बिहार सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था बीते दो दशक बाद अब तस्वीर बदली है। सरकार की नीतियों, आशा कार्यकर्ताओं की अथक मेहनत और जन-जागरूकता अभियानों के कारण यह तस्वीर बदली है और आज बिहार देश के अग्रणी राज्यों की कतार में खड़ा हो गया है।
ध्यातव्य है कि बिहार सरकार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय ने हाल ही में घोषणा की थी कि अगले तीन महीनों में राज्य में 27,375 नये आशा कार्यकर्ताओं और फैसिलिटेटरों की नियुक्ति की जाएगी। इनमें ग्रामीण क्षेत्रों में 21,009 आशा कार्यकर्ता, शहरी क्षेत्रों में 5,316 और 1,050 आशा फैसिलिटेटर शामिल हैं। इस अहम फैसले का उद्देश्य स्वास्थ्य सेवाओं को और अधिक जनसुलभ और प्रभावी बनाना है।
वर्तमान समय में राज्य में आशा कार्यकर्ता 91,281, आशा फैसिलिटेटर 4,361 और ममता कार्यकर्ता 5,111 कार्यरत हैं। ये सभी मातृ और शिशु स्वास्थ्य, टीकाकरण, पोषण और अन्य प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं के प्रसार में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं की इस यात्रा को आंकड़ों के माध्यम से समझा जा सकता है। वर्ष 2019-20 में एनएफएचएस-5 और ताजा एचएमआईएस आंकड़े केअनुसार, 52.9 प्रतिशत महिलाएं पहली तिमाही में एएनसी सेवाएं ले रही हैं। एचएमआईएस के अनुसार 77 प्रतिशत महिलाएं प्रारंभिक एएनसी सेवाएं ले रही हैं। लगभग 85 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं चार बार प्रसव पूर्व एएनसी जांच करवा रही हैं। 97 प्रतिशत महिलाएं गर्भावस्था के समय पंजीकरण करवा रही हैं।
यह बदलाव केवल योजनाओं से नहीं बल्कि जमीन पर काम कर रहीं आशा कार्यकर्ताओं के साथ-साथ राज्य सरकार के समर्पण भाव से संभव हुआ है। उन्होंने न सिर्फ दूरदराज के इलाकों तक स्वास्थ्य जानकारी पहुंचाई है बल्कि महिलाओं को अस्पताल में सुरक्षित प्रसव, समय पर टीकाकरण और नवजात देखभाल के प्रति जागरूक भी किया है।
बिहार सरकार अब इस सुधार को और गति देने के लिए आशा नेटवर्क को और मजबूत बना रही है। स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय ने यह स्पष्ट किया है कि नई नियुक्तियों की प्रक्रिया ग्राम सभाओं और नगर निकायों के माध्यम से की जाएगी ताकि चयन स्थानीय जरूरतों के मुताबिक हो।
फिलहाल वर्ष 2005 से वर्ष 2025 तक की यह यात्रा बिहार को स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों तक ले जा रही है।
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