देशभर में जहां शिक्षा को व्यापार के रैंप पर चढ़ाकर मुनाफा कमाया जा रहा है, वहीं पंजाब में एक ऐसा शिक्षण संस्थान है, जहां सेवा, सुमिरन, सहयोग, सादगी, शुचिता, ईमानदारी और परोपकार का पाठ पढ़ाया जा रहा है। इस शिक्षण संस्थान में दाखिला लेने वाली छात्राएं ही, टीचर से लेकर क्लर्क तक के काम करती हैं। सीनियर छात्राएं ही जूनियर कक्षा की छात्राओं को पढ़ाती हैं। यह सिलसिला एमए से लेकर नर्सरी तक चलता है। पहले चरण में एक टीचर सौ छात्राओं को एक समूह में पढ़ाती है, फिर 10-10 के अन्य समूहों को पढ़ाया जाता है। पढ़ाई में किसी कारण से पिछड़ रही छात्राओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
इस शिक्षण संस्थान का नाम बाबा आया सिंह रियाड़की कॉलेज, तुगलवाला है। इसकी स्थापना रियाड़की क्षेत्र के बाबा आया सिंह ने 1923 में 'पुत्री पाठशाला' के रूप में की थी। बाबा आया सिंह जीवन के अंतिम पलों तक इस पाठशाला से जुड़े रहे।
कॉलेज के प्रिंसिपल स्वर्ण सिंह विर्क यहां चौबीस घंटे किसी भी काम के लिए उपलब्ध रहते हैं। कॉलेज का आर्थिक पक्ष कैसे मजबूत हो सके, इसके लिए परिसर में 12 गोबर गैस प्लांट बनवाए गए हैं, ताकि हॉस्टल में रहने वाली बच्चियों के लिए भोजन बिना लकड़ी या बिना एलपीजी के पकाया जा सके।
पंद्रह एकड़ में फैले हैं कॉलेज। दस एकड़ में छात्राएं करती हैं खेती, पांच एकड़ में छात्राओं के रहने के लिए हॉस्टल है, जहां लगभग 2400 छात्राएं रहती हैं। एक साल की फीस 800 रुपए है। निर्धनों को दी जाती है मुफ्त शिक्षा, 4,000 छात्राओं वाले इस संस्थान में मात्र पांच शिक्षक हैं, साफ-सफाई से लेकर खाना पकाने तक का काम छात्राओं के जिम्मे रहती है। छात्राएं ही संभालती है खेती से लेकर डेयरी तक के काम। शिक्षण संस्थान का आटा- चक्की से लेकर सौर ऊर्जा तक सबकुछ अपना है।
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