1947 का भारत-पाक विभाजन केवल दो देशों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण नहीं था, यह एक ऐसा ऐतिहासिक मोड़ था, जिसने उपमहाद्वीप को खून से सने भूगोल, टूटी हुई रियासतों और कभी न सुलझ पाने वाले विवादों की ओर धकेल दिया। इन्हीं विवादों में सबसे प्रमुख और संवेदनशील मुद्दा है- पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके)। यह वह क्षेत्र है जिस पर पाकिस्तान ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है और जो भारत के लिए आज भी संवैधानिक दृष्टि में भारत का अभिन्न अंग है।
भारत की आजादी के समय 560 से अधिक रियासतों को भारत या पाकिस्तान में विलय या स्वतंत्र रहने का विकल्प दिया था ब्रिटिश। जम्मू और कश्मीर एक महत्वपूर्ण रियासत थी, जिसकी बहुसंख्यक आबादी मुस्लिम थी लेकिन शासक महाराजा हरि सिंह हिन्दू थे। उन्होंने स्वतंत्र रहना चाहा, लेकिन यह तटस्थ रुख लंबे समय तक नहीं टिक सका।
पाकिस्तान ने मुस्लिम बहुल कश्मीर को हथियाने के लिए 'ऑपरेशन गुलमर्ग' रचा। 22 अक्टूबर 1947 को कबायली लड़ाकों ने एबटाबाद में एकत्र होकर मुजफ्फराबाद और बारामूला पर हमला किया। यह हमला सुनियोजित था, जिसे पाकिस्तानी सेना ने हथियार और रसद देकर संचालित किया था।
जब कबायली हमलावर श्रीनगर के दरवाजे तक पहुंच गया, तब 24 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने भारत से सैन्य सहायता मांगी। भारत ने स्पष्ट किया कि वह तभी मदद करेगा, जब जम्मू-कश्मीर भारत में औपचारिक रूप से विलय होगा। 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरिसिंह ने 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन' पर हस्ताक्षर किया और 27 अक्टूबर को भारतीय सेना श्रीनगर में एयरलिफ्ट कर दी गई। यह भारत की पहली सैन्य कार्रवाई थी, जिसने पाकिस्तान समर्थित हमलावरों को पीछे धकेला और राज्य को भारत में सम्मिलित किया।
1947-48 के पहले भारत-पाक युद्ध के बाद जनवरी 1949 में संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से युद्धविराम हुआ और एक अस्थायी "सीजफायर लाइन" खींची गई। इसी रेखा को 1972 के शिमला समझौते के बाद 'नियंत्रण रेखा' (LoC) नाम दिया गया। पीओके का क्षेत्रफल लगभग 85,000 वर्ग किलोमीटर, गिलगित-बाल्तिस्तान 72,000 वर्ग किलोमीटर और आजाद जम्मू और कश्मीर (एजेके) लगभग 13,000 वर्ग किलोमीटर है। गिलगित-बाल्तिस्तान को पाकिस्तान द्वारा विशेष प्रशासनिक क्षेत्र घोषित है, लेकिन पाकिस्तान का संवैधानिक हिस्सा नहीं है। आजाद जम्मू और कश्मीर (एजेके) नाम मात्र की स्वायत्तता है, जबकि इस पर पूरा नियंत्रण पाकिस्तान के पास है। इसकी सीमा पूर्व में- लद्दाख (भारत), पश्चिम में- पाकिस्तान का पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा, उत्तर में- अफगानिस्तान का वाखान कॉरिडोर और उत्तर-पूर्व में- चीन का शिंजियांग प्रांत है।
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), गिलगित-बाल्तिस्तान से होकर गुजरता है और चीन के शिनजियांग प्रांत को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ता है। भारत ने बार-बार कहा है कि यह उसकी संप्रभुता का उल्लंघन है क्योंकि यह क्षेत्र भारत का अभिन्न हिस्सा है। वर्ष 1963 में पाकिस्तान ने 1,930 वर्ग किमी का क्षेत्र, यानि शक्सगाम घाटी, चीन को सौंप दी है। भारत ने इस कदम को गैरकानूनी और असंवैधानिक करार दिया है।
5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35A को समाप्त कर जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा हटा दिया है। इसके साथ ही, राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट रूप से कहा कि "अब अगला लक्ष्य पीओके की पुनः प्राप्ति है।" भारत संसद ने 1994 में सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें कहा गया था कि "पीओके भारत का अविभाज्य हिस्सा है।"पीओके में जन असंतोष और मानवाधिकार बना हुआ है। स्थानीय सरकार की कोई स्वतंत्रता नहीं है। रक्षा, संचार, विदेश नीति सीधे इस्लामाबाद के नियंत्रण में हैं। संसाधनों के दोहन और बुनियादी सुविधाओं की बहुत कमी है। गिलगित-बाल्तिस्तान के लोगों में लंबे समय से असंतोष कायम है। स्थानीय लोगों को जमीन, रोजगार और संसाधनों में हिस्सेदारी नहीं मिलती है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) के माध्यम से बड़े पैमाने पर चीनी कंपनियों की मौजूदगी से सांस्कृतिक और पर्यावरणीय खतरा बढ़ा हुआ है।
1948 में संयुक्त राष्ट्र ने 47 प्रस्ताव पारित कर संघर्ष विराम और जनमत संग्रह की बात कही थी, लेकिन पाकिस्तान ने कब्जा किए क्षेत्र से सेना नहीं हटाई और भारत ने इसे आंतरिक मुद्दा घोषित कर दिया। पाकिस्तान की दोहरी नीति के कारण एक ओर आजाद कश्मीर का दावा, तो दूसरी ओर पूर्ण नियंत्रण। साथ ही, राजनीतिक दलों, प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी प्रतिबंध लगा दिया है।
भारत अब "पीओके पुनः प्राप्ति" के लक्ष्य की ओर कूटनीतिक और सामरिक दोनों स्तरों पर कदम बढ़ा रहा है। सीमाओं पर इंफ्रास्ट्रक्चर, रडार निगरानी और सामरिक ताकत में निरंतर वृद्धि हो रही है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र ने ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया, लेकिन वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय समुदाय पीओके के मुद्दे को पाकिस्तान के आंतरिक विवाद की तरह देखता है। भारत की कूटनीति का लक्ष्य है कि वैश्विक मंचों पर इसे फिर से प्रमुख एजेंडा बनाया जाए।
पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) एक ऐसा संघर्ष है जो केवल दो देशों की सीमाओं का विवाद नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक अन्याय का प्रतीक है। भारत न केवल कूटनीतिक स्तर पर, बल्कि सैन्य, संवैधानिक और वैश्विक मंचों पर इस क्षेत्र को पुनः प्राप्त करने की दिशा में प्रतिबद्ध है। "कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है"—यह केवल नारा नहीं, बल्कि एक राष्ट्र की चेतना है। पीओके की वापसी भारत के लिए केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि ऐतिहासिक न्याय की वापसी भी होगी।