भारत सहित 30 देश मिलकर बना रहा है - 'सूरज जैसी आग'

Jitendra Kumar Sinha
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दक्षिण फ्रांस में बन रहे इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (आइटीईआर) ने भारत सहित 30 से ज्यादा देशों की मदद से न्यूक्लियर फ्यूजन की दिशा में बड़ी छलांग लगाई है। रिएक्टर की सबसे जटिल तकनीकी प्रणाली सुपरकंडक्टिंग मैग्नेट्स अब पूरी तरह तैयार हो चुकी है। 


इस अंतरराष्ट्रीय परियोजना में भारत की भूमिका केवल भागीदारी की नहीं, बल्कि तकनीकी नेतृत्व की रही है। क्रायोस्टेंट से लेकर हीटिंग सिस्टम तक, कई अहम यूनिट्स भारत में डिजाइन और निर्मित हुएं है।


आइटीईआर का उद्देश्य है सूर्य जैसी ऊर्जा पृथ्वी पर दोहराना यानि न्यूक्लियर फ्यूजन को व्यावसायिक रूप से उपयोगी बनाना है। इसमें हाइड्रोजन जैसे हल्के परमाणु अत्यधिक तापमान पर टकराकर भारी मात्रा में ऊर्जा पैदा करता हैं और कोई रेडियोधर्मी कचरा नहीं निकलता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि 60 किलो फ्यूजन ईंधन से उतनी ऊर्जा मिल सकती है, जितनी ढाई लाख टन पेट्रोल से मिलती है।


इस प्रोजेक्ट की ताजा उपलब्धि 'सेंट्रल सोलिनॉइड' का पूरा होना है, जो प्लाज्मा को नियंत्रित करने वाला विशाल सुपरकंडक्टिंग चुबंक है। इसकी ताकत इतनी है कि यह एक एयरक्राफ्ट कैरियर तक को उठा सकता है।


अमरीका में बने इस मैग्नेट को अब फ्रांस स्थित रिएक्टर में जोड़ा जा रहा है। प्रोजेक्ट में अब तक 10,000 टन सुपरकंडक्टिंग मैग्नेट और एक लाख किलोमीटर विशेष तारों का उपयोग हो चुका है।


टोकमाक रिएक्टर को घेरे हुए भारत द्वारा निर्मित क्रायोस्टैट माइनस 269 डिग्री सेंटीग्रेट पर कार्य करते हुए सुपरकंडक्टिंग स्थिति बनाए रखने में सहायक है। साथ ही हीलियम क्रायोलाइंस, इन-वॉल शिल्डिंग, हीटिंग और कूलिंग तकनीकें भारत की वैज्ञानिक दक्षता का प्रमाण हैं।


यह प्लाज्मा को 15 करोड़ डिग्री सेल्सियस तक गर्म करने में सक्षम हैं, सूर्य के केंद्र से 10 गुना अधिक। यह प्रोजेक्ट तय शेड्यूल से चार साल पीछे है, पर 2033 में पहली बार कृत्रिम रूप से प्लाज्मा उत्पन्न करने की तैयारी है।


इस प्रोजेक्ट में यूरोप लागत का 45% उठा रहा है, वहीं भारत सहित 7 अन्य साझेदार देश 9% का आर्थिक सहयोग कर रहे हैं।

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