पर केंद्रित था।

डॉ. हुसैन ने एकता और विविधता की भारतीय परंपरा को बनाए रखने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए। उनके नेतृत्व में, भारत ने सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनकी राष्ट्रपति पद की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उन्होंने हमेशा लोकतंत्र की मजबूती और भारतीय संविधान के प्रति अपनी आस्था जताई।


अंतिम संघर्ष और निधन:

डॉ. हुसैन का जीवन कई संघर्षों से भरा हुआ था, और उन्हें जीवन के अंत तक कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा। 1969 में, जब वह भारतीय राष्ट्रपति के रूप में अपनी सेवा दे रहे थे, तब वह स्वास्थ्य कारणों से अस्वस्थ हो गए थे। 3 मई 1969 को उनका निधन हो गया। उनका निधन भारतीय राजनीति और समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति था।


डॉ. ज़ाकिर हुसैन का जीवन भारतीय राजनीति, शिक्षा और समाज में स्थायी योगदान के रूप में याद किया जाएगा। उनके संघर्षों ने न केवल भारतीय मुसलमानों के लिए बल्कि पूरे भारतीय समाज के लिए एक मिसाल कायम की। उन्होंने अपने जीवन को समाज की सेवा में समर्पित किया, और उनके प्रयासों से भारतीय समाज को एक नई दिशा मिली। आज भी, डॉ. ज़ाकिर हुसैन का नाम सम्मान और श्रद्धा के साथ लिया जाता है, और उनका योगदान भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में अमिट रहेगा।

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