कलादान प्रोजेक्ट से खुलेगा पूर्वोत्तर भारत का समुंदर से दरवाजा

Jitendra Kumar Sinha
0

 


भारत के पूर्वोत्तर राज्य अपनी सांस्कृतिक विविधता, प्राकृतिक सौंदर्य और रणनीतिक महत्त्व के लिए जाने जाते हैं। मगर वर्षों से इस क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती रही है — कनेक्टिविटी। केवल 22 किलोमीटर चौड़े सिलीगुड़ी कॉरिडोर के माध्यम से शेष भारत से जुड़ाव होना इस पूरे क्षेत्र को रणनीतिक रूप से असुरक्षित और आर्थिक रूप से सीमित बनाता है।

हाल ही में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया ने चीन को यह कहकर संकेत दिया कि भारत का पूर्वोत्तर 'लैंड लॉक्ड' है और बांग्लादेश ही इस क्षेत्र का 'ओशन गेटवे' है। इस टिप्पणी ने भारत की विदेश नीति और सुरक्षा रणनीति को सक्रिय किया और इसके जवाब में एक बड़े प्रोजेक्ट की नींव रखी गई- “कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट।”

कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट (Kaladan Multi-Modal Transit Transport Project - KMTTP) भारत और म्यांमार के बीच समुद्र, नदी और सड़क मार्ग से जुड़ाव का एक बहुआयामी प्रोजेक्ट है। यह कोलकाता से म्यांमार के सित्तवे बंदरगाह और फिर वहाँ से म्यांमार के जमीनी क्षेत्रों से होकर मिज़ोरम के लोंगतलाई जिले तक पहुंचेगा। मुख्य मार्ग कोलकाता से सित्तवे (समुद्री मार्ग) 539 किलोमीटर, सित्तवे से कालेतवा (कलादान नदी पर जल मार्ग) 158 किलोमीटर और कालेतवा से जोरिनपुई, मिज़ोरम (सड़क मार्ग) 110 किलोमीटर है। प्रोजेक्ट का उद्देश्य सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भरता को कम करना, पूर्वोत्तर में व्यापारिक और सैन्य पहुंच को मजबूती देना, भारत-म्यांमार व्यापारिक रिश्तों को प्रोत्साहित करना और एक्ट ईस्ट नीति को सशक्त करना है।

कलादान परियोजना से समन्वय में भारत सरकार ने शिलांग (मेघालय) से सिलचर (असम) तक हाई स्पीड राजमार्ग की योजना को मंजूरी दी है। इस प्रोजेक्ट की कुल लंबाई 166.8 किलोमीटर है, जिसमें 144.8 किलोमीटर मेघालय में और 22 किलोमीटर असम में निर्मित होगा। इसकी प्रमुख विशेषता ₹22,864 करोड़ की लागत, 19 बड़े पुल, 153 छोटे पुल, 326 पुलिया, 22 अंडरपास, 26 ओवरपास, 8 लो-लेवल सबवे और सफर का समय 8.5 घंटे से घटकर 5 घंटे हो जाएगा। यह प्रोजेक्ट राष्ट्रीय राजमार्ग एवं अवसंरचना विकास निगम (NHIDCL) द्वारा तैयार किया जाएगा और 2030 तक इसके पूरा होने की उम्मीद है।

बांग्लादेश के नेताओं द्वारा भारत के पूर्वोत्तर को 'लैंड लॉक्ड' कहने का मतलब केवल एक भौगोलिक तथ्य नहीं है, बल्कि यह भारत की प्रभुता और पूर्वोत्तर के आत्मसम्मान को चुनौती देने जैसा था। यह संदेश चीन के सामने आत्मसमर्पण की तरह था, जो लगातार इस क्षेत्र में अपने पाँव पसारने की कोशिश में लगा है। भारत की प्रतिक्रिया है कि कलादान प्रोजेक्ट को तेजी से आगे बढ़ाना, शिलांग-सिलचर हाईवे को रक्षा दृष्टिकोण से प्राथमिकता देना और बांग्लादेश पर निर्भरता कम करना तथा म्यांमार जैसे वैकल्पिक साझेदारों पर भरोसा बढ़ाना है।

सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे 'चिकन नेक' कहा जाता है, भारत के उत्तर-पूर्व को शेष भारत से जोड़ने वाला एकमात्र मुख्य जमीनी मार्ग है। अगर किसी दुश्मन देश या आतंकी संगठन द्वारा यह कॉरिडोर बाधित कर दिया जाए, तो पूरा पूर्वोत्तर भारत अलग-थलग पड़ सकता है। इसकी समस्याएँ है भौगोलिक रूप से संकरा (केवल 22 किमी चौड़ा), भूस्खलन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित और सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है।  कलादान और शिलांग-सिलचर मार्ग इस निर्भरता को तोड़ने की दिशा में मजबूत कदम हैं।

पूर्वोत्तर भारत दशकों से विकास की मुख्यधारा से थोड़ा अलग रहा है। वहाँ की सुंदरता, संस्कृति और संभावनाएं होते हुए भी यह क्षेत्र कनेक्टिविटी की कमी से पीछे रह गया है। कलादान और शिलांग-सिलचर प्रोजेक्ट से पर्यटन को मिलेगा बड़ा बढ़ावा, उद्योग और व्यापार के लिए परिवहन लागत कम होगी, रक्षा और सुरक्षा की दृष्टि से सेना को लचीलापन मिलेगा और नौकरियों के नए अवसर पैदा होंगे।

भारत की विदेश नीति में 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' पूर्वोत्तर को एक गेटवे के रूप में देखती है, जिसके माध्यम से दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों से संपर्क और व्यापार बढ़ाया जा सकता है। कलादान प्रोजेक्ट के माध्यम से म्यांमार और थाईलैंड तक जमीनी और जलमार्ग से पहुँच, BIMSTEC देशों से व्यापारिक संबंधों को बल और ASEAN देशों में भारत की साख में वृद्धि होगी।

कलादान प्रोजेक्ट केवल एक इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना नहीं है, बल्कि भारत की रक्षा नीति में बदलाव का भी संकेत है। जहां चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत दक्षिण एशिया में अपनी पकड़ बना रहा है, वहीं भारत ने म्यांमार के माध्यम से अपना नया कॉरिडोर विकसित करने का फैसला लिया है। सैन्य दृष्टिकोण से सैन्य साजो-सामान की आपूर्ति के लिए वैकल्पिक मार्ग, आपदा प्रबंधन के लिए तेज रिस्पॉन्स और सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर दबाव में कमी होगी।

यह परियोजनाएं केवल बड़ी नीतियों और रणनीतियों का हिस्सा नहीं है, बल्कि पूर्वोत्तर भारत के आम लोगों के जीवन को भी बेहतर बनाएंगी। संभावित परिवर्तन है कि किसानों को बाजार तक बेहतर पहुंच, छोटे उद्योगों और हस्तशिल्प को नए ग्राहक, युवा वर्ग के लिए रोजगार के अवसर तथा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक बेहतर पहुँच होगी।

जहाँ एक ओर इस प्रोजेक्ट से उम्मीदें बंधी हैं, वहीं इसकी चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। क्योंकि म्यांमार में अस्थिर राजनीतिक हालात, भौगोलिक बाधाएं और निर्माण में देरी तथा सुरक्षा के लिए सीमाई क्षेत्रों में संघर्ष की चुनौतियां रहेगी। फिर भी, सरकार की प्रतिबद्धता, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और क्षेत्रीय भागीदारी से यह प्रोजेक्ट भारत की तस्वीर को बदल सकता है।

कलादान प्रोजेक्ट और शिलांग-सिलचर हाई स्पीड कॉरिडोर मिलकर न केवल पूर्वोत्तर भारत को भारत के बाकी हिस्सों से बेहतर जोड़ेंगा, बल्कि भारत की कूटनीति, रणनीति और विकास की सोच को भी नई दिशा देगा। यह एक स्पष्ट संदेश तो है कि भारत न किसी पर निर्भर रहेगा, न अपनी रणनीतिक सीमाओं को कमजोर होने देगा। बांग्लादेश की टिप्पणी को जवाब, चीन की चालों पर रोक और पूर्वोत्तर के लोगों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने का यह प्रयास आने वाले वर्षों में भारत की 'नई राह' को और मजबूत अवश्य करेगा।



एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top