भारतीय राजनयिक माधुरी गुप्ता की कहानी एक ऐसे जासूसी कांड की है, जिसने देश को झकझोर कर रख दिया। लगभग तीन दशकों तक विदेश मंत्रालय में सेवा देने के बाद, उन्होंने पाकिस्तान के लिए जासूसी की, और इसका कारण था—प्यार। यह मामला 2010 में सामने आया, जब उन्हें इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग से बुलाकर दिल्ली में गिरफ्तार किया गया।
करियर और इस्लामाबाद में पोस्टिंग
माधुरी गुप्ता ने 1980 के दशक की शुरुआत में विदेश मंत्रालय में ग्रेड बी कैडर के रूप में सेवा शुरू की। उनकी उर्दू में दक्षता और सूफी साहित्य में रुचि के कारण उन्हें 2007-08 में इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग में द्वितीय सचिव (प्रेस और सूचना) के पद पर नियुक्त किया गया। यहाँ उनका कार्य पाकिस्तानी मीडिया का विश्लेषण कर दिल्ली को रिपोर्ट भेजना था।
प्यार का जाल: जासूसी की शुरुआत
इस्लामाबाद में रहते हुए, माधुरी की मुलाकात एक पाकिस्तानी व्यक्ति 'जमशेद' उर्फ 'जिम' से हुई। जमशेद, जो वास्तव में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए काम करता था, ने माधुरी को प्रेमजाल में फँसाया। माधुरी ने न केवल उससे शादी करने की योजना बनाई, बल्कि इस्लाम धर्म अपनाने की भी इच्छा जताई। इस प्रेम के चलते, उन्होंने भारतीय खुफिया अधिकारियों और अन्य संवेदनशील जानकारियों को लीक करना शुरू कर दिया।
गिरफ्तारी और कानूनी कार्यवाही
2010 में भारतीय खुफिया एजेंसियों को शक हुआ कि इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग से जानकारी लीक हो रही है। उन्होंने माधुरी को झूठी जानकारी दी, जो बाद में लीक हो गई, जिससे उनकी संलिप्तता स्पष्ट हुई। उन्हें दिल्ली में एक बैठक के बहाने बुलाकर गिरफ्तार किया गया। पूछताछ में उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने संवेदनशील जानकारी लीक की है, जिसमें भारतीय खुफिया अधिकारियों की पहचान भी शामिल थी।
2018 में, उन्हें जासूसी और आपराधिक साजिश के आरोप में दोषी ठहराया गया और तीन साल की सजा सुनाई गई। हालांकि, उन्हें गोपनीय दस्तावेजों की चोरी के आरोप से बरी कर दिया गया। 2021 में, 64 वर्ष की आयु में, उनकी मृत्यु हो गई, जबकि उनकी अपील दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित थी।
सबक और सुरक्षा चिंताएँ
माधुरी गुप्ता का मामला इस बात की चेतावनी है कि कैसे व्यक्तिगत भावनाएँ और असंतोष राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकते हैं। यह घटना दर्शाती है कि विदेशी पोस्टिंग में कार्यरत अधिकारियों के लिए सतर्कता और मानसिक समर्थन कितना आवश्यक है। इससे पहले भी, और हाल ही में ज्योति मल्होत्रा का मामला, यह संकेत देता है कि जासूसी के खतरे अभी भी मौजूद हैं और हमें सतर्क रहने की आवश्यकता है।
यह कहानी न केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे एक व्यक्ति की भावनात्मक कमजोरी राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे अधिकारी न केवल पेशेवर रूप से सक्षम हों, बल्कि मानसिक रूप से भी मजबूत और सतर्क रहें।