देश में एक लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करते हुए, नरेंद्र मोदी सरकार ने जाति आधारित जनगणना कराने का ऐलान कर दिया है। यह फैसला 2024 के आम चुनावों के बाद से लगातार चर्चा में था, और अब जब केंद्र सरकार ने इसकी पुष्टि कर दी है, तो यह भारतीय राजनीति में एक बड़ा मोड़ माना जा रहा है।
क्या है जाति जनगणना?
जाति जनगणना वह प्रक्रिया है जिसमें सरकार जनसंख्या का आंकलन केवल संख्या के आधार पर नहीं, बल्कि जातीय वर्गों के आधार पर भी करती है। भारत में पिछली बार जाति आधारित जनगणना 1931 में हुई थी। इसके बाद से जनगणना होती रही, लेकिन उसमें जातिगत आंकड़े शामिल नहीं किए गए। अब करीब 93 साल बाद केंद्र सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाया है।
सरकार का ऐलान
सरकारी सूत्रों के अनुसार, यह जनगणना डिजिटल फॉर्मेट में की जाएगी, जिसमें आधार और मोबाइल नंबर से लिंक किया जाएगा। सरकार ने कहा है कि यह कदम समाज में समावेशिता और न्याय को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है। इसके माध्यम से वास्तविक सामाजिक-आर्थिक स्थिति का आकलन किया जा सकेगा, जिससे योजनाओं और आरक्षण नीतियों को ज्यादा प्रभावशाली तरीके से लागू किया जा सकेगा।
क्यों है यह फैसला महत्वपूर्ण?
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नीतियों की दिशा तय करने में मदद: जातीय आंकड़े मिलने के बाद सरकार को यह स्पष्ट तस्वीर मिलेगी कि कौन-से वर्ग अब भी पीछे हैं और किन्हें विशेष सहायता की ज़रूरत है।
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राजनीतिक असर: यह कदम विभिन्न राज्यों में जातिगत समीकरणों को नया आकार दे सकता है, खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जहां जाति राजनीति का बड़ा हिस्सा रही है।
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विपक्ष पर प्रहार: विपक्षी पार्टियां लंबे समय से इस मांग को उठा रही थीं। अब केंद्र सरकार द्वारा इसे अपनाकर राजनीतिक बढ़त लेने की कोशिश की जा रही है।
किस तरह से होगी जनगणना?
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यह जनगणना पूरी तरह डिजिटल माध्यम से की जाएगी।
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लोगों से जाति, उपजाति, सामाजिक स्थिति, शिक्षा, रोजगार आदि से जुड़े विस्तृत सवाल पूछे जाएंगे।
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डेटा को एक केंद्रीकृत सुरक्षित प्रणाली में संग्रहित किया जाएगा।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
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भाजपा ने इसे “सबका साथ, सबका विकास” की दिशा में बड़ा कदम बताया है।
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कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस कदम का स्वागत तो किया है, लेकिन इसे देर से उठाया गया कदम बताया।
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कुछ क्षेत्रीय दलों ने आशंका जताई है कि यह सिर्फ एक चुनावी स्टंट है, लेकिन व्यापक जनसमर्थन को देखते हुए उन्होंने विरोध नहीं किया।
जाति जनगणना का यह ऐलान भारत के सामाजिक ढांचे और सरकारी योजनाओं की दिशा में ऐतिहासिक बदलाव का संकेत देता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में यह जनगणना किस तरह से लागू होती है और इसके आंकड़ों का उपयोग कैसे किया जाता है।
जातियों की गिनती से कहीं ज़्यादा, यह गिनती भारत की असल तस्वीर दिखाने वाला आइना बन सकती है – जिसमें सिर्फ संख्या नहीं, बल्कि न्याय, अवसर और समानता की खोज छुपी है।