बलूचिस्तान पर पाकिस्तान की टूटती पकड़ - विद्रोह की बदलती तस्वीर

Jitendra Kumar Sinha
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पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत बलूचिस्तान एक बार फिर विद्रोह की आग में जल रहा है। यह क्षेत्र दशकों से अलगाववादी आंदोलन और असंतोष का गढ़ रहा है, लेकिन हाल के महीनों में जिस पैमाने और समन्वय के साथ बलूच विद्रोहियों द्वारा पाकिस्तानी सेना पर हमला हो रहा हैं, उसने न केवल इस्लामाबाद को चौंका दिया है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय का भी ध्यान आकर्षित किया है। विद्रोह अब बिखरा हुआ संघर्ष नहीं रहा, बल्कि संगठित और तकनीकी रूप से उन्नत गुरिल्ला युद्ध का रूप ले चुका है। पाकिस्तान की आंतरिक और विदेश नीति पर इसका गहरा असर पड़ रहा है। 

बलूच विद्रोह की जड़ 1948 से हैं, जब बलूच नेताओं ने पाकिस्तान में विलय को अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद 1958, 1962, 1973 और फिर 2004 से लेकर अब तक विद्रोह की कई लहरें आई और हर बार पाकिस्तान ने इस पर सैन्य बल से काबू पाने की कोशिश की, लेकिन विद्रोह बार-बार उभरता रहा।

बलूच के लोगों की शिकायत हैं कि राजनीतिक स्वायत्तता की कमी, संसाधनों की लूट, और जातीय उपेक्षा है। जबकि बलूचिस्तान खनिजों से भरपूर है, लेकिन इसके लाभ बलूच जनता तक नहीं पहुंचता है। प्राकृतिक गैस, सोना, तांबा, यूरेनियम यह सब बाहरी कंपनियां और पाकिस्तानी सेना नियंत्रित करती है।

हाल की घटनाएं दर्शाती हैं कि बलूच विद्रोह अब पारंपरिक कबीलाई नेतृत्व से हटकर एक शिक्षित, तकनीकी और मध्यमवर्गीय नेतृत्व के अधीन आ गया है। ऐसा लगता है कि बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA), बलूच रिपब्लिकन गार्ड (BRG) और बलूच नेशनलिस्ट आर्मी (BNA) जैसे संगठनों ने या तो आपस में विलय कर लिया है या रणनीतिक गठबंधन बना लिया है। इन समूहों का नया नेतृत्व अब सोशल मीडिया, संचार तकनीकों और आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल करते हुए गुरिल्ला युद्ध को एक नई ऊंचाई पर ले जा रहा है। स्नाइपर अटैक, IED ब्लास्ट, आत्मघाती हमले और घात लगाकर हमला, यह सब अब व्यवस्थित ढंग से किया जा रहा है।

2025 की शुरुआत में, खासकर मई महीने में बलूच लिबरेशन आर्मी ने 'हेरोफ सैन्य अभ्यास' नाम से ऑपरेशन चलाया है, जिसमें उन्होंने दावा किया कि 51 से अधिक स्थानों पर 71 समन्वित हमले किए गए। एक ही दिन में क्वेटा जैसे संवेदनशील शहर में 6 हमले हुए हैं। बलूच विद्रोहियों ने क्वेटा, तुर्बत, खुजदार और ग्वादर जैसे शहरों में चेक पोस्ट बनाया है, राजमार्गों पर कब्जा किया है, और लेवीज तथा पुलिस ठिकानों पर धावा बोला है। सबसे खास बात यह है कि बलूचिस्तान और सिंध को जोड़ने वाला राजमार्ग तक इनके नियंत्रण में आ गया है।

भारत-पाकिस्तान के बीच हाल ही में बढ़े तनाव के कारण पाकिस्तान ने अपनी सैन्य टुकड़ियों को बलूचिस्तान से हटा कर पूर्वी सीमा पर तैनात कर दिया। इसका सीधा लाभ बलूच विद्रोहियों को मिला, जिन्होंने इस सैन्य शून्यता का भरपूर लाभ उठाया है। पाकिस्तानी सेना की Southern Command, जो बलूचिस्तान की रक्षा की जिम्मेदारी संभालती है, उसकी प्रभावशीलता इन हमलों के सामने नगण्य साबित हुई। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां ISI, MI और जेआईएसबी भी इन समन्वित हमलों की पूर्वसूचना देने में विफल रहीं।

बलूचिस्तान में पाकिस्तान ने थलसेना, वायुसेना, नौसेना और तटरक्षक बल सभी की उपस्थिति बनाय हुए है एल पाकिस्तानी थलसेना क्वेटा स्थित Southern Command का संचालन एक लेफ्टिनेंट जनरल करता है। वायुसेना समुंगली बेस (31वीं फाइटर विंग) क्वेटा में स्थित है। इसके अलावा तीन अन्य बेस हैं। नौसेना ग्वादर, जिवानी, ओरमारा और पसनी में नौसैनिक ठिकाने हैं। ग्वादर सबसे प्रमुख बंदरगाह है। खुफिया तंत्र ISI का संयुक्त सिग्नल इंटेलिजेंस ब्यूरो सैन्डक और ग्वादर में सक्रिय है। इतनी जबरदस्त उपस्थिति के बावजूद, विद्रोहियों का नियंत्रण बढ़ता ही जा रहा है।

बलूच विद्रोही अब केवल बंदूक से नहीं, बल्कि कीबोर्ड से भी युद्ध लड़ रहा हैं। सोशल मीडिया पर उनके कई हैंडल हैं जो न केवल उनके अभियानों की जानकारी देता हैं, बल्कि जनता के मनोबल को बढ़ाने और पाकिस्तान सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाने का काम करता हैं। विद्रोही समूहों ने अपना डिजिटल नेटवर्क मजबूत किया है। मोबाइल ऐप, एनक्रिप्टेड मैसेजिंग प्लेटफॉर्म, और लोकल नेटवर्क का इस्तेमाल कर वह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों को चकमा देने में सफल हो रहा हैं।

इस्लामाबाद में बैठी सरकार अब दो मोर्चों पर संघर्ष कर रही है, एक तरफ भारत के साथ सीमा पर तनाव और दूसरी तरफ बलूचिस्तान में विद्रोह। सेना के पास संसाधनों की कमी नहीं है, लेकिन रणनीति की कमी है। राजनीतिक नेतृत्व बलूच समस्या को केवल कानून-व्यवस्था के दृष्टिकोण से देखता रहा है, जबकि असली आवश्यकता सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की है। किसी भी प्रकार की राजनीतिक बातचीत या सुलह की पहल पाकिस्तान ने कभी गंभीरता से नहीं किया है।

ग्वादर बंदरगाह पर चीन की भारी निवेश के कारण यह क्षेत्र अब केवल पाकिस्तान का आंतरिक मामला नहीं रहा। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) बलूच विद्रोहियों के निशाने पर है, और यदि वह इस गलियारे को क्षति पहुंचाता हैं, तो इसका प्रभाव बीजिंग तक महसूस किया जाएगा।

भारत, अमेरिका और अफगान बलों की नजरें पहले से बलूचिस्तान पर रही हैं। अफगान सीमा से लगे इलाकों में विद्रोहियों को सुरक्षित पनाह मिलता है। यदि स्थिति और बिगड़ती है, तो यह दक्षिण एशिया को एक नए संघर्ष की ओर ले जा सकता है।

बलूच विद्रोह अब स्थायी संघर्ष का रूप ले चुका है। यदि पाकिस्तान जल्द ही कोई निर्णायक और समावेशी राजनीतिक समाधान नहीं निकालता है, तो वह बलूचिस्तान को धीरे-धीरे खो देगा। हर नया हमला इस विभाजन की घड़ी को थोड़ा और नजदीक खींचता जा रहा है।

इतिहास गवाह है कि जब जनता की आकांक्षाएं बार-बार कुचला जाता हैं, तो विद्रोह जन-आंदोलन बन जाता है। आज बलूच विद्रोह इसी पड़ाव पर जा रहा है।

बलूच विद्रोह की वर्तमान स्थिति पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा आंतरिक संकट बन चुका है। जहां पहले यह बिखरा हुआ था, असंगठित और कबीलाई संघर्ष था, लेकिन अब यह एक संगठित, प्रशिक्षित, और तकनीकी रूप से समर्थ गुरिल्ला युद्ध बन गया है।

यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि पाकिस्तान एक बार फिर 1971 जैसी स्थिति की ओर बढ़ रहा है, जहां बलूचिस्तान, एक नया ‘बांग्लादेश’ बन सकता है। यदि इस्लामाबाद ने अब भी चेतना नहीं दिखाई, तो बलूच विद्रोह केवल आजादी की पुकार ही नहीं, एक नई अंतरराष्ट्रीय जियो-पॉलिटिकल चुनौती बन जाएगा।

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