अमृतांशु ने गिटार में खोजा - भारतीय राग

Jitendra Kumar Sinha
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जब रॉक और जैज की धुनों से पहचाने जाने वाले गिटार पर कोई राग यमन या दरबारी बजाता है, तो मन चौंक उठता है। कुछ ऐसा ही करते हैं अमृतांशु, जिन्होंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में छोड़ दी, लेकिन संगीत से रिश्ता कभी नहीं छोड़ा। आज वे 22 तारों वाले स्लाइड गिटार के जरिए भारतीय शास्त्रीय संगीत को एक नई परिभाषा दे रहे हैं।

अमृतांशु का बचपन संगीत के वातावरण में नहीं बीता है। पढ़ाई में अव्वल और तकनीक के क्षेत्र में आगे बढ़ने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन जब उन्होंने पहली बार हिंदुस्तानी रागों को गिटार पर बजते सुना, तो दिल एक नई दिशा की ओर मुड़ गया। इंजीनियरिंग की किताबें धीरे-धीरे रियाज की नोटबुक में बदल गईं। और यहीं से शुरू हुआ सुरों का सफर।

अमृतांशु पिछले 15 वर्षों से पंडित समरजीत मुखर्जी के शिष्य हैं। उन्होंने शास्त्रीय गायन, रागों की बारीकियाँ और लय-ताल का ज्ञान गहन रूप से प्राप्त किया है। गुरु ने उन्हें न केवल संगीत का अभ्यास सिखाया, बल्कि गिटार जैसे पाश्चात्य वाद्य को भारतीय आत्मा देने की राह भी दिखाई।

अमृतांशु जिस गिटार का उपयोग करते हैं, उसमें 22 तार होते हैं। यह आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले छह तारों वाले गिटार से बिल्कुल अलग है। स्लाइड तकनीक के साथ रागों की मींड, गमक और मुरकियाँ निकालना बेहद कठिन होता है। लेकिन अमृतांशु ने इस चुनौती को अपनी पहचान बना लिया है।

उनकी प्रतिभा को कई प्रतिष्ठित मंचों पर सराहना मिली है। उन्होंने एआर रहमान के साथ सहयोग किया, म्यूजिक मोजो और जैमिन जैसे लोकप्रिय कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुति दी। शास्त्रीय रागों को युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाने की उनकी शैली उन्हें भीड़ से अलग बनाती है।

अमृतांशु का मानना है कि भारतीय संगीत की जड़ें गहरी हैं, लेकिन उन्हें नए साजों और मंचों के माध्यम से युवा पीढ़ी से जोड़ने की जरूरत है। उनका गिटार अब केवल वाद्य नहीं, बल्कि रागों की जीवंत कहानी बन चुका है।

अमृतांशु जैसे कलाकार भारतीय संगीत की उस विरासत को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में संजो रहे हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को अपनी संस्कृति से जोड़े रखेगी। उनका संगीत इस बात का प्रमाण है कि यदि जुनून हो, तो कोई भी साधन भारतीय रागों की आत्मा बन सकता है, फिर चाहे वह गिटार ही क्यों न हो।



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