लोकतंत्र में संसद सदस्यों को मिलती है संसदीय विशेषाधिकार

Jitendra Kumar Sinha
0



भारतीय लोकतंत्र की सफलता का एक प्रमुख आधार है- संसद। संसद केवल देश की विधायिका ही नहीं होता है, बल्कि जनप्रतिनिधियों की आवाज और जनता के हितों की अभिव्यक्ति का सर्वोच्च मंच भी होता है। इस मंच पर काम कर रहे सांसदों को प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए कुछ विशेष अधिकार और छूट भी प्राप्त हैं, जिसे हमलोग "संसदीय विशेषाधिकार" कहते हैं। यह विशेषाधिकार संविधान में निहित हैं और इसका उद्देश्य है- विधायी कार्यों को स्वतंत्रता और निर्भीकता से संपन्न करना।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 में संसद सदस्यों के विशेषाधिकारों की चर्चा है, जबकि अनुच्छेद 194 राज्य विधानमंडलों के सदस्यों के अधिकारों को परिभाषित करता है। इन दोनों अनुच्छेदों के तहत, सदस्यों को अधिकार दिए गए हैं, जिसमें सदन या समिति में स्वतंत्र रूप से विचार प्रकट करने की छूट। बैठक के दौरान और अधिवेशन से 40 दिन पहले और बाद गिरफ्तारी से संरक्षण। सदन की कार्यवाही से जुड़े बयानों पर किसी भी अदालत में कार्रवाई से उन्मुक्ति। सदन के भीतर की कार्यवाही के लिए अध्यक्ष/सभापति का सर्वोच्च नियंत्रण शामिल है। यह प्रावधान संसदीय लोकतंत्र को मजबूती देता है, जिससे सांसद बिना किसी भय के अपने विचार रख सकें।

संसदीय विशेषाधिकार के तहत संसद के प्रत्येक सदस्य को व्यक्तिगत रूप से विशेषाधिकार प्राप्त हैं। जिसके तहत विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अधिवेशन के दौरान तथा उससे 40 दिन पहले और बाद तक गिरफ्तारी से छूट,  संसद में कही गई बातों या मतदान के लिए किसी भी न्यायालय में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। उसी प्रकार पूरे सदन (लोकसभा या राज्यसभा) को प्राप्त सामूहिक विशेषाधिकार के अंतर्गत सदन अपनी कार्यवाही की विधि और प्रक्रिया स्वयं तय कर सकता है। सदन के कुछ कार्यों को गुप्त रखा जा सकता है। सदन अपने परिसर में शांति और अनुशासन बनाए रखने के लिए नियम बना सकता है।

जब कोई व्यक्ति, संस्था या यहाँ तक कि संसद सदस्य स्वयं भी सदन की गरिमा या अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो उसे "संसदीय विशेषाधिकार भंग" अथवा "सदन की अवमानना" का दोषी माना जा सकता है और इसके लिए भर्त्सना या चेतावनी देना, ताड़ना (Reprimand), सदस्य को निलंबित करना या बर्खास्त करना और आरोपी को जेल भेजना (अवमानना के मामलों में) दंड देने का प्रावधान है। वर्ष 2005 में संसद में नकद घूस लेते हुए पकड़े गए सांसदों को सदन से निष्कासित किया गया था। यह संसदीय विशेषाधिकार का कठोर लेकिन आवश्यक प्रयोग था।

राज्य विधानसभाओं और विधान परिषदों को भी उन्हीं विशेषाधिकारों का लाभ प्राप्त है, जो संसद के सदस्यों को मिलते हैं। 

भारत ने अपने संसदीय विशेषाधिकार ब्रिटेन की संसद से प्रेरित होकर अपनाए हैं। वहाँ भी सांसदों को भाषण, मतदान, गिरफ्तारी से छूट आदि अधिकार प्राप्त हैं। लेकिन कई विकसित लोकतंत्रों में अब इन अधिकारों को स्पष्ट कानूनों द्वारा सीमित किया गया है। ब्रिटेन में 1987 के 'Parliamentary Privileges Act' के बाद काफी कुछ बदला है ।वहीं, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों ने भी विशेषाधिकारों की कानूनी परिभाषा स्पष्ट किया है। इसलिए भारत में भी समय की मांग के अनुसार, विशेषाधिकारों को कानून के दायरे में लाया जाना चाहिए ताकि जनता का विश्वास बना रहे।



एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top