तकनीकी युग ने मानव जीवन को जितना आसान बनाया है, उतना ही युद्ध के मैदान को भी जटिल और खतरनाक। अब टैंक, मिसाइल और जेट विमानों की बजाय एक नया युग शुरू हो चुका है "माइक्रो वॉरफेयर"। इस दिशा में चीन ने एक और बड़ा कदम उठाया है, जब उसने मच्छर ड्रोन नामक बायोनिक माइक्रो ड्रोन का सफलतापूर्वक निर्माण किया है। यह ड्रोन इतना छोटा है कि एक उंगली पर रखकर उड़ाया जा सकता है, लेकिन इसके कार्य अत्यंत गंभीर हैं , निगरानी, जासूसी, डेटा कलेक्शन और यहां तक कि दुश्मन की पोजिशन का सटीक पता लगाने का कार्य भी यह मच्छर के आकार का डिवाइस कर सकता है।
मच्छर ड्रोन की लंबाई केवल 1.3 सेंटीमीटर, डिजाइन हूबहू मच्छर जैसा, पंख दो बायोनिक विंग्स जो मच्छर की तरह फड़फड़ाता है, पैर बाल जितने पतले तीन माइक्रो लैग्स, वजन इतना हल्का कि इंसान के बाल से भी कम है। इसमें हाई-डेफिनिशन कैमरा, रडार और नेविगेशन सेंसर, स्मार्टफोन से नियंत्रण, बायोनिक टेक्नोलॉजी आधारित विंग मूवमेंट, सोलर और माइक्रो बैटरी सपोर्ट (सीमित) लगा हुआ है। यह ड्रोन चीन की नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ डिफेंस टेक्नोलॉजी (NUDT) के रोबोटिक्स विभाग ने तैयार किया है। इसका उद्देश्य सिर्फ दुश्मन की निगरानी करना नहीं है, बल्कि एक पूरा मिनिएचर रोबोटिक जासूस बनाना है।
ड्रोन में डुअल हाई-रेजोल्यूशन कैमरा सिस्टम लगा है, जो एक मच्छर की आंखों जैसा कार्य करता है। यह सिस्टम 360 डिग्री तक विजुअल डेटा कैप्चर कर सकता है। ड्रोन में मल्टी-सेंसर सिस्टम है, जिसमें तापमान मापने वाला सेंसर, एयर क्वालिटी मापक, वॉटर क्वालिटी एनालाइजर, माइक्रो रडार नेविगेशन सिस्टम है।
इस ड्रोन को स्मार्टफोन या टेबल्ट के जरिए नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए विशेष एप्लिकेशन आधारित कंट्रोल इंटरफेस विकसित किया गया है।
यह ड्रोन दुश्मन के इलाके में बिना पता चले घुस सकता है और सेना को वास्तविक समय की इंटेलिजेंस दे सकता है। भारत-चीन, चीन-ताइवान जैसी संवेदनशील सीमाओं पर यह ड्रोन चीन की सेना को अग्रिम मोर्चे पर बड़ी बढ़त दे सकता है। यह ड्रोन विशेष कैमरा और सेंसर से किसी व्यक्ति की गतिविधियों की निगरानी कर सकता है, जो आतंकवाद निरोधी अभियानों में कारगर हो सकता है। ड्रोन वाई-फाई नेटवर्क, रेडियो फ्रीक्वेंसी और मोबाइल डेटा की निगरानी में भी उपयोग किया जा सकता है।
बायोनिक टेक्नोलॉजी वह विज्ञान है, जो जीवों के शारीरिक संरचना को तकनीकी मशीनों में उपयोग करता है। मच्छर ड्रोन इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है। यह दिखाता है कि किस तरह एक जीव की उड़ान प्रणाली, पंखों की गति, और ध्वनि-मुक्त उड़ान को मशीनों में बदलकर उपयोग किया जा सकता है।
छोटी बैटरी की वजह से यह ड्रोन बहुत लंबी उड़ान नहीं भर सकता है। इसमें किसी प्रकार का हथियार या अतिरिक्त उपकरण ले जाने की क्षमता नहीं है। हवा का बहाव अधिक होने पर उड़ान असंभव हो जाता है। अगर नियंत्रण प्रणाली को हैक किया गया तो यह ड्रोन दुश्मन के लिए खतरा बन सकता है।
इस ड्रोन के जरिए सीमाओं पर जासूसी की घटनाएं बढ़ सकती हैं। इसका उपयोग खुफिया जानकारी चुराने के लिए किया जा सकता है। छोटे ड्रोन यदि नागरिक क्षेत्रों में उड़ाए जाते हैं तो यह निजता के अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है। इस मच्छर ड्रोन ने अमेरिका, रूस, भारत, फ्रांस जैसे देशों को भी ऐसे ही माइक्रो ड्रोन बनाने की दौड़ में झोंक दिया है।
भारत ने भी अपनी DPSUs और DRDO के सहयोग से कई प्रकार के निगरानी ड्रोन विकसित किया हैं। लेकिन अब मच्छर ड्रोन जैसे बायोनिक सर्विलांस सिस्टम की दिशा में तेजी से काम करने की जरूरत है। माइक्रो ड्रोन टेक्नोलॉजी पर अनुसंधान को बढ़ावा, बायोनिक रोबोटिक्स प्रयोगशालाएं, IITs, IISc जैसे संस्थानों को फंडिंग, सामरिक नीति में माइक्रो वॉरफेयर की योजना पर काम हो रहा है।
अगर एक मच्छर ड्रोन से किसी साजिश का संचालन हो सकता है, तो कल्पना कीजिए कि हजारों ऐसे ड्रोन एक साथ उड़ते हुए किसी देश की राजधानी में घुस जाएं। इससे साइबर अटैक, डाटा चोरी, वीआईपी ट्रैकिंग, बायोलॉजिकल हथियार के वितरण जैसे कार्य किया जा सकता हैं। यह ड्रोन आने वाले युद्धों को 'मानव रहित और सूक्ष्म' (Unmanned & Micro)' बना देगा, जिसमें हथियारों से अधिक डेटा, तकनीक और निगरानी की भूमिका होगी।
चीन का मच्छर ड्रोन विज्ञान और तकनीक की चमत्कारिक क्रांति है, लेकिन यह एक चेतावनी भी है कि युद्ध अब सिर्फ बंदूक या बम से नहीं लड़ा जाएगा, बल्कि हवा में उड़ते अदृश्य खतरों से भी होगा। भारत सहित दुनिया के सभी देशों को अब इस दिशा में नई रणनीति, नई तकनीक और सतर्कता के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है।
