भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही 'भारत ब्रांड' योजना के तहत कम दामों पर आटा, चावल और दाल जैसे जरूरी खाद्य पदार्थों की बिक्री अब बंद होने जा रही है। खाद्य मंत्रालय ने निर्णय लिया है कि इन वस्तुओं की अब रियायती दर पर बिक्री की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि बाजार में खाद्य पदार्थों की कीमतें स्थिर हो चुका हैं।
'भारत ब्रांड' का शुभारंभ तब हुआ था जब देश में महंगाई चरम पर थी और आमजन रसोई खर्च से परेशान थे। इस योजना के तहत भारत सरकार ने उचित मूल्य की दुकानों और खास स्टॉल्स के माध्यम से आटा ₹27.50 प्रति किलो, चावल ₹29 और दालें सस्ती दरों पर उपलब्ध करवा रही थीं। इसका मकसद था मध्यम वर्ग और निम्न आय वर्ग को सीधी राहत देना।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, देशभर में अब खाद्य वस्तुओं की कीमतें स्थिर हैं। खासकर गेहूं और चावल की अच्छी पैदावार और बाजार आपूर्ति में स्थिरता के कारण अब इस तरह की रियायती बिक्री की आवश्यकता नहीं रह गई है। इसलिए भारत ब्रांड के तहत बिकने वाली वस्तुओं की आपूर्ति को रोका जा रहा है।
जहां सरकार इसे सामान्य स्थिति की ओर वापसी का संकेत मान रही है, वहीं आमजन और सामाजिक कार्यकर्ता इस निर्णय पर सवाल उठा रहे हैं। कई लोगों का मानना है कि खुदरा बाजार में अभी भी आटा, दाल और चावल की कीमतें ऊंची हैं और भारत ब्रांड की बिक्री गरीबों के लिए एक राहत की तरह थी।
सूत्रों के अनुसार, भारत ब्रांड योजना के माध्यम से लाखों उपभोक्ताओं ने सस्ती दरों पर अनाज खरीदा। यह योजना खासतौर पर महानगरों, कस्बों और रूरल क्षेत्रों में काफी लोकप्रिय था। सरकार की इस पहल को महंगाई नियंत्रण के एक सशक्त उपाय के रूप में देखा जा रहा था।
इस निर्णय के बाद अब यह प्रश्न उठता है कि यदि भविष्य में खाद्य मुद्रास्फीति दोबारा बढ़ता है, तो क्या सरकार फिर से इस योजना को शुरू करेगी? विशेषज्ञ का मानना है कि सरकार को एक 'फ्लेक्सी-मॉडल' बनाना चाहिए जो महंगाई के हिसाब से एक्टिवेट हो सके।
भारत ब्रांड की बंदी सरकार की आर्थिक स्थिरता के दावे की ओर इशारा करता है, लेकिन इसका असर गरीब और निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों पर जरूर पड़ेगा। एक बार फिर, महंगाई की चुनौती आम जनता की रसोई तक पहुंचने लगा है और अब वह राहत वाला भारत ब्रांड उनके थैले से बाहर हो गया है।
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