भारत-पाकिस्तान सीमा से परे, बलूचिस्तान के निर्जन और पथरीले इलाके में एक शक्ति ऐसी भी है, जो आज भी श्रद्धा, आस्था और रहस्य का प्रतीक है। वह शक्ति है — हिंगलाज भवानी। यह मंदिर, जो वर्तमान में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के लासबेला ज़िले में स्थित है, 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
हिंगलाज माता का मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह हिंदू धर्म की वह लौ है जो सीमाओं के पार भी अनगिनत श्रद्धालुओं के हृदय में जलती है।
पौराणिक मान्यता
शक्तिपीठों की कथा देवी सती और भगवान शिव से जुड़ी है। जब सती ने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर अपने प्राण त्याग दिए, तो शिव शोक में उनका मृत शरीर लेकर तांडव करने लगे। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित किया, और जहाँ-जहाँ वे अंग गिरे, वहाँ शक्तिपीठ स्थापित हुए।
हिंगलाज में माता सती का "ब्रह्मरंध्र" (मस्तिष्क का ऊपरी भाग) गिरा था, इसलिए इसे सर्वोच्च और अत्यंत पवित्र शक्तिपीठों में गिना जाता है।
भौगोलिक स्थिति और यात्रा
हिंगलाज भवानी का मंदिर मकरान पर्वतमाला में स्थित है, जो अब पाकिस्तान के बलूचिस्तान में पड़ता है। यह इलाका सुनसान, रेगिस्तानी और कठिन यात्रा वाला है। लेकिन आज भी भारत और पाकिस्तान के कई हिस्सों से भाट, मेघवाल, नाथ, साधु-संत और सामान्य श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए पहुँचते हैं।
यात्रा कठिन है, लेकिन आस्था की शक्ति इतनी गहरी है कि लोग हिंगलाज की रेतीली घाटियों में कदम रखते ही नतमस्तक हो जाते हैं।
हिंगलाज यात्रा: श्रद्धा और साहस की कसौटी
हिंगलाज माता की वार्षिक यात्रा को "हिंगलाज यात्रा" कहा जाता है। यह यात्रा विशेष रूप से सिंध, कराची, लरकाना और भारत के गुजरात व राजस्थान के भक्तों द्वारा की जाती है।
यात्रा में भक्तों को पहाड़, नदी, रेगिस्तान, और उबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरना होता है। लेकिन ये कठिनाइयाँ भक्तों की श्रद्धा को और प्रबल बनाती हैं। रास्ते में माता के कई छोटे पड़ाव हैं — चमुकली, मारूति गुफा, कोड़ा पीर, और अंत में — हिंगलाज गुफा जहाँ माता की मूर्ति नहीं, शिला (पिंड) रूप में दर्शन होते हैं।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व
हिंगलाज भवानी का मंदिर सनातन धर्म, योग, और तंत्र साधना से गहराई से जुड़ा है। यह स्थान ऋषियों, योगियों और तांत्रिकों की साधना भूमि रही है।
इतिहास में यह मंदिर हिंगलाज तीर्थ के नाम से विख्यात रहा है और रामायण तथा महाभारत काल से इसकी उपस्थिति मानी जाती है। आदिकाल में यह हिंगुला नदी के किनारे स्थित था, जिससे माता का नाम "हिंगलाज" पड़ा।
आधुनिक युग में मंदिर की स्थिति
आज यह मंदिर पाकिस्तान में है, लेकिन यहां पाकिस्तानी हिंदुओं की विशेष आस्था है। वहाँ की स्थानीय मुस्लिम आबादी भी हिंगलाज माता को "नानी" या "नानी पीर" कहकर श्रद्धा देती है, और उनकी सुरक्षा में सहयोग करती है।
भारत से तीर्थयात्रियों का पहुँचना अब सीमित है, लेकिन कई श्रद्धालु हर साल वीजा लेकर या गुप्त साधना से वहाँ पहुँचते हैं।
