सत्रहवीं सदी में अंग्रेजों ने भारत से, मजदूरों को विदेश ले जाकर उनसे, काम करवाना शुरू किया था और इन मजदूरों को 'गिरमिटिया' कहा गया। गिरमिट शब्द अंग्रेजी के एग्रीमेंट शब्द का बिगड़ा हुआ रूप है। जिस कागज पर अंगूठे का निशान लगवाकर मजदूर भेजे जाते थे उसे मजदूर, और मालिक, गिरमिट कहते थे।
प्रत्येक वर्ष 15 हजार मजदूर गिरमिटिया बनकर फिजी, ब्रिटिश गुयाना, डच गुयाना, ट्रिनीडाड, टोबेगो, दक्षिण अफ्रीका आदि जगहों पर जाते थे। यह प्रथा 1834 में शुरू हुई थी और 1917 में इसे खत्म कर दिया गया। इस प्रथा के विरुद्ध महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका से अभियान प्रारंभ किया था।
भारत में गोपाल कृष्ण गोखले ने इंपीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल में मार्च 1912 में गिरमिटिया प्रथा समाप्त करने का प्रस्ताव रखा था। कौंसिल के 22 सदस्यों ने तय किया था कि जब तक यह अमानवीय प्रथा खत्म नहीं की जाती है, तब तक वे हर साल यह प्रस्ताव पेश करते रहेंगे।
दिसम्बर 1916 में कांग्रेस अधिवेशन में महात्मा गांधी ने भारत सुरक्षा और गिरमिट प्रथा अधिनियम प्रस्ताव रखा। बढ़ते आक्रोश को देखते हुए सरकार ने 12 मार्च, 1917 को, इस प्रथा को खत्म करने का आदेश, गजट में प्रकाशित कर दिया गया था।
