बिहार में गन्ना खेती अब केवल पारंपरिक फसल उत्पादन तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह राज्य के औद्योगिक और ऊर्जा क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव की राह पर अग्रसर है। गन्ना उद्योग मंत्री कृष्णनंदन पासवान ने घोषणा किया है कि वर्ष 2026 तक राज्य में कुल 9 नई इथेनॉल फैक्ट्रियां शुरू की जाएंगी। यह पहल न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने वाली है, बल्कि हरित ऊर्जा के क्षेत्र में बिहार को अग्रणी बनाएगी।
गन्ना से इथेनॉल उत्पादन एक बहुआयामी योजना है, जिससे कृषि, उद्योग और पर्यावरण—तीनों को लाभ होगा। बिहार सरकार का उद्देश्य है कि गन्ने का उपयोग केवल चीनी उत्पादन तक सीमित न रहे, बल्कि इथेनॉल और गुड़ जैसी वैकल्पिक इकाइयों के विस्तार से मूल्यवर्धन भी हो। इससे किसानों को बेहतर बाजार मूल्य, समय पर भुगतान, और स्थायी आय का स्रोत मिलेगा।
गन्ना उद्योग मंत्री ने बताया है कि सरकार ने किसानों के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जिनमें उन्नत बीज वितरण, तकनीकी सहायता, और फसल की प्रोसेसिंग से जुड़ी इकाइयों की स्थापना शामिल है। इथेनॉल इकाइयों के शुरू होने से राज्य में गन्ना की मांग बढ़ेगी, जिससे उत्पादन में वृद्धि होगी और किसानों को उनका उचित मेहनताना मिल सकेगा।
इथेनॉल एक जैविक ईंधन है, जिसे पेट्रोल में मिलाकर उपयोग किया जा सकता है। इससे पर्यावरण प्रदूषण कम होता है और कार्बन उत्सर्जन में भी गिरावट आती है। केंद्र सरकार की ‘इथेनॉल ब्लेंडिंग’ नीति के तहत बिहार की ये फैक्ट्रियां देश की ऊर्जा आत्मनिर्भरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।
इन नौ इथेनॉल फैक्ट्रियों के खुलने से हजारों युवाओं को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार मिलेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों के विस्तार से स्थानीय अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी और प्रवास की समस्या में भी कमी आएगी।
बिहार सरकार की यह पहल न केवल गन्ना किसानों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आई है, बल्कि यह राज्य को हरित ऊर्जा क्रांति का केंद्र भी बना सकती है। इथेनॉल इकाइयों के जरिए बिहार अब पारंपरिक कृषि से औद्योगिक विकास की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है। गन्ना अब केवल मिठास का प्रतीक नहीं, बल्कि समृद्धि और सतत विकास का मार्गदर्शक बनता जा रहा है।
