अब तक यह माना जाता था कि ग्रहण जैसी खगोलीय घटनाओं पर केवल जानवर, परिंदे या मनुष्य ही प्रतिक्रिया देते हैं। लेकिन हालिया शोध ने इस धारणा को पूरी तरह से बदल दिया है। अब वैज्ञानिकों ने प्रमाणित किया है कि वृक्ष- खासकर स्प्रूस (spruce) जैसे पुराने वृक्ष, न केवल सूर्यग्रहण के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं, बल्कि उसके कई घंटे पहले ही उसका पूर्वानुमान भी लगा लेता हैं। यह वृक्ष अपने जैव-विद्युत संकेतों से जंगल के अन्य पेड़ों को भी सचेत करता है।
यह अध्ययन इटली के प्रसिद्ध पर्वतीय क्षेत्र डोलोमाइट्स में स्थित एक पुराने जंगल में किया गया। वैज्ञानिकों ने वहां मौजूद स्प्रूस पेड़ों पर विशेष सेंसर लगाए और उनकी जैव-विद्युत गतिविधियों को कई दिनों तक रिकॉर्ड किया। रॉयल सोसायटी ओपन साइंस पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में यह पाया गया कि ग्रहण से कुछ घंटे पहले ही इन वृक्षों में समन्वित विद्युत संकेत उत्पन्न होने लगे थे।
वृक्षों में भी विद्युत संकेत होते हैं, जैसे मानव मस्तिष्क या हृदय में होते हैं। इन संकेतों को बायोइलेक्ट्रिक सिग्नल्स कहा जाता है। यह सिग्नल पेड़ों की जड़ों, तनों और पत्तियों के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान करता है। सूर्यग्रहण जैसी घटनाओं से पहले, वातावरण में अचानक होने वाले परिवर्तन (जैसे तापमान में गिरावट, प्रकाश का कम होना, हवा की नमी में परिवर्तन) इन संकेतों को उत्तेजित करता हैं। अध्ययन में पाया गया है कि वृक्षों की जैव-विद्युत गतिविधि ग्रहण के 3 से 4 घंटे पहले ही बदलने लगी थी। विद्युत संकेतों में आई यह गति पूरे जंगल में एक साथ फैल गई थी। पुराने पेड़ इस परिवर्तन को पहले पहचानता हैं और युवा पेड़ों को सतर्क करता है।
इस अध्ययन की सबसे चौंकाने वाली खोज यह है कि पेड़ संवाद करता हैं। यह संवाद पूरी तरह विद्युत संकेतों और रासायनिक संप्रेषण पर आधारित होता है। प्रोफेसर मोनिका गागलियानो, जो इस अध्ययन की प्रमुख लेखिका हैं, कहती हैं कि "पेड़ों की प्रतिक्रियाएं केवल जैविक नहीं, बल्कि संप्रेषणीय भी हैं। वह एक नेटवर्क की तरह कार्य करता हैं, जैसे एक जीवित इंटरनेट।" यह Wood Wide Web की अवधारणा को और भी बल देता है, जिसके अनुसार पेड़ भूमिगत कवक-जाल (mycorrhizal networks) के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ा होता हैं और संदेशों का आदान-प्रदान करता हैं।
अध्ययन में यह बात भी सामने आई है कि पुराने पेड़ सूर्यग्रहण के संकेतों को बेहतर ढंग से पहचानता हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि वृक्षों के पास दशकों की 'पर्यावरणीय स्मृति' होती है। पुराने वृक्ष पहले संकेतों को ग्रहण करता हैं, फिर जैव-विद्युत तरंगों के माध्यम से संकेतों को प्रसारित करता है, युवा वृक्षों को संभावित पर्यावरणीय परिवर्तन के लिए तैयार करता हैं। यह एक पारिस्थितिक चेतना का प्रमाण है, जो कि जीव-जंतुओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वनस्पतियों में भी विद्यमान है।
सूर्यग्रहण के समय जंगल में वातावरण एकदम बदल जाता है। अचानक अंधकार छा जाता है, तापमान गिरता है, पक्षी चुप हो जाते हैं, जानवर अपने स्थानों में लौट जाते हैं। इसी दौरान पेड़ों में भी एक असामान्य विद्युतीय गतिविधि पाई गई है। वह अपनी जैव-विद्युत ऊर्जा को समेटने लगता हैं, जैसे किसी गहरी ध्यान अवस्था में जा रहे हो। वैज्ञानिकों ने बताया कि ग्रहण के समय वृक्षों की विद्युत गतिविधि चरम पर होता है। यह व्यवहार सभी पेड़ों में एक साथ होता है, जो किसी समन्वित चेतना का प्रमाण है।
वैज्ञानिकों ने पेड़ों पर जो सेंसर लगाए थे, वे microelectrode sensors थे। ये सेंसर पेड़ों के तनों में लगे होते हैं और प्रत्येक सेकंड उनके भीतर की विद्युत गतिविधियों को रिकॉर्ड करता हैं। इसके साथ ही मौसम से संबंधित डेटा (तापमान, आर्द्रता, प्रकाश की मात्रा) भी रिकॉर्ड किया गया। सेंसर से प्राप्त डेटा को कंप्यूटर में feeding करके सिग्नल एनालिसिस सॉफ्टवेयर से विश्लेषण किया गया। परिणाम चौंकाने वाला था। वैज्ञानिकों ने साफ तौर पर देखा कि ग्रहण के समय विद्युत सिग्नलों की आवृत्ति और तीव्रता दोनों ही अचानक बढ़ जाता है।
जैसे मनुष्य आवाज से, परिंदे ध्वनि से, और कीड़े-फरमोन से संवाद करते हैं, वैसे ही वृक्ष जैव-विद्युत संकेतों का उपयोग करता हैं। यह संकेत उनके भीतर की कोशिकाओं में 'एक्शन पोटेंशियल' के रूप में उत्पन्न होता हैं। जब कोई बाहरी घटना होती है, जैसे तेज हवा चलना, तापमान का अचानक गिरना, सूर्यग्रहण जैसे खगोलीय परिवर्तन होना। तो यह पेड़ विद्युत संकेतों के रूप में प्रतिक्रिया करता है। यह संकेत बहुत तेजी से अन्य पेड़ों तक पहुंचता है और पूरा जंगल एक जैविक नेटवर्क की तरह समन्वित प्रतिक्रिया देता है।
यह अध्ययन सिर्फ एक विज्ञान प्रयोग नहीं है, बल्कि यह वनस्पति विज्ञान की पारंपरिक धारणाओं को चुनौती देता है। यह संकेत करता है कि पेड़ चेतन होता हैं, उनमें अनुभूति और स्मृति होता है, वह संवाद करता हैं और सामूहिक निर्णय लेता हैं। अब वैज्ञानिक वृक्षों के इस 'जैविक संवाद' को और गहराई से समझने की दिशा में काम कर रहा हैं। भविष्य में यह अध्ययन पारिस्थितिकी की बेहतर समझ में मदद करेगा, वनों के संरक्षण के लिए नई नीतियां गढ़ेगा, और पेड़-पौधों के साथ मानवीय संबंधों को और गहरा करेगा।
भारतीय संस्कृति में वृक्षों को जीवंत माना गया है। पीपल, बरगद, तुलसी आदि को पूजा जाता है। वेदों में कहा गया है - "वनस्पतयः सोमराजानः" वृक्षों में देवता का वास है। यह अध्ययन आधुनिक विज्ञान को उस प्राचीन ज्ञान के करीब लाता है, जिसमें वृक्षों को चेतन प्राणी माना गया है। अब विज्ञान भी मानने लगा है कि पेड़ केवल लकड़ी का ढांचा नहीं है, बल्कि अनुभूतिपूर्ण, संवादशील प्राणी हैं।
पेड़ हमारी पृथ्वी के मौन प्रहरी है। वह न बोलता हैं, न चलता हैं, परंतु उनकी संवेदनशीलता और सामूहिकता हमें सिखाता है कि किस तरह प्रकृति का हर घटक एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। सूर्यग्रहण जैसी घटनाएं सिर्फ आकाशीय तमाशा नहीं हैं, वह हमें यह याद दिलाने का माध्यम हैं कि हर जीवन रूप, चाहे वह पक्षी हो, जानवर हो या वृक्ष, प्रकृति की लयबद्ध धड़कन में भागीदार है। इस अध्ययन ने यह सिद्ध कर दिया है कि पेड़ भी प्रतिक्रिया देता हैं, चेतावनी देता हैं, और शायद हमें भी चेतावनी दे रहा हैं कि अगर हम इस मौन भाषा को न समझे, तो प्रकृति से जुड़ाव खो देंगे।
स्प्रूस पेड़ों की यह मौन चेतना हमें यह बताता है कि विज्ञान की सीमाएं अब उन क्षेत्रों में प्रवेश कर रही हैं, जिन्हें कभी मिथक या कल्पना माना जाता था। यह न केवल विज्ञान की उपलब्धि है, बल्कि मनुष्य के लिए आत्मचिंतन का भी अवसर है कि क्या हम भी उस संवाद का हिस्सा बन पाएंगे जो हजारों साल से हमारे चारों ओर मौन रूप में चल रहा है?
