समुद्र के नीचे मिला 1.40 लाख वर्ष पुराना प्राचीन शहर - "सुंदालैंड"

Jitendra Kumar Sinha
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इंडोनेशिया के जावा और मदुरा द्वीपों के बीच समुद्र के नीचे हुई एक अभूतपूर्व खोज ने वैज्ञानिकों को चौंका दिया है। 1.40 लाख वर्ष पुराने मानव खोपड़ी के टुकड़े और हजारों जानवरों के जीवाश्म, यह खोज इस ओर इशारा करता है कि समुद्र के नीचे कभी दुनिया थी।

इस क्षेत्र को वैज्ञानिक लोग "सुंदालैंड" कहते हैं। एक विशाल भूखंड जो वर्तमान में समुद्र में समा चुका है। माना जाता है कि यह भूमि दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों जैसे थाईलैंड, मलेशिया, सुमात्रा, जावा और बोर्नियो को एकजुट करती थी। यह क्षेत्र कभी उष्णकटिबंधीय जंगलों और समृद्ध वन्य जीवन से भरा हुआ था।

सुंदालैंड का आकार लगभग 18 लाख वर्ग किलोमीटर था, इसकी जलवायु उष्णकटिबंधीय, अत्यंत समृद्ध पारिस्थिति की थी, प्राचीन मानव जीवन के लिए यह अनुकूल था और यह विलुप्त हो चुका है लगभग 7,000 साल पहले।

2011 में, समुद्री रेत खनन के दौरान सुराबाया के पास मजदूरों को खोपड़ी और हड्डियों के टुकड़े मिले थे। हाल ही में, जब इन अवशेषों का परीक्षण लीडेन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किया, तब पता चला कि यह अवशेष केवल हजारो साल पुराने नहीं है, बल्कि 140,000 वर्ष पुराना है। खोज करने पर होमो इरेक्टस (Homo erectus) मानव के खोपड़ी के टुकड़े, कोमोडो ड्रैगन, हाथी, भैंस, हिरण जैसी 36 प्रजातियों के 6,000 जीवाश्म और मध्य प्लेस्टोसीन युग के प्रमाण मिला है।

इन जीवाश्मों की उम्र जानना बेहद जरूरी था। वैज्ञानिकों ने "ऑप्टिकली स्टिमुलेटेड ल्यूमिनसेंस (OSL)" नामक तकनीक का प्रयोग किया। इसमें क्वार्ट्ज कणों में फंसे इलेक्ट्रॉनों को प्रकाश से उत्तेजित कर उनके अंतिम सूर्य संपर्क का समय मापा जाता है, जिसमें पाया गया कि तलछट और हड्डियाँ 162,000 से 119,000 वर्ष पुरानी है, युग- मध्य प्लेस्टोसीन (Pleistocene Epoch) और जलवायु- गर्म और आर्द्र, गहन जैव विविधता है।

होमो इरेक्टस एक ऐसा प्राचीन मानव प्रजाति है, जो लगभग 20 लाख साल पहले से लेकर 1 लाख साल पहले तक धरती पर मौजूद रहा है। वह सबसे पहले सीधे खड़ा होकर चलने वाला मानव था, जिसने आग का प्रयोग किया और औजार बनाया। यह मानव अफ्रीका से बाहर जाकर बसने वाले पहले मानव समूहों में से था, उनका जीवाश्म एशिया में पहले भी मिल चुका है, लेकिन यह खोज सबसे गहरे समुद्री स्तर पर मिली है और यह प्रजाति आधुनिक मानव (Homo sapiens) से पहले की है।

यह खोज सिर्फ मानव खोपड़ी तक सीमित नहीं है, बल्कि 6,000 से अधिक जानवरों के जीवाश्म, जिनमें हाथी, हिरण, भैंस और कोमोडो ड्रैगन जैसी बड़ी प्रजातियाँ शामिल हैं। इस से यह प्रमाणित होता है कि यह क्षेत्र एक समृद्ध और विविध पारिस्थितिकी तंत्र का केंद्र था, क्योंकि कोमोडो ड्रैगन आज भी जीवित है, लेकिन केवल कुछ द्वीपों पर पाया जाता है। हाथी संभवतः विलुप्त प्रजाति है। हिरण और भैंस जंगली रूप में मौजूद है। 

लगभग 14,000 से 7,000 साल पहले, जब धरती पर अंतिम हिमयुग समाप्त हो रहा था, तो ग्लेशियरों का पिघलना शुरू हुआ था। इससे समुद्र का स्तर लगभग 120 मीटर तक बढ़ गया। नतीजतन, सुंदालैंड जैसे निचले भूभाग पानी में समा गया था। ऐसी स्थिति में संभव है कि समुद्र के नीचे बसी बस्तियाँ और सभ्यताएँ रही होगी। मानव प्रवास की प्राचीन धारा इसी भूभाग से गुजरा होगा। भारत, बाली, म्यांमार और चीन के बीच समुद्री रास्तों का प्राचीन आधार भी रहा होगा।

यह खोज पुरापाषाण विज्ञान के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि मानी जा रही है। लीडेन विश्वविद्यालय के पुरातत्वविद हेरोल्ड बर्गुइस के अनुसार, यह खोज न केवल प्राचीन मानव जीवन की विविधता को दर्शाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि मानव समाज की गतिशीलता उस समय भी तीव्र थी। बर्गुइस का कथन है कि "इस खोज से यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन काल में मानव समाज स्थिर नहीं था। वह चलता -फिरता था, स्थान बदलता था, और पर्यावरण के साथ गहरे संपर्क में रहता था।"

अब यह प्रश्न वैज्ञानिकों और पुरातत्वविदों के बीच चर्चा का केंद्र बन गया है कि क्या यह केवल एक प्राकृतिक पारिस्थिति थी या यहाँ कोई संगठित मानव समाज रहता था? संभावना व्यक्त किया जा रहा है कि हड्डियों और औजारों की खोज से संकेत मिलता है कि मानव यहाँ ठहरे थे, शिकार करते थे और संभवतः छोटे समुदायों में रहते थे। कुछ जीवाश्मों की संरचना से अनुमान लगाया जा रहा है कि हो सकता है इन जानवरों को मानवों द्वारा मारा गया हो। अन्य वस्तुएँ जैसे पत्थर के औजार अभी परीक्षण के अधीन हैं।

यह खोज केवल इंडोनेशिया के लिए ही नहीं है, बल्कि पूरे मानव इतिहास के लिए महत्वपूर्ण है। इससे यह सिद्ध होता है कि प्राचीन मानव कई क्षेत्रों में फैले हुए थे, जिनके बारे में आज तक जानकारी नहीं थी। समुद्र का बढ़ता स्तर केवल प्राकृतिक आपदा नही था, बल्कि एक ऐतिहासिक घटना भी है, जो सभ्यताओं को मिटा सकता है। सुंदालैंड जैसे डूबे हुए भूभागों की खोज से वैश्विक इतिहास का एक नया अध्याय खुल सकता है।

सुंदालैंड की यह खोज यह स्पष्ट संकेत दे रहा है कि मानव इतिहास की जड़ें जितनी गहरी धरती में हैं, उतनी ही समुद्र के नीचे भी। यह खोज आधुनिक विज्ञान, पुरातत्व और भूगोल के लिए एक चुनौती और अवसर दोनों है।

आने वाले वर्षों में यदि इस खोज पर और कार्य हुआ, तो शायद उन "समुद्री सभ्यताओं" के बारे में जान पाएंगे जिनका अब तक केवल पौराणिक ग्रंथों में ही उल्लेख होता था। 



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